इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार को अंतरधार्मिक विवाह करने वाले दम्पत्तियों से संबंध में कहा कि जब दो वयस्क अपनी इच्छा से साथ रह रहे हों, तो उनके जीवन में कोई अन्य व्यक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकता.शाइस्ता परवीन उर्फ संगीता और उसके मुस्लिम पति द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘इस अदालत ने कई बार यह व्यवस्था दी है कि जब दो बालिग व्यक्ति एक साथ रह रहे हों, तो किसी को भी उनके शांतिपूर्ण जीवन में दखल देने का अधिकार नहीं है.'' इस याचिका के मुताबिक, प्रथम याचिकाकर्ता शाइस्ता परवीन उर्फ संगीता ने मुस्लिम धर्म अपनाने का निर्णय किया और धर्म परिवर्तन के बाद उसने एक मुस्लिम व्यक्ति से शादी की जो द्वितीय याचिकाकर्ता है.
दोनों ही याचिकाकर्ताओं ने वयस्क होने का दावा किया है और उनका आरोप है कि उनके परिजनों से उनकी जान को खतरा है. दोनों ने ही अपनी शादीशुदा जिंदगी में परिजनों के लिए हस्तक्षेप नहीं करने का निर्देश जारी करने की अदालत से गुहार लगाई है. उनका दावा है कि वे वयस्क हैं और अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं. अदालत ने अपने इस आदेश में लता सिंह के मामले को आधार बनाया, जिसमें युवक और युवती ने अंतरजातीय विवाह किया था और उन्हें उनके परिजनों द्वारा परेशान किया जा रहा था.
लता सिंह के मामले में उच्चतम न्यायालय ने देशभर के प्रशासन और पुलिस अधिकारियों को निर्देश जारी करते हुए कहा था, ‘‘यह एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश है और जब एक व्यक्ति वयस्क हो जाता है तो वह जिससे चाहे विवाह कर सकता/सकती है. यदि युवक या युवती के माता-पिता इस प्रकार के अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह को मंजूरी नहीं देते हैं तो वे अधिक से अधिक अपने बेटे या बेटी से सामाजिक रिश्ता खत्म कर सकते हैं, लेकिन उन्हें धमकी नहीं दे सकते या उनका उत्पीड़न नहीं कर सकते.'' ये निर्देश पारित करते हुए अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि आठ फरवरी, 2021 निर्धारित की.