डिमोलिश नहीं किया, रिपेयर किया है... मनरेगा पर सोनिया के सवाल पर बीजेपी का जवाब

भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने पलटवार करते हुए कहा कि मनरेगा पर सोनिया गांधी का हालिया लेख कानून या आंकड़ों के साथ गंभीर जुड़ाव के बजाय राजनीतिक कल्पना की उड़ान जैसा लगता है.

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  • भाजपा ने सोनिया गांधी के वीबी-जी-राम जी अधिनियम पर दावों को राजनीतिक कल्पना और गलत व्याख्याओं पर आधारित बताया.
  • भाजपा ने कहा कि नया कानून मनरेगा का विध्वंस नहीं बल्कि ग्रामीण रोजगार की प्रणाली में आवश्यक सुधार है.
  • अमित मालवीय ने सोनिया गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्‍होंने वीबी-जी राम जी अधिनियम नहीं पढ़ा है.
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नई दिल्‍ली:

भाजपा ने सोमवार को कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के ‘वीबी-जी-राम जी अधिनियम' के बारे में किए गए दावों को “राजनीतिक कल्पना की उड़ान” करार दिया और आरोप लगाया कि कानून के खिलाफ उनके तर्क “गलत व्याख्याओं, चुनिंदा स्मृति और सरासर झूठ” पर आधारित हैं. भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय ने कहा कि रोजगार गारंटी कानून का डिमोलिशन नहीं बल्कि रिपेयर किया है. मनरेगा की जगह लेने वाला ‘विकसित भारत गारंटी रोजगार एवं आजीविका मिशन-ग्रामीण' (वीबी-जी राम जी) विधेयक रविवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलने के साथ एक अधिनियम बन गया.

कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी ने आरोप लगाया था कि मोदी सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) पर बुलडोजर चला दिया है और करोड़ों किसानों, श्रमिकों एवं भूमिहीन ग्रामीण वर्ग के गरीबों के हितों पर हमला किया है. उन्होंने सभी से एकजुट होकर उन अधिकारों की रक्षा करने का आह्वान किया गया जो सभी की सुरक्षा करते हैं. ‘द हिंदू' में एक संपादकीय में सोनिया गांधी ने यह भी कहा कि मनरेगा की “मौत” एक सामूहिक विफलता है.

तर्क गलत व्याख्याओं और झूठ पर आधारित: मालवीय

अमित मालवीय ने पलटवार करते हुए ‘एक्स' पर एक पोस्ट में कहा, “मनरेगा पर सोनिया गांधी का हालिया लेख कानून या आंकड़ों के साथ गंभीर जुड़ाव के बजाय राजनीतिक कल्पना की उड़ान जैसा लगता है.”

उन्होंने आरोप लगाया, “यह स्पष्ट है कि उन्होंने वीबी-जी राम जी अधिनियम नहीं पढ़ा है, क्योंकि उनके तर्क गलत व्याख्याओं, चयनात्मक स्मृति और सरासर झूठ पर आधारित हैं.”

साथ ही मालवीय ने कहा, “असल बात साफ है. यह विध्वंस नहीं, बल्कि काफी समय से लंबित मरम्मत है. असल विकल्प करुणा और सुधार के बीच नहीं है, बल्कि उन कागजी गारंटियों के बीच है जो अपेक्षा से कम परिणाम देती हैं, और एक ऐसे आधुनिक ढांचे के बीच है जो वास्तव में प्रभावी ढंग से काम करता है.”

रोजगार के कानूनी अधिकार पर फर्क नहीं: मालवीय

भाजपा नेता ने आरोप लगाया कि गांधी ने अपने लेख में मनरेगा की उत्पत्ति को रोमांचक तरीके से प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह व्यापक परामर्श से उभरा है, लेकिन यह दावा “सच्चाई से बहुत दूर” है.

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उन्होंने आरोप लगाया, “मनरेगा की परिकल्पना और संचालन एक गैर निर्वाचित कार्यकारी निकाय राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) द्वारा किया गया था, जो वास्तव में एक सुपर-कैबिनेट के रूप में कार्य करती थी. इसकी भूमिका इतनी प्रभावशाली थी कि सोनिया गांधी की एनएसी के अधीन (तत्कालीन) प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अक्सर ‘सुपर कैबिनेट सचिव' कहकर उपहास किया जाता था.”

