मणिपुर में हिंसा (Manipur Violence) के मुद्दे पर संसद में हंगामा मचा है. मोदी सरकार (Modi Government) के दूसरे कार्यकाल में विपक्ष ने पहला अविश्वास प्रस्ताव (No Confidence Motion) भी पेश कर दिया है. मणिपुर को लेकर बीजेपी और विपक्ष में बयानबाजी भी चल रही है. दूसरी ओर मणिपुर के कई इलाकों में लोग अपनी जान की चिंता में सो भी नहीं पा रहे हैं. बुधवार को मोरेह जिले में भीड़ ने कम से कम 30 घरों और दुकानों को आग लगा दी. उन्होंने सुरक्षा बलों पर गोलीबारी भी की. खाली पड़े ये घर म्यांमार सीमा के करीब मोरेह बाजार क्षेत्र में थे.
पुलिस सूत्रों के मुताबिक भीड़ के निशाने पर सुरक्षा बलों के ट्रांजिट कैंप थे. आगजनी और गोलीबारी के बाद यहां बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है. इस बीच NDTV की टीम ने हिंसाग्रस्त मणिपुर के तोरबुंग गांव में एक रात गुजारी और जमीनी स्थिति का जायजा लिया.
मणिपुर की पहाड़ियों से लगी इंफाल घाटी के हाशिए पर मौजूद इस गांव ने जातीय झड़पें शुरू होने के बाद से बहुत हिंसा देख ली है. यहां दोनों ही पक्षों ने अपने अपने गांवों की रक्षा के लिए हथियार उठा लिए हैं. इस इलाके में लगातार गोलीबारी के बीच अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है. गांव के लोग रात में सो नहीं पाते, क्योंकि रात ढलते ही फायरिंग की आवाज़ें आने लगती हैं. सुबह होने पर ही ये आवाजें थमती हैं.
गोली की आवाज के साथ ही गांव के पुरुष अलर्ट हो जाते हैं और गांव की सुरक्षा में तैनात हो जाते हैं. वहीं, महिलाएं और बच्चे चुपचाप कोने में पड़ी रहती है. बच्चों और महिलाओं की आंखों में खौफ साफ-साफ देखा जा सकता है. रातभर गोलियों की आवाजें आती हैं और पूरी रात पुरुष, महिलाएं और बच्चे घर के बाहर चादर या प्लास्टिक मैट में बैठी या लेटी रहती हैं. गांव के लोग एक दूसरे को गार्ड करते हुए रात गुजारते हैं.
तोरबुंग गांव के टीएच मनिहार सिंह ने NDTV से बातचीत में कहा, "3 मई यानी हिंसा की शुरुआत से अब तक हर रात ऐसी ही गोलियां चलती हैं. करीब 2 दिन पहले गांव में 50 से ज्यादा बम (सुतली बम) गिरा था. हमें रोज इसी तरह रहना पड़ता है." ये हिंसा कब तक चलेगी? इसके जवाब में मनिहार कहते हैं, "ऐसा कब तक चलेगा या कब थमेगा... ये तो सरकार पर निर्भर करता है. सरकार क्या समझौता करेगी उसपर निर्भर करता है."
इस बीच गांव में सेना के जवान भी पेट्रोलिंग करते दिखते हैं. इसके बाद NDTV की टीम ने इसी गांव की फुकसुन जाबिचानो से बात की. उन्होंने बताया, "3 मई से हम लोग ऐसे ही रास्ते पर सो रहे हैं. हमारे गांव के पुरुष गांव की सुरक्षा के लिए रातभर जगे रहते हैं. उनकी तरह हम ऐसा ही कर रही हैं, ताकि उन्हें सपोर्ट दे सके."
जैसे हम रात को गाड़ी से बाहर निकलते हैं, तो रास्ते में एक जैसा दृश्य देखने को मिलता है. लोग अपने-अपने घरों के बाहर चादर या प्लास्टिक की मैट पर चुपचाप लेटे या बैठे हैं. कोई किसी से बोल नहीं रहा. सिर्फ एक आवाज गुंजती है... गोलियां चलने की आवाज... लोगों को डर रहता है कि गोली उनतक भी आ सकती है. इसलिए वो अलर्ट रहते हैं.
तोरबुंग गांव में रात के 12 बजे भी गोलियों के चलने की आवाजें आ रही हैं. 7.62 एलएमजी, असॉल्ट राइफल की आवाजें हैं. यहां के एक युवक ने बताया, "शुरू में फायरिंग की आवाजें कम थीं. हर रात ये आवाजें बढ़ती जा रही हैं. हमें डर है कि गोली इधर न आ जाए. इसलिए मैंने घर पर एक बंकर टाइप का बना रखा है. यहां बच्चे और महिलाएं छिप जाती हैं."
NDTV की टीम ने इस गांव में शाम के 7 बजे से रात के 2 बजे तक लगातार गोलियों और बम की आवाजें सुनीं. हालात बेहद तनावपूर्ण और खौफनाक हैं. इंफाल घाटी और मणिपुर के पहाड़ों के सटे हुए इलाकों में वहां सबसे ज्यादा हिंसक घटनाओं और गोलियों चलने की खबर है. इसलिए वहां के लोग अपने लिए अपनों के लिए और गांव के लिए रात भर जगे रहते हैं. इन लोगों का सरकार से बस एक ही सवाल है- ये स्थिति कब सुधरेगी?
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