मध्यप्रदेश में विधानसभा (Madhya Pradesh Assembly) का शीतकालीन सत्र (Winter Session) कोरोना (Coronavirus) महामारी को जिम्मेदार ठहराते हुए स्थगित कर दिया गया लेकिन उसके पहले चुनावी सभाएं और बाद में सम्मेलन, सभा सब जारी रहे. वो भी कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाते हुए. 28 दिसंबर से आयोजित होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा सत्र को सर्वदलीय बैठक में निरस्त करने का फैसला हुआ. कई अखबारों में खबर आई कि विधानसभा के 34 कर्मचारी कोरोना पॉजिटिव हैं, लेकिन जब एनडीटीवी मामले की तह तक गया तो पता लगा कि कोरोना संक्रमित के रूप में दिखाए गए ज्यादातर लोग विधानसभा के कर्मचारी नहीं थे और कई लोगों की आरटी पीसीआर रिपोर्ट अगले दो दिनों में ही निगेटिव आई थी.
50 साल के मुन्ने शेख उन 34 लोगों में से एक हैं, जिनका 24 दिसंबर को रैपिड एंटीजन टेस्ट विधानसभा के शीतकालीन सत्र से पहले कोरोना पॉजिटिव आया. शेख सीपीए के कर्मचारी हैं. शेख ने 26 दिसंबर को दुबारा आरटीपीसीआर टेस्ट कराया. 28 दिसंबर को उन्हें मैसेज मिल गया कि वो कोरोना संक्रमित नहीं हैं. 54 साल के कालीचरण भी सीपीए में सफाई कर्चमारी हैं. वे विधानसभा जाते भी नहीं हैं. 24 दिसंबर को रैपिड एंटीजन में पॉजिटिव निकले, 26 दिसंबर को लिए गए नमूने के परीक्षण में निगेटिव.
27 दिसंबर को सर्वसम्मति से स्पीकर ने जो सर्वदलीय बैठक बुलाई थीं उसमें स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने प्रजेंटेशन दिया. बताया कि कोरोना की भयावहता में सत्र क्यों नहीं बुलाना चाहिए. इस बैठक के मिनट्स की एक्सक्लूसिव कॉपी भी एनडीटीवी के पास है, जिसमें ये दावा किया गया था कि एमएलए रेस्ट हाउस परिसर में किए गए 281 परीक्षणों में से 67 लोग कोरोना संक्रमित हैं. यही नहीं कांग्रेस और सत्तापक्ष में तकरार भी हुआ. पूर्व संसदीय कार्यमंत्री गोविंद सिंह ने ऐतराज दर्ज भी कराया लेकिन बाद में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के सुर ढीले थे.
पूर्व कानून मंत्री पीसी शर्मा ने इस मामले में सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कुछ कर्मचारियों को विधानसभा का बताकर जो वहां के नहीं थे सीपीए के थे, सत्र निरस्त कर दिया गया. मैं इसको स्कैम कहूंगा. जनता के सवालों के जवाब जो हम पूछना चाहते थे वो ना देने पड़ें इसलिए ऐसा किया गया. जब हमने सवाल किया कि सर्वदलीय बैठक में तो कांग्रेस ने भी निरस्त करने के लिए हामी भरी तो उन्होंने कहा बैठक में जैसे आंकड़े प्रस्तुत किए वो तथ्य दिए गए ये बताकर गुमराह किया गया, निश्चित तौर पर प्रिविलेज में मामला आएगा.
प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने ना फोन उठाया ना हमसे मुलाकात की वहीं संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने यह कहते हुए मामले को टाल दिया कि केवल विधानसभा अध्यक्ष या अधिकारी ही इस पर टिप्पणी कर सकते हैं. केवल विधानसभा अध्यक्ष या प्रमुख सचिव इस प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं, लेकिन सर्वदलीय बैठक में निर्णय लिया गया था.
जानकार इसे बेहद गंभीर मानते हैं. विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव भगवान देव इसराणी कहते हैं ये बहुत गंभीर मामला है. संसदीय मामलों में इसे अवमानना कहते हैं. ये सदस्यों को रोकने का प्रयास है. अगर आरोप सिद्ध होते हैं तो जेल तक का प्रावधान है.
इस सत्र में संसदीय परंपराओं को तार पर रखऩे का एक और नमूना दिखा, जब आयुक्त स्वास्थ्य सेवा ने विधानसभा सचिवालय को खत लिखा. इसमें वो विधानसभा को निर्देश देते नजर आते हैं.
17वें नंबर पर वो लिखते हैं - लंबी बैठकों से बचने का सुझाव है, कम समय का सत्र रखना उपयुक्त होगा.
19वें नंबर पर वो लिखते हैं - विधानसभा के दैनिक क्रियाकलापों में केवल अत्यावश्यक कार्य करने की सलाह दी जाए एवं अन्य सामान्य प्रकार के कार्यों को स्थगित किया जाए जिन्हें इस सत्र में ना लिया जाना उपयुक्त होगा.
जानकार ये भी कहते हैं कि सरकारी अधिकारी की विