NDTV संवाद कार्यक्रम में देश के संविधान के विभिन्न पहलुओं पर हुई गहन चर्चा

एनडीटीवी के पहले एपिसोड संविधान @75 में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एके सीकरी, पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू सहित देश की जानी-मानी हस्तियां शामिल हुईं.

विज्ञापन
Read Time: 11 mins

पूर्व सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ एनडीटीवी के संविधान पर चर्चा के कार्यक्रम में भाग लिया.

नई दिल्ली:

एनडीटीवी संवाद कार्यक्रम के पहले एपिसोड संविधान @75 में रविवार को 75वीं वर्षगांठ मना रहे देश के संविधान के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा हुई. सुप्रीम कोर्ट के 50वें चीफ जस्टिस रहे डीवाई चंद्रचूड़, 49वें चीफ जस्टिस रहे यूयू ललित, पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और संसदीय कार्यमंत्री किरेन रिजिजू सहित देश की जानी-मानी हस्तियां शामिल हुईं. डीवाई चंद्रचूड़ ने यहां जजों की नियुक्ति वाले कॉलेजियम सिस्टम की पुरजोर वकालत की और कहा कि इसके काम करने को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं. यह संघीय व्यवस्था में बहुत अच्छी व्यवस्था है. वहीं रविशंकर प्रसाद ने कहा कि संविधान की मूल प्रति में जिस तरह से भगवान राम, हनुमान की तस्वीरें लगी हैं, आज अगर संविधान लिखा जाता और इस तरह की तस्वीरें लगतीं तो कहा जाता कि भारत हिंदू राष्ट्र बन गया है. संविधान को बचाने की बात करने वाले संविधान तक को नहीं समझते हैं. किरेन रिजिजू ने कहा कि सन 1976 में संविधान पर सबसे बड़ा हमला किया गया था. संविधान में कही गई बातों का पालन करेंगे तो भारत विकसित होगा.  

जजों के राजनीति में जाने पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जज भी एक आम नागरिक हैं और रिटायर होने के बाद वो सब कुछ करने के हकदार हैं, जो एक आम नागरिक कर सकता है. संविधान में जजों के रिटायर होने के बाद किसी काम को करने पर रोक नहीं है. हालांकि, सोसायटी में जजों के लिए हायर स्टैंडर्ड है कि उन्हें कैसे व्यवहार करना चाहिए. तो ये जजों को खुद ही तय करना होगा कि उन्हें क्या करना चाहिए. कॉलेज के दिनों को याद करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने दिलचस्‍प किस्‍सा सुनाया. उन्होंने बताया कि कॉलेज के दिनों में वह दिल्‍ली की फेमस मार्केट कनॉट प्‍लेस में घूमने जाया करते थे. उन दिनों वह डीटीसी की बसों में सफर करते थे और दोस्‍तों के साथ कनॉट प्‍लेस में टाइम पास करने जाते थे.तब हम कहते थे सीपी में टीपी. कई लोग पूछते थे कि ये सीपी में टीपी क्‍या है? इसका मतलब हमारे लिये था- कनॉट प्‍लेस में टाइम पास.

कानून मंत्री रहे रविशंकर प्रसाद ने संविधान की मूल प्रति दिखाई और बताया कि इसमें फंडामेंटल राइट्स के ऊपर प्रभु राम की तस्वीर लगी है. इसमें वो लंका विजय के बाद भाई लक्ष्मण और माता सीता के साथ लौट रहे हैं. मूल संविधान में गौतम बुद्ध, महावीर और हनुमान जी की भी तस्वीर लगी है. नटराज की भी तस्वीर लगी है. उन्होंने सभी की तस्वीरें भी दिखाईं और संविधान बनाने वाले सदस्यों के हस्ताक्षर भी दिखाए. इसके बाद उन्होंने सवाल किया कि संविधान आज बना हुआ होता और अगर इन तस्वीरों को आज लगाया जाता तो क्या कहा जाता कि भारत हिंदू राष्ट्र बन गया है. यही है संविधान को बचाने की बात करने वाले न संविधान को समझते हैं और न संविधान को बनाने वालों की मानसिकता को समझते हैं. मैं साफ बता दूं ये देश लोकतंत्र है. लोकतंत्र से चलेगा. चुनाव से चलेगा. जनता के वोट से चलेगा. इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं विकास भी करेंगे और विरासत को भी बचाएंगे. लाल किले से 15 अगस्त को उन्होंने ये बात कही थी.

