कमाल की शख़्सियत: लखनऊ में एक शाम कमाल खान के नाम, जावेद अख्तर ने ऐसे किया याद

कमाल कोई शख्स नहीं थे, बल्कि कमाल ऐसे कमाल के आदमी थे, जो कुछ अलग किस्म की कद्रें लेकर जिंदगी जी रहे थे. उन्हीं कद्रों को वो अपने काम में भी लेकर आए थे. लखनऊ में कमाल खान पर रखे गए खास प्रोग्राम का नाम लखनऊ के 'कमाल और कमाल का हिंदुस्तान' रखा गया है

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एनडीटीवी के मशहूर पत्रकार कमाल खान का बीते साल 14 जनवरी को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.

लखनऊ:

एनडीटीवी के पत्रकार कमाल खान को गुज़रे हुए करीब सवा साल का वक्त गुजर चुका है, लेकिन उनकी यादें अब भी उतनी ही ताज़ा हैं. कमाल खान के शहर लखनऊ में उनकी यादों के चिराग आज शाम जले, तो अंधेरे में चारों तरफ वैसे ही उजाला फैल गया, जैसा वो अपनी खबरों, अपनी आवाज़ और अपने नफ़ीस लहजे से बिखेरा करते थे. ख़बरों की दुनिया में उन जैसा लफ़्ज़ों का जादूगर शायद ही कभी हुआ हो, जो अपनी मद्धम आवाज़ में तल्ख़ से तल्ख़ बात भी ऐसी दिलकशी से कह जाते थे कि किसी का दिल नहीं दुखता था. 

आज के दौर में कमाल खान की कमी बेहद खलती है ख़ासकर एनडीटीवी के परिवार को जिसका वो अटूट हिस्सा थे. लफ़्ज़ों के इस जादूगर को याद करने जावेद अख़्तर भी आए. उन्होंने अपने अंदाज़ में कमाल और उनके प्यारे शहर लखनऊ की बातें कीं. जावेद अख्तर के अलावा कई नामी लोगों ने कमाल खान को अपने-अपने अंदाज में याद किया. कमाल खान एनडीटीवी में ही नहीं, बल्कि पूरे मीडिया जगह में अपनी अमिट छाप छोड़ गए.

कमाल कोई शख्स नहीं थे, बल्कि कमाल ऐसे कमाल के आदमी थे, जो कुछ अलग किस्म की कद्रें लेकर जिंदगी जी रहे थे. उन्हीं कद्रों को वो अपने काम में भी लेकर आए थे. लखनऊ में कमाल खान पर रखे गए खास प्रोग्राम का नाम लखनऊ के 'कमाल और कमाल का हिंदुस्तान' रखा गया है. कमाल वैसे तो जौनपुर के थे, लेकिन बहुत कम उम्र में लखनऊ आ गए थे. हालांकि, जौनपुर और लखनऊ में कोई खास फर्क नहीं है. जौनपुर और लखनऊ ने एक-दूसरे से बहुत कुछ लिया और दिया है.

अपने आप में कमाल थे कमाल
वापस लौटते हैं लखनऊ के कमाल खान पर. कमाल खान के बारे में जावेद अख्तर कहते हैं, "कमाल खान अपने आप में कमाल थे. आज इतने सारे न्यूज चैनल हैं. जहां 24 घंटे कुछ न कुछ चलता रहता है. हर चैनल में 8-10 एंकर हैं, जो तुलना करते हैं. कमाल खान से मेरे कोई निजी ताल्लुकात नहीं थे. अगर मुझसे किसी ने कहा कि लखनऊ में ऐसा जलसा है, क्या आप जाएंगे? मैं बता दूं कि आखिर वो क्या चीज थी, जो मुझे यहां खींच लाई. जवाब है भी कमाल है.... कमाल खान. 

कमाल के अंदर ड्रामा नहीं था- जावेद अख्तर
जावेद अख्तर सहाब आगे कहते हैं, "ये एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है. यहां तमाम लोग स्टेज पर आते हैं और स्क्रीन पर बोलते हैं. लेकिन कोई बात जरूर कमाल खान में थी, जिससे ये जाहिर होता था कि ये आदमी कोई डायलॉग नहीं बोल रहा है. ये आदमी पंचलाइन नहीं बोल रहा है. ये आदमी वो बोल रहा है, जो इसके सच्चे दिल से सीधे निकल रहा है. इसके अंदर कोई ड्रामा नहीं है. ये कोई नाटकीय बातें नहीं करता. कमाल की यह सच्चाई मुझे आज लखनऊ खींच लाई है".

14 जनवरी 2022 को हुआ था निधन
बता दें कि एनडीटीवी के मशहूर पत्रकार कमाल खान का बीते साल 14 जनवरी को दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. 61 साल के कमाल खान अपने परिवार के साथ लखनऊ के बटलर पैलेस स्थित सरकारी बंगले में रहते थे. उनकी शादी पत्रकार रुचि कुमार के साथ हुई थी. 

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22 साल तक रहे NDTV के साथ
कमाल खान एनडीटीवी के उत्तर प्रदेश ब्यूरो में कार्यकारी संपादक थे. वह बीते 3 दशकों से पत्रकारिता में थे और 22 साल से एनडीटीवी से जुड़े थे.

कमाल खान को मिल चुका था रामनाथ गोयनका पुरस्कार 
कमाल खान को उनकी बेहतरीन पत्रकारिता के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कार मिला था. साथ ही भारत के राष्ट्रपति द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुके थे. कमाल खान खबर को पेश करने के अंदाज को लेकर काफी मशहूर थे और देश भर में उनके अंदाज और रिपोर्टिंग को सराहा जाता था. 

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