दिल्ली में नर्क के नौ दिन बीते, क्या अब राजधानी का कोविड संकट कम हुआ?

चाहे गोल्डन हॉस्पीटल हो या मूलचंद अस्पताल हो या दिल्ली का कोई भी अस्पताल, सभी उस दौरान ऑक्सीजन सप्लाई के संकट से जूझ रहे थे. मरीज और उनके परिजन भी अस्पतालों में बेड नहीं मिलने से परेशान थे. कई ने तो घरों में और कई ने अस्पतालों के बाहर अपनी बारी के इंतजार में लाइन में लगे-लगे दम तोड़ दिया

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नई दिल्ली:

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (Delhi) में अप्रैल के आखिरी नौ दिन नर्क में बीते. कोविड (COVID) संकट ने इन नौ दिनों में दिल्ली का दिल दहला दिया था. दिल्ली कोविड की राजधानी बन गई थी. दिल्ली में 23 अप्रैल से एक मई के बीच कोरोना वायरस संक्रमण के 2 लाख नए मामले सामने आए और करीब 3000 लोगों की मौत हुई. पिछले साल इसी दौरान हुई मौतों की तुलना में 246 गुना ज्यादा मौतें हुईं. 

अप्रैल के आखिरी दिनों में दिल्ली के शवदाह गृह और आईसीयू इन हालात से निपटने में नाकाम साबित हुए. सभी अस्पतालों को बेड और ऑक्सीजन की भारी कमी का सामना करना पड़ा. ऐसी स्थिति पर पूरी राजधानी में हाहाकार मच गया. रोजाना मौत का आंकड़ा बढ़ रहा था. इसी दौरान रोहिणी के जयपुर गोल्डन अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी की वजह से 20 कोरोना मरीज की मौत हो गई.

NDTV को अस्पताल के प्रमुख डॉ डी के बालूजा ने बताया कि ऑक्सीजन स्टॉक खत्म होने पर सप्लायर से लगातार संपर्क किया लेकिन सप्लायर ने कोई जवाब नहीं दिया. तब अस्पताल प्रबंधन ने सरकार से संपर्क किया. उन्होंने बताया कि दिल्ली सरकार ने अस्पताल को रोजाना 3.6 एमटी ऑक्सीजन देने का वादा किया था लेकिन 50 से ज्यादा कॉल और फौरन मदद का संदेश भेजेने के बाद भी कोई मदद नहीं मिली. हालांकि, उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार के कोविड हेल्पलाइन पर वरिष्ठ आईएएस अधिकारी से बात तो हुई लेकिन उन्होंने भी स्थिति को देखते हुए लाचारगी जताई.

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उधर, दिल्ली सरकार के कोविड हेल्पलाइन सेंटर की अगुवाई कर रहे आप विधायक राघव चड्ढा ने कहा कि हेल्पलाइन के सभी कर्मियों ने दिन-रात काम कर दिल्ली के लोगों की सेवा की है. उन्होंने कहा, "हमलोगों ने 24-24 घंटे काम किए और दिल्ली में ऑक्सीजन की सप्लाई सुनिश्चित करते रहे. एक आदमी के पास चार-चार फोन बज रहे थे. सेंटर का कोई भी सदस्य कई दिनों तक सोया नहीं."

चाहे गोल्डन हॉस्पीटल हो या मूलचंद अस्पताल हो या दिल्ली का कोई भी अस्पताल, सभी उस दौरान ऑक्सीजन सप्लाई के संकट से जूझ रहे थे. मरीज और उनके परिजन भी अस्पतालों में बेड नहीं मिलने से परेशान थे. कई ने तो घरों में और कई ने अस्पतालों के बाहर अपनी बारी के इंतजार में लाइन में लगे-लगे दम तोड़ दिया. कुछ इस बेड के इंतजाम के लिए इस अस्पताल से उस अस्पताल की दूरी नापते बीच रास्ते में ही दम तोड़ दिया.