- लोकसभा में राहुल गांधी ने सुल्तानपुर के मोची रामचेत की जिंदगी बदलने का बिहार चुनाव में दावा किया है.
- राहुल गांधी ने रामचेत को जूते सिलने की मशीन दी थी जिससे उनके व्यवसाय में वृद्धि होने का दावा किया गया.
- रामचेत वर्तमान में बीमार हैं और उनकी दुकान पर दो कर्मचारी ही काम कर रहे हैं, दस कर्मचारी का दावा गलत है.
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने बिहार चुनाव में उत्तर प्रदेश के एक मोची का नाम लेकर उनकी किस्मत बदलने का दावा किया है. ये मोची सुल्तानपुर जिले के रामचेत हैं. आज राहुल गांधी ने उस रामचेत की जिंदगी के बदलाव की कहानी बिहार के लोगों को सुनाई. ऐसे में एनडीटीवी की टीम ने सुल्तानपुर पहुंची और रामचेत से मिलकर राहुल गांधी के दावों की हकीकत जानने की कोशिश की.
रामचेत का नाम बिहार चुनाव में एक बार फिर चर्चा में आ गया है. रामचेत पेशे से मोची हैं. लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी सुल्तानपुर आए थे. राह में एक जगह रुके और रामचेत से मुलाकात की. इस मुलाकात के बाद राहुल गांधी ने इन्हें एक जूते सिलने की मशीन दी थी और अब बिहार चुनाव में दावा कर रहे हैं कि इनके हालात बदल चुके हैं और इन्होंने तकरीबन 10 लोगों को अपने यहां रोजगार भी दे रखा है.
बीमार हैं रामचेत: राहुल गांधी
रामचेत की दुकान सुल्तानपुर से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर अयोध्या हाईवे पर गुप्तारगंज के पास स्थित है. राहुल गांधी दावा कर रहे हैं कि रामचेत को छोटी सी मदद भेजने के बाद उनकी जिंदगी बदल गई. आज रामचेत की दुकान में दस कर्मचारी काम कर रहे हैं. हालांकि उनके दावे को लेकर हमने रामचेत के बेटे से बात की.
इस दुकान में रामचेत मोची का बेटा बैठकर एक रिश्तेदार के साथ काम कर रहा है. चंद ग्राहक भी खड़े हैं. फिलहाल रामचेत मोची यहां पर नहीं हैं, वो अपने घर में हैं क्योंकि वो बीमार हैं. राहुल गांधी ने रामचेत से मुलाकात की और उनकी मांग पर एक मशीन भिजवाई थी, जिससे वे अपना व्यवसाय बढ़ा सके.
राहुल गांधी की दी मशीन पर महीनों से काम नहीं
रामचेत के परिवार में दो बेटे और एक बेटी है. बेटी की शादी हो चुकी है जबकि छोटा बेटा पिता से कोई मतलब नहीं रखता है. रामचेत का बड़ा बेटा उनके कारोबार में हाथ बंटाता है. पहले कैसे हालात थे और अब कैसे हैं. इस सवाल पर उनका बेटा राघव राम बताता है कि राहुल गांधी ने जो मशीन दी थी, उस पर कई महीनों से काम बंद है.
राघव बताते हैं कि पिता रामचेत की तबीयत खराब हो गई है, लिहाजा जो कारीगर काम करने आए भी थे, वो भी काम छोड़ कर चले गए. आजकल हम अकेले काम कर रहे हैं, पहले दो कारीगर आते थे. उन्होंने बताया कि काम बढ़ा जरूर है, लेकिन हालात नहीं बदले यानी रामचेत की दुकान में दस कर्मचारी के काम करने का दावा तो वैसे ही गलत साबित हुआ है, क्योंकि दो कर्मचारी ही रखे गए थे. हालांकि वो भी थोड़े समय के लिए. अब हालात बद से बदतर होने के बाद उन्हें भी हटा दिया गया.
राहुल गांधी का एहसान मानते हैं रामचेत
उधर, रामचेत महीनों से अपने घर के बगल एक कोने में छप्पर के नीचे बिस्तर पर पड़े हैं. उनके गर्दन में गांठ निकल आई थी. इलाहाबाद में इलाज हुआ, लेकिन शरीर में इतनी भी ताकत नहीं बची कि बैठकर बातें कर सकें. वो बिस्तर पर ही रहते हैं. इसी दौरान उन्होंने अपने हालात को बयां किया और कहा कि ये संभव जरूर था कि वो ठीक होते तो शायद उनका रोजगार बढ़ता, लेकिन कभी ऐसी स्थिति नहीं आई कि 10 लोग काम पर लगे हों. हालांकि रामचेत राहुल गांधी की मदद का एहसान मानते हैं.
रामचेत राहुल गांधी के एहसानमंद जरूर हैं लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. आज रामचेत अपना जीवन बिस्तर पर ही बिता रहे हैं यानी राहुल गांधी ने मदद जरूर की लेकिन रामचेत के जो हाल थे, वो आज उससे बदतर हालात में हैं. शायद राहुल गांधी ने सीधे या अपने स्थानीय नेताओं से रामचेत की वास्तविक स्थिति के बारे में पूछ लिया होता तो चुनावी सभा में ऐसा दावा नहीं करते.