उन्होंने आरोप लगाया कि गांधी इस प्रक्रिया को अब सहभागी लोकतंत्र के रूप में पेश कर रही हैं, जो कि उनके अनुसार “ऐतिहासिक पुनर्लेखन” है.

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गांधी के इस दावे को खारिज करते हुए कि मांग आधारित रोजगार को समाप्त किया जा रहा है, जिससे रोजगार की गारंटी ही नष्ट हो रही है, मालवीय ने जोर देकर कहा कि रोजगार का कानूनी अधिकार वीबी जी राम जी अधिनियम के तहत अछूता रहता है.

रोजगार अवधि 100 दिनों से बढ़कर 125 दिन: मालवीय

मालवीय ने कहा, “जो चीज बदली है वह है बजट का ढांचा - एक खुले, प्रतिक्रियात्मक मॉडल से एक मानदंड-आधारित प्रणाली में, जो कि लगभग सभी सरकारी योजनाओं के संचालन का तरीका है.”

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उन्होंने कहा, “गारंटी को कमजोर करने के बजाय, रोजगार अवधि 100 दिनों से बढ़कर 125 दिन हो गई है. वित्त वर्ष 2024-25 में, नियोजित आवंटन वास्तविक मांग के लगभग बराबर रहे, जिससे यह साबित होता है कि अनुशासित योजना कारगर साबित होती है.”

भाजपा नेता ने कहा कि गांधी का यह तर्क कि मनरेगा ग्रामीण जीवनयापन का केंद्रीय स्तंभ बना हुआ है और नया कानून ग्रामीण मजदूरी वृद्धि को दबा देगा, इस बात को नजरअंदाज करता है कि ग्रामीण भारत कितना बदल गया है.

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उन्होंने दावा किया कि मनरेगा ने संकट को कम करने में भूमिका तो निभाई, लेकिन यह आज की ग्रामीण वास्तविकताओं के साथ तालमेल नहीं बैठा पाई है.

मालवीय ने कहा, “नाबार्ड और एमपीसीई के आंकड़ों से पता चलता है कि 80 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों ने अधिक उपभोग की सूचना दी है, 42.2 प्रतिशत ने अधिक आय की सूचना दी है और 58.3 प्रतिशत अब पूरी तरह से औपचारिक ऋण पर निर्भर हैं.”

उन्होंने कहा, “आज मनरेगा ग्रामीण आजीविका की परिभाषित विशेषता के रूप में नहीं, बल्कि एक वैकल्पिक सुरक्षा जाल के रूप में कार्य करता है”, और गांधी के इस दावे को “उतना ही भ्रामक” करार दिया कि यदि पुरानी व्यवस्था में बदलाव होता है तो सबसे गरीब लोग उपेक्षित रह जाएंगे.

मालवीय ने ग्रामीण गरीबी में गिरावट का किया दावा 

उन्होंने कहा, “ग्रामीण गरीबी में भारी गिरावट आई है, जो 25.7 प्रतिशत से घटकर 4.86 प्रतिशत हो गई है. लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) को दिए जाने वाले ऋण में 2014 से तीन गुना वृद्धि हुई है, जिससे स्वरोजगार और गैर-कृषि आजीविका को बढ़ावा मिला है. भारत ने स्पष्ट रूप से प्रगति की है, ऐसे में सार्वजनिक नीति को 2005 की परिस्थितियों में स्थिर नहीं रखा जा सकता.”

भाजपा नेता ने इस आरोप को भी “झूठा' बताया कि केंद्र सरकार वीबी-जी-राम जी अधिनियम के तहत कथित 90:10 मॉडल से 60:40 मॉडल की ओर बढ़ते हुए राज्यों पर वित्तीय बोझ डाल रही है.

उन्होंने कहा, “व्यवहार में केंद्र सरकार द्वारा मनरेगा को कभी भी 90 प्रतिशत वित्त पोषित नहीं किया गया. राज्य पहले से ही सामग्री लागत का 25 प्रतिशत, प्रमुख प्रशासनिक व्यय और बेरोजगारी भत्ते का 100 प्रतिशत वहन करते थे, अक्सर बिना किसी पूर्वानुमान या पारदर्शिता के.”

भाजपा नेता ने कहा कि नया मॉडल केवल वित्त पोषण को औपचारिक रूप देता है और उसे तर्कसंगत बनाता है, जिससे राज्य “ऊपर से थोपे गए आदेशों के निष्क्रिय कार्यान्वयनकर्ता” होने के बजाय “समान भागीदार” बन जाते हैं.

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