उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्या (Swami Prasad Maurya) इन दिनों विवादों के घेरे में हैं. उन्होंने रामचरितमानस (Ramcharitmanas Row) को लेकर विवादित टिप्पणी की थी. स्वामी के बयान के बाद कई जगहों से रामचरितमानस की प्रतियां फाड़े जाने या जलाए जाने की खबरें आई थीं. इसके कुछ वीडियो भी वायरल हुए थे. इसके बाद उनके खिलाफ विरोध-प्रदर्शन हुए. एआईआर भी दर्ज हुई. सपा से बहिष्कार की अपील भी की गई. इसी बीच अयोध्या के एक महंत ने स्वामी प्रसाद के सिर को काटने पर 21 लाख रुपये का इनाम भी रख दिया. इस पूरे मामले में स्वामी प्रसाद मौर्या से NDTV ने एक्सक्लूसिव बातचीत की. मौर्या ने इस दौरान दावा किया है कि कहीं भी रामचरितमानस की एक भी कॉपी न फाड़ी गई और न ही जलाई गई है.
विरोध के नाम पर क्या ग्रंथों को फाड़ना और जलाना उचित है? इस सवाल के जवाब में सपा महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्या ने कहा, 'मैं तो सिर्फ यही कहना चाहता हूं कि कोई भी धर्म मानव कल्याण के लिए होता है. मानव संस्कृतिकरण के लिए होता है.' उन्होंने कहा, 'पहली बात तो मैं बता दूं कि रामचरितमानस की कोई भी प्रति न तो फाड़ी गई और न ही जलाई गई. प्रति जलाने का जो भी वीडियो सामने आया है, वो दरअसल तख्तियों पर लिखे गए स्लोगन थे. इस विषय को कुछ ताकतें दबाने की कोशिश कर रही हैं. बात को तोड़-मरोड़ कर रखा जा रहा है.'
आपको कब लगने लगा कि रामचरितमानस में लिखी गई बातें स्त्री विरोधी या अनुचित हैं और इसका विरोध होना चाहिए? आपने विरोध के लिए ये समय ही क्यों चुना? स्वामी प्रसाद मौर्या ने कहा, 'मैंने 1989 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी छोड़ी थी. उसके बाद से मैं राजनीतिक कार्यों में लगा हूं. सार्वजनिक मंचों से मैं लगातार धर्म के आड़ में पाखंड और ऐसे तथ्य जो अपने ही धर्माम्बलियों को अपमानित किए जाने के रूप में पेश किए गए थे.. उसका विरोध करता रहा हूं. मैं सार्वजनिक मंचों में सैकड़ों बार इस विषय का पुरजोर विरोध कर चुका हूं. ये बात और है कि पहली बार अंतरराष्ट्रीय मंचों और राजनीति में इसपर चर्चा हो रही है. अगर सकारात्मक चर्चा चल रही है, तो इसके सकारात्मक और सुखद परिणाम आने की संभावना है.'
मौर्या ने कहा, 'रामचरितमानस की जो नई संशोधित प्रति आई है, उसमें कुछ सुधार किए गए हैं. हालांकि, हर गलती करने वाले से कुछ न कुछ गलती छूट ही जाती है. ऐसे ही तुलसीदास जी के रामचरितमानस में एक जगह 'तारणा' का अर्थ उन्होंने शिक्षा से जोड़ दिया और दूसरी जगह 'तारण' का अर्थ आज भी मारना और पीटना है.'
मौर्या ने NDTV से कहा, 'मेरा बस एक ही सवाल है कि 'क्या महिलाओं का अपमान करना आप अपना धर्म मानते हैं? क्या इस देश के आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों को अपमानित करने के लिए ही आपने धार्मिक चोला पहना है? महिलाओं, दलितों, पिछड़ों को सम्मान देने से आप परहेज क्यों कर रहे हैं?' स्वामी प्रसाद मौर्या ने बीजेपी के लिए कहा, 'वोट लेने के लिए यही लोग सब हिंदू हो जाते हैं? ऐसा क्यों है?'
पूरे मामले को लेकर लोगों की आस्था आहत होने के सवाल पर मौर्या ने कहा, 'अगर बात आस्था और भावना की आएगी, तो 97 फीसदी आबादी में आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों और महिलाओं की संख्या है. इतनी फीसदी लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं, उसकी किसी को चिंता नहीं है. महज ढाई फीसदी या तीन फीसदी धर्माचारियों की भावनाएं ही आहत हो रही हैं, तो ये बहुत बड़ी बात हो गई. 97 फीसदी लोगों की भावनाएं आहत हो रही हैं, वो भी तो हिंदू ही हैं. कोई गैर नहीं हैं. ऐसे में 97 फीसदी लोगों की भावनाएं आहत होना महत्वपूर्ण है या ढाई-तीन फीसदी लोगों की आस्था को ठेस पहुंचना अहम है.'
रामचरितमानस को लेकर राजनीति हो रही है. कहा जा रहा है कि विवाद के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी में मौर्या का कद बढ़ा दिया. वहीं, विश्व हिंदू परिषद का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्या को कोई अच्छा पद नहीं मिल रहा है, इसलिए नाम के लिए वो ऐसे बयान दे रहे हैं. इन आरोपों पर मौर्या ने कहा, 'जब कुछ लोग आपत्तिजनक शब्दों और व्यवहार को अपना धर्म मानते हैं, ऐसे लोगों का दिल और दिमाग कितना बड़ा है; इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. घटिया सोच के लिए तरह-तरह के मनगढंत घटिया बातें ही कहेंगे.'
अपनी बात को साफ करते हुए मौर्या ने कहा, 'मैंने 8-10 दिन पहले इस मामले को उठाया था. सपा का राष्ट्रीय महासचिव मैं दो दिन पहले बना हूं. ऐसे में इस मामले और मेरे राष्ट्रीय महासचिव बनने का क्या संबंध है? भारतीय संविधान सभी लोगों को समान समझता है. सभी धर्म और पंथ महत्वपूर्ण है. सभी का सम्मान है.
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