इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक मामले में व्यवस्था दी है कि एक सरकारी कर्मचारी की मृत्यु होने पर यदि उसकी पत्नी जीवित है और उसने नियुक्ति के लिए दावा किया है तो मृतक की बहन की अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति नहीं की जा सकती. न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने मृतक कर्मचारी की बहन कुमारी मोहनी द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए यह आदेश पारित किया. मोहनी ने अनुकंपा के आधार पर अपनी नियुक्ति के लिए संबद्ध अधिकारियों को विचार करने का निर्देश पारित करने का अनुरोध अदालत से किया था.
यह याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा, “मौजूदा मामले में इस तथ्य में कोई विवाद नहीं है कि मृतक कर्मचारी विवाहित था और उसकी पत्नी जीवित है और उसने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए दावा किया है. इसलिए नियमों के तहत वही नियुक्ति के लिए पात्र है और याचिकाकर्ता को कोई राहत नहीं दी जा सकती है.”
मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता का पिता “सफाई कर्मचारी” के पद पर कार्यरत था और सेवाकाल के दौरान उसकी मृत्यु हो गई. इसके बाद, याचिकाकर्ता के भाई को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति मिल गई.
दुर्भाग्य से, एक सड़क दुर्घटना में याचिकाकर्ता के भाई की भी मृत्यु हो गई और उसकी मृत्यु के बाद उसकी मां ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता को अपनी सहमति दे दी. याचिकाकर्ता ने अपनी नियुक्ति के लिए अधिकारियों के समक्ष प्रत्यावेदन दिया जोकि विचाराधीन था.
प्रतिवादी के वकील ने याचिकाकर्ता के वकील द्वारा किए गए दावे पर आपत्ति जताते हुए कहा कि नियमावली 1974 जिसे 2021 में संशोधित किया गया, में परिवार की परिभाषा चरणबद्ध क्रम में दी गई है.
उन्होंने बताया कि नियमों के मुताबिक, कर्मचारी की मृत्यु के बाद नियुक्ति पर पहला अधिकार उसकी पत्नी या पति का होता है. इसके बाद अधिकार बेटों या गोद लिए बेटों का होता है. इसके बाद अधिकार बेटियों (गोद ली गई बेटियों सहित) और विधवा बहू का होता है. इसके बाद अधिकार अविवाहित भाइयों, अविवाहित बहनों और विधवा मां जोकि मृतक सरकारी कर्मचारी पर आश्रित हो, उसका होता है.