उद्धव ठाकरे का ऐलान भी बेअसर, अब तक नहीं वापस हुए आरे जंगल बचाने वालों के केस

महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Govt) ने बीते सोमवार आरे (Aarey Forest) के 812 एकड़ इलाके को जंगल घोषित कर दिया, लेकिन इस जंगल को बचाने के आंदोलन से जुड़े लोगों पर दर्ज मामले अब तक वापस नहीं लिए गए हैं.

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आंदोलन से जुड़े लोगों को परेशानी हो रही है. (फाइल फोटो)
मुंबई:

महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Govt) ने बीते सोमवार आरे (Aarey Forest) के 812 एकड़ इलाके को जंगल घोषित कर दिया, लेकिन इस जंगल को बचाने के आंदोलन से जुड़े लोगों पर दर्ज मामले अब तक वापस नहीं लिए गए हैं, जबकि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने दिसंबर 2019 में खुद इसका ऐलान किया था. CM ठाकरे ने तब कहा था, 'आरे में कारशेड बनाने पर रोक मैंने लगा दी है, लेकिन उस वक्त जब पेड़ काटे जा रहे थे, वो नहीं काटे जाएं, उसके लिए लोगों के खिलाफ केस दर्ज किए गए थे. उन मामलों को वापस लेने के लिए मैंने आदेश दिए हैं, तो अभी उनके ऊपर कोई केस नहीं है.'

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दिसंबर 2019 में यह घोषणा कर दी लेकिन डेढ़ साल बाद भी प्रमिला भोईर सहित 29 लोगों को अपने ऊपर से एफआईआर हटाए जाने का इंतजार है. प्रमिला कहती हैं, 'इस आंदोलन में हमें जेल में डाला गया और अब आरे को जंगल घोषित किया गया, लेकिन उद्धव ठाकरे साहब ने इन मामलों को वापस लेने कहा था लेकिन वो हुआ नहीं. मैं काम पर नहीं जाती लेकिन कई कॉलेज में जाने वाले लोग हैं, जिन्हें परेशानी हो रही है. इसे वापस लेना चाहिए.'

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महाराष्ट्र के पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे ने 7 जून को ट्वीट कर बताया कि आरे के 812 एकड़ इलाके को औपचारिक तौर पर जंगल घोषित कर दिया गया है, लेकिन पेड़ों को कटने से बचाने के लिए मुकदमा झेल रहे 'आरे बचाओ' मुहिम आकाश पाटणकर पर केस बना हुआ है. फिल्मों में आर्ट डायरेक्शन करने वाले आकाश को इस वजह से विदेश जाना टालना पड़ा.

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आकाश ने कहा, 'अभी दो साल होने आया लेकिन अब तक कुछ हुआ नहीं है. यह सोचकर हमें चिंता हो रही है कि हमने इतना बड़ा क्या किया था कि मुख्यमंत्री के कहने के बावजूद इसे वापस नहीं किया गया. विदेश जाने वाले मौके को मैं फेस नहीं कर पाया क्योंकि मुझे डर था कि अगर वो रिजेक्ट हो जाए तो वापस मिलने में दिक्कत ना हो.'

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आईटी सेक्टर में काम करने वाले कमलेश श्यामनतुल्ला के सामने अपनी नौकरी खोने का डर बना हुआ है. इनके दफ्तर में रोजाना काम करने वाले कर्मचारियों के बैकग्राउंड चैक किए जाते हैं. इनके ऊपर एक ही FIR दर्ज है, पेड़ बचाने के मामले में. कमलेश ने कहा, 'आज भी दिल में धक-धक रहती है कि ऑफिस के लेवल पर कभी वेरिफिकेशन होगा तो मेरे खिलाफ पुलिस केस है, जिसके वजह से वेरिफिकेशन में दिक्कत होगी.'

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सरकार की ओर से इन लोगों के खिलाफ मामले वापस लेने के लिए एक कमेटी बनाई गई और मामले वापस लेने का फैसला भी लिया गया, लेकिन न ही पुलिस को इसकी जानकारी दी गई और न ही आगे कुछ कदम उठाया गया, जिससे जंगल बचाने वाले लोग अब भी परेशान हैं.

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आरे के 812 एकड़ इलाके को जंगल घोषित करने के लिए लोगों ने दिन-रात लड़ाई लड़ी. शिवसेना ने इस मुद्दे पर चुनाव लड़ा, वो अब सत्ता में हैं और अब इसे जंगल घोषित कर दिया गया, लेकिन जो लोग इस पूरे आंदोलन के पीछे थे, वो अब भी परेशान हैं. उनके खिलाफ मामले दर्ज हैं और मुख्यमंत्री की ओर से किए गए वादों के बावजूद अब तक मामले वापस नहीं लिए गए हैं.

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