NDTV की ग्राउंड रिपोर्टः 25 साल पुरानी वो दास्तां...करगिल में तब कैसे चल रहा था युद्ध, एक पत्रकार की आंखों देखी

करगिल युद्ध (Kargil War) की 25वीं सालगिरह के खास मौके पर एनडीवी के पत्रकार विष्णु सोम ने युद्ध के उन पलों को साझा किया, जिनके साक्षी वह ढाई दशक पहले बने थे. उसस समय करगिल का क्या मंजर था, उनकी जुबानी जानिए.

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दिल्ली:

करगिल युद्ध को 25 साल बीत चुके हैं. आज करगिल विजय दिवस की 25वीं सालगिरह है. इस खास मौके पर NDTV की टीम उसी जगह पर मौजूद है, जहां देश के जांबाजों ने दुश्मन देश पाकिस्तान को धूल चटाई थी. इस दौरान एनडीवी ने पत्रकार विष्णु सोम ने उस दौर के कुछ खास पलों को याद किया. खास बात ये है कि ये पत्रकार आज से 25 साल पहले भी उसी जगह पर करगिल कवरेज के लिए मौजूद थे. वहीं लंबे समय से डिफेंस कवर रहे राजीव रंजन ने भी कई अहम बातें शेयर की हैं. NDTV की ग्राउंड रिपोर्ट में उन्होंने क्या कुछ कहा, पढ़िए.

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फिर याद आई युद्ध की भयावहता

विष्णु सोम ने कहा कि मेरे लिए भी ये काफी इमोशनल विजिट है. 25 साल पहले मैं एक एक युवा पत्रकार के तौर पर जब यहां आया था तो मैने जो देखा था वो डिस्क्राइब करना कभी-कभी मुश्किल हो जाता है. बहुत बमबारी चल रही थी, युद्ध हो रहा था. उस टाइम हमें पता नहीं था कि कितने दिन यह युद्ध चलेगा. 25 साल बाद उन शहीद जवानों और अफसरों के माता-पिता, उनके भाई-बहनों, पत्नियों से मिलना काफी मुश्किल रहा. मैं 25 साल से काफी परिवारों से जुड़ा रहा हूं. बात करता रहता हूं. मिलता हूं कभी-कभी. जब भी मैं उनके घर जाता, वे मुझे छोड़ते ही नहीं. कहते कि हमारे साथ एक लंच या डिनर करो. कभी-कभी मुझे कोई शर्ट देकर कहते कि ये शर्ट पहन लेना. ये हमारी ओर से गिफ्ट है और अगर साइज ठीक नहीं है तो उसको चेंज करना फिर पिक्चर भेजना क्योंकि हम देखना चाहते हैं कि आप ये पहन रहे हो. जनरल वीपी मलिक जो तब चीफ थे, कल शाम को भी फिर से उनसे मुलाकात हुई एक अजीब कहानी यह है कि उनका बेटा जनरल सचिन मलिक अब उस डिविजन में तैनात है, जिसको मलिक पहले कमांड करते थे. 

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जवानों को नहीं थी मौसम की जानकारी

राजीव रंजन ने कहा कि द्रास की हाइट अगर बात करें तो 10,000 फीट के आसपास है. टाइगर हिल की बात करें, तोलोलिंग की बात करें तो ये 14000 फीट से 18000 फीट पर हैं. यहां अगर आप आते हैं, जैसे श्रीनगर से या कहीं से आप आ रहे हैं, तो ऐसा नहीं कि तुरंत आकर आप दौड़ना शुरू कर देंगे. आपकी सांस फूलने लगेगी. आपके शरीर को मौसम के मुताबिक अनुकूल होना चाहिए. उस वक्त जो जवान शुरू में जब आए थे, उनको बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी. जो पलटन यहां पर आई थी उनको शुरू में यह बताया गया कि ऊपर पहाड़ियों पर पांच या छह  पाकिस्तानी मुजाहिदीन बैठे हैं. उसके बाद धीरे-धीरे जब परते खुलनी शुरू हुईं तो उसके बाद लगा कि यहां लड़ाई कितनी जद्दोजहद वाली है. जैसे आपको एक उदाहरण बताऊं कि 18 ग्रेनेडियर्स के जो पलटन आई थी वह 22 दिन लगातार तोलोलिंग को घेर कर बैठी रहे. उनके जवान जो हैं शहीद होते रहे. लेकिन उन्होंने हौसला नहीं छोड़ा. 

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सेना के पास नहीं थे अच्छे हथियार

फिर उनका 18 गिन का साथ मिला.  टूर राजदीप का साथ मिला और उसके बाद जो है तोलन की पहाड़ी पर जो है कब्जा चोटी पर आ गया तो आप ये समझिए कि केवल मुझे जो लगता है  कि सेना के पास उतने अच्छे हथियार नहीं थे. उतनी जानकारी नहीं थी. खुफिया जानकारी नहीं थी. ऊपर से देखा नहीं जा सकता था. जो सबसे बड़ी चीज थी वह था भारतीय सेना का जोश और हौसला था. हमें किसी भी तरह जीतना है, भले ही हमारा कोई नुकसान हो रहा हो, लेकिन हमें ऊपर जो चोटी है, उस पर तिरंगा फहराना है. 

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सेना के पास सिर्फ बेसिक हथियार थे

विष्णु सोम ने कहा कि राजीव एकदम सही कह रहे हैं. ये माउंटेन वॉर फेयर जो 25 साल पहले हमने देखा था वो कभी हुआ नहीं था. इस एल्टीट्यूड में 16000 177000 18 19000 फीट पे हम नॉर्मल लोग जब ऊपर से मतलब प्लेन से आते हैं तो ब्रीदिंग की कभी-कभी दिक्कत होती है. आप सोच लीजिए 25 साल पहले हमारे सैनिक इस ऊंचाई पर लड़ रहे थे तो उनके साथ उनके पास सिर्फ बेसिक हथियार थे. इंसेस राइफल होती थी और उन दिनों कुछ एके 47 भी होते थे. बस वो चढ़ जाते थे वहां और पाकिस्तानी फौज ऊपर से शूट करते थे. जो लोग ऊपर थे उनका एक एडवांटेज होता था ही हु होल्ड्स द हाइट्स कमांड्स द बैटल. हमारे फौज तो मतलब उनके सामने जो उनका मिशन जो था बहुत ही कठिन था और वो कर पाए. क्यों कि हमारे पास विक्रम बत्रा, अनुज नायर, सौरभ कालिया और काफी ऐसे सैनिक थे. अब मैं एक और चीज कहना चाहूंगा कि जरूर इन सैनिकों के बाद इन ऑफिसर के बारे में बात करनी चाहिए पर आर्टिलरी शेलिंग जो हम कर रहे थे हमारे बोफोर्स गंस हमारे 130 एमएम गंस. उसके बिना यह जंग हम जीत नहीं पाते थे तो आर्टिलरी का बहुत अहम रोल था. 

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पहाड़ी इलाके में लड़ाई के लिए क्या जरूरी?

रंजीव रंजन ने कहा कि पहाड़ी इलाके में अगर लड़ाई की बात करें आप अगर नीचे माउंटेन वरफेन की बात करें कम से कम न * 9 का रेशियो चाहिए मतलब ऊपर एक आदमी बैठा हुआ है और नीचे से नौजवान चढ़ना चाहिए लेकिन अगर आप द्रास की या करगिल की पहाड़ियों की बात करते हैं तो यहां पर रेशियो 1 * 9 नहीं चाहिए बल्कि आपको चाहिए 27. आदमी करीब 27 जवान नीचे से चढ़ना चाहिए तब आप ऊपर वाले का मुकाबला कर पाएंगे. ऊपर वाला इतना बेटर सारे मूवमेंट को कैच कर रहा है और आपको यूं समझिए कि जो कह सकते हैं कि हाथी की तरह वो मसल रहा है.

वो मिशन बहुत इंपोर्टेंट था

विष्णु सोम ने कहा कि मैने भारतीय वायु सेना के बराज 2000 विमान पर तब फ्लाई किया था. रियर सीट पर हमने पूरे इलाके के ऊपर कवर किया था. एयरफोर्स का रोल और एयरफोर्स के मिराज 2000 फाइटर्स ने पहली बार टाइगर हिल पर हमला किया. इंडिया की हिस्ट्री में पहले बार कॉम्बैट में लेजर गाइडेड बम्स टाइगर हिल के ऊपर ड्रॉप किया गया था और वो मिशन बहुत इंपोर्टेंट था. क्योंकि पाकिस्तान के जो पोस्ट बने हुए थे, वहां उसको हटाने के लिए हमारे कैजुअल्टी रेट फौज के कैजुअल्टी रेट बहुत हाई हो जाता अगर वो एयर अटैक सक्सेसफुल नहीं होता तो जब हमने जब भारतीय वायुसेना के मिराज 2000 पायलेट्स और ये एयर मार्शल रघुनाथ नामिया तब तो के स्क्वाड्रन लीडर विन कमांडर थे. शायद उन्होंने उन्होंने मिशन पर ही सक्सेस हासिल की थी.
 

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