Advertisement

कानून मंत्री रहे किरेन रिजिजू ने कहा कि, ''एनडीटीवी ने जो कार्यक्रम रखा है, यह बहुत सही समय पर और बहुत ही उपयोगी कार्यक्रम है. उन्होंने कहा कि सन 1976 में संविधान पर सबसे बड़ा हमला किया गया था. संविधान में कही गई बातों का पालन करेंगे तो भारत विकसित होगा.यह तो सबको मालूम है कि संविधान स्टेटिक नहीं है, संविधान एक जर्नी है. इस सफर में कई बदलाव होते आए हैं और आगे भी होते रहेंगे. लोकतंत्र में कोई भी चीज स्थायी नहीं होती है, लेकिन कुछ मूल चीजें स्थायी होती हैं. उनमें छेड़छाड़ करनी भी नहीं चाहिए. मैंने देश के कानून मंत्री के रूप में भी काम किया है. कई विभागों को हमने देखा है. पूरा ज्ञान हमारे पास नहीं है कि संविधान बनाते समय क्या हुआ था? कुछ छोटी, कुछ बड़ी घटनाएं भी हैं. कई चीजें हैं, जो हमारे सामने उभरकर नहीं आईं हैं. 2010 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी जी ने संविधान यात्रा निकाली. खुद पैदल चले. इससे पहले किसी राजनेता ने ऐसा काम कभी नहीं किया. जब मोदी जी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने 2015 में पहली बार संविधान दिवस मनाने की प्रक्रिया शुरू की. जिस पवित्रता के साथ संविधान को अपने जीवन का हिस्सा पीएम मोदी ने बनाया है, मैं बाबा भीमराव आंबेडकर के अलावा किसी और नेता के बारे में सोच भी नहीं सकता, जो संविधान को इतनी इज्जत देते हैं. मगर संविधान के लिए कुछ कर्तव्य भी करना होता है. प्रधानमंत्री मोदी ने आह्वान किया है कि लोगों को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए. आपके अधिकार की रक्षा करना सरकार का दायित्व है.''

Advertisement

देश के 49वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया यूयू ललित ने कहा कि संविधान ये नहीं मानता कि सरकार का कोई धर्म हो. हर नागरिक अपना धर्म अपना सकता है. ये उसका अधिकार है. हालांकि, इस देश में धर्म के नाम पर हिंसा और दंगे होते आए हैं. 1947 के दंगे भी धर्म के नाम पर हुए. ये हमारे इतिहास का एक जख्म है. पिछले 75 सालों में हम इससे उबरे हैं, लेकिन जब-तब ये सामने आ जाता है. संविधान तो इसको सपोर्ट नहीं करता. एक राष्ट्र का तो कभी ये उद्देश्य नहीं होता कि हिंसा बढ़े. अभी जो तीन नये आपराधिक कानून आए हैं, उसमें आज तक जो नहीं था, वो सब कुछ है. मॉब लिंचिंग तक पर कानून हैं. जैसे जैसे राष्ट्र आगे बढ़ता जाता है, वैसे वैसे ये कम होता जाना चाहिए.

Advertisement

जस्टिस एके सीकरी ने कहा कि संविधान बने 75 साल हो गए. थॉमस जेफरसन ने 150 साल पहले कहा था कि कोई भी संविधान 17 या 19 साल बाद बदल देना चाहिए. उस समय के दुनिया के संविधान को देखकर उन्होंने कहा था. उस समय अमेरिका का संविधान नया था. आज हमारा संविधान 75 साल हो गए. इस बीच हमारे आसपास और दुनिया के कई देशों का संविधान बदल गया. कइयों के तो 3-4 बार संविधान बदल चुके हैं. हमारे संविधान की खासियत ये है कि मानव अधिकारों का खास ख्याल रखा गया था.

Advertisement

जस्टिस ज्ञान सुधा मिश्रा ने कहा कि संविधान के मूल्यों की आधारशिला संविधान बनाने वालों ने रखा. मगर बदलाव प्रकृति का नियम है. इसलिए वो हमेशा एक जैसा नहीं रह सकता. ये अच्छी बात है कि संविधान में अमेंडमेंड की गुंजाइश है. भारत के पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विकास सिंह ने कहा कि संविधान में समाज में सभी को साथ लेकर चलने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. अब यही देखते हुए महिलाओं के लिए भी आरक्षण की व्यवस्था की गई है. न्यायिक तंत्र में भी इसकी व्यवस्था होनी चाहिए. इसलिए संविधान में बदलाव देश को आगे बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता नलिन कोहली ने कहा कि  75 साल में हम काफी आगे बढ़ गए और संविधान भी बदलावों के साथ आगे बढ़ता आया. यही संविधान की खूबसूरती है. पहले कोई मानता नहीं था कि भारत विकसित देश बन सकता है, लेकिन अब सब मानते हैं कि 2047 में न होकर 2040, 2045 तक भी हम विकसित देश बन सकते हैं और इसमें संविधान को भी उस हिसाब से बदलना होगा. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि संविधान बनाने वालों ने इसे बनाते समय सोचा था कि भारत इस हिसाब से विकसित होगा. उन्होंने आगे आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए भी संविधान में बदलाव का रास्ता छोड़ रखा था. इस संविधान को बदलने या दूसरा संविधान को लाने की जरूरत नहीं है.

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि इंडिया से ज्यादा विविधता वाला देश कोई नहीं है. हिंदुस्तान का जो इलेक्शन कमीशन है, उसे संविधान में सबसे पहले जोड़ा गया था और यही इसकी महत्ता बताता है. यूरोप के 50, अफ्रीका के 54 देश हैं उससे बड़ा हमारा देश का चुनाव है. 90 देशों के बराबर भारत का एक चुनाव है. हिलेरी क्लिंटन ने तो कहा था कि ये गोल्ड स्टैंडर्ड है. संविधान के जानकार फैजान मुस्तफा ने कहा कि हमने अपने संविधान में दूसरे देशों से लिया बहुत कुछ है, लेकिन उसमें कुछ जोड़कर या संसोधन करके. संविधान का मूल उद्देश्य शक्ति देना नहीं, बल्कि शक्ति पर नियंत्रण रखना है. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि इंडिया से ज्यादा विविधता वाला देश कोई नहीं है.  यही हमारी ईमानदारी है. हिंदुस्तान का जो इलेक्शन कमीशन है, उसका कमीशन सबसे पहले बना था और यही इसकी महत्ता बताता है.

इंटरनेट फ्रीडम के सह-संस्थापक और अधिवक्ता अपार गुप्ता ने कहा कि जिला अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट में डिजिटल व्यवस्था लागू हो गई है. सुप्रीम कोर्ट में तो अब ज्यादातर वकील फाइलें कम और आईपैड लिए ज्यादा दिख रहे हैं. अधिवक्ता पल्लवी बरूआ ने कहा कि जब हम लॉ की पढ़ाई कर रहे थे तो किताबों ही पढ़ाई का साधन थीं, मगर वो बहुत महंगी होती थीं. डिजिटल होने के बाद सारी किताबें अब आईपैड में आ गईं हैं. लीगल रिसर्च काफी पहले शुरू हो गया था और अब काफी कुछ इंटरनेट पर उपलब्ध है.अधिवक्ता खुशबू जैन ने कहा कि वकीलों का डिजिटल कोर्ट में उपस्थित होना बहुत जरूरी हो गया है. कई बार वकीलों को सिर्फ हाजिरी के लिए कोर्ट में खुद में आकर उपस्थित होना पड़ता था. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट आने में वकीलों का काफी समय और पैसा बर्बाद होता था. इससे आरोपियों, गवाहों और केस करने वालों को फायदा हो रहा है.अधिवक्ता हितेश जैन ने बताया कि संविधान में तकनीक का इस्तेमाल कर न्याय आसान हो सकता है. नये तीनों आपराधिक कानूनों में तकनीक का खास ख्याल रखा गया है.जस्टिस चंद्रचूड़ ने बहुत सही कहा है कि न्यायिक तंत्र से जुड़े लोगों को सोशल मीडिया की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए.

राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने विपक्ष की और से संविधान के खतरे में होने की बात कहे जाने से जुड़े सवाल पर कहा कि जब हम कहते हैं कि हनन हो रहा है तो बड़ी बात कहते हैं. मूल्यों का हनन हो रहा है.संविधान के मूल तत्वों के साथ कमी की जा रही है. संविधान के मूल्यों वाले कई स्तंभ हैं, धर्म निरपेक्षता, पंथ निरपेक्षता, सौहार्द, संघीय ढांचा वगैरह...इसके अलावा हमारे स्तंभ हैं संसदीय गणतंत्र, सीएजी, ईसी... यदि आप स्तभों को कमजोर करते हैं, तो हनन कर रहे हैं. पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि संविधान 75 साल में सिर्फ एक ही बार तोड़ा गया था, इमरजेंसी के समय. तब हम 14 महीने जेल में रहे थे, सत्याग्रह करके गए थे. देश में एक लाख 30 हजार लोग बंदी बनाए गए थे. यह देश को पता भी नहीं चला, सेंसरशिप थी. इमरजेंसी क्यों लगाई गई थी, क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा जी को पद से हटाया था. पूर्व राज्यसभा सांसद और पूर्व राजदूत डॉ पवन वर्मा ने कहा कि, ''संविधान महज एक कागज का टुकड़ा है, यदि उसकी आत्मा को जीवित न रखा जाए. इमरजेंसी में संविधान के कुछ मूल सिद्धांतों का हनन हुआ था. वह 1977 की बात है. ऐसा नहीं है कि सरकारें आज की हों या पहले की हों, संविधान की आड़ में संविधान की आत्मा पर प्रहार होता चला आया है."

इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए एनडीटीवी के मैनेजिंग एडिटर संतोष कुमार ने 'NDTV इंडिया संवाद' कार्यक्रम के बारे में बताया कि यह एक ऐसे सिलसिले की शुरुआत है, जो बड़े मुद्दों और विचारों का मंच बनेगा. उन्होंने बताया कि इस सीरीज में देश और जनता के मुद्दों पर गंभीर और रोचक बातचीत की जाएगी. 'संविधान @75' इसकी पहली किस्त है. देश जब संविधान की 75वां वर्षगांठ का जश्‍न मना रहा है, ऐसे में यह बेहद खास कार्यक्रम इसमें एक नया आयाम जोड़ेगा.

Topics mentioned in this article