सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन को लेकर भारत में तेजी से काम हो रहा. ऐसे में वैज्ञानिकों के शोध में बड़ी बात निकलकर सामने आई, जिसमें मृत्यु दर कम होने का दावा किया गया है. आईसीएमआर के एक अध्ययन के अनुसार, जन्म के बाद निदान और जल्द इलाज से जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार हो सकता है तथा सिकल सेल रोग से पीड़ित रोगियों की मृत्यु दर 20-30 प्रतिशत से घटकर पांच प्रतिशत से भी कम हो सकती है.
63,536 नवजात शिशुओं का किया गया परीक्षण
भारत के उच्च प्रसार वाले क्षेत्रों में सात केंद्रों पर भारत चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के तहत मुंबई में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोहेमेटोलॉजी द्वारा सिकल सेल रोग (Sickle Cell Disease) के लिए नवजात बच्चों की स्क्रीनिंग की गईं. 2019-2024 के बीच की गईं स्क्रीनिंग में कुल 63,536 नवजात शिशुओं का परीक्षण किया गया, जिसमें सकारात्मक परिणाम सामने आएं हैं. हालांकि अभी तक अध्ययन को कहीं प्रकाशित प्रकाशित होना बाकी है.
जल्द जांच और इलाज से बीमारी को दूर भगाने में मिलेगी सफलता
नागपुर में आईसीएमआर- सेंटर फॉर रिसर्च मैनेजमेंट एंड कंट्रोल ऑफ हीमोग्लोबिनोपैथीज (CRMCH) की निदेशक डॉ मनीषा मडकाइकर ने बताया कि नवजात स्क्रीनिंग कार्यक्रम यह पता लगाने में मदद करता है कि क्या कोई बच्चा जन्म के तुरंत बाद सिकल सेल रोग के साथ पैदा हुआ है.
उन्होंने कहा, "अगर समय रहते इसका पता नहीं लगाया गया तो ये बीमारी गंभीर रूप लें सकती है जैसे- संक्रमण, एनीमिया (रक्त का स्तर कम होना) और बच्चों में स्ट्रोक की भी समस्या हो सकती है." डॉ. मडकाइकर ने कहा कि जिन शिशुओं का जल्दी निदान हो जाता है, उन्हें संक्रमण से बचने के लिए एंटीबायोटिक्स (जैसे पेनिसिलिन) दिए जा सकते हैं और विशेषज्ञों से नियमित जांच और देखभाल मिल सकती है.
उन्होंने कहा कि समय पर पता लगने से गंभीर बीमारियों से बचाव के लिए महत्वपूर्ण टीके लगवाने में भी मदद मिलती है, जबकि माता-पिता को खतरे के संकेतों के बारे में भी बताया जा सकता है ताकि वे तुरंत कार्रवाई कर सकें. इससे परिवारों और डॉक्टरों को लंबे इलाज की योजना बनाने, परिवार को आनुवंशिक परामर्श प्रदान करने और जागरूकता बढ़ाने में भी मदद मिलती है, जिससे भविष्य में मामलों की संख्या कम हो जाती है.
जल्द जांच के सकारात्मक परिणाम आये सामने
वहीं, ICMR - NIIH में वैज्ञानिक एफ डॉ प्रभाकर केदार ने कहा, " बीमारी का जल्दी पता चल जाने से डॉक्टर इलाज शुरू कर सकते हैं, जिससे कई जिंदगियां बच सकती हैं. "
उन्होंने कहा, "यह जांच भारत के आदिवासी और उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहां कई मामलों का निदान नहीं हो पाता है, जिससे बचपन में ही मृत्यु हो जाती है."
अध्ययन के दौरान, 7,275 बच्चे (11.4 प्रतिशत) सिकल सेल जीन के वाहक पाए गए. इसका मतलब है कि उन्हें यह बीमारी नहीं है, लेकिन वे इसे अपने बच्चों को दे सकते हैं. डॉ. केदार ने कहा, "569 बच्चे (0.9 प्रतिशत) सिकल सेल डिजीज से पीड़ित पाए गए."
उन्होंने आगे बताया, "निदान की पुष्टि के लिए इन शिशुओं की जांच की गई, माता-पिता को सिकल सेल डिजीज के बारे में जानकारी दी गईं, जटिलताओं
से बचने के लिए निवारक उपाय किए गए, तथा परिवार में आगे से प्रभावित बच्चों के जन्म से बचने के लिए जन्मपूर्व निदान के बारे में जानकारी दी गई."
डॉ. केदार ने कहा कि शिशुओं को पूरी देखभाल दी गई, जिसमें पेनिसिलिन प्रोफिलैक्सिस, फोलिक एसिड सप्लीमेंटेशन, उचित टीकाकरण और हाइड्रोक्सीयूरिया थेरेपी शामिल है. इसके परिणामस्वरूप इन बच्चों में मृत्यु दर में जो 20-30 प्रतिशत वो कम होकर 5 प्रतिशत से भी कम हो गईं." डॉ. केदार ने कहा कि यह अध्ययन दर्शाता है कि नवजात शिशुओं की जांच कारगर है और इससे जीवन बचाया जा सकता है, खासकर उन जगहों पर जहां आदिवासी क्षेत्रों जैसे मामलों की संख्या अधिक है.
इस अध्ययन में ये भी सामने आया कि जिन 63,536 शिशुओं की जांच की गईं उसमें 57 प्रतिशत के माता-पिता आदिवासी थे और बाकी अन्य थे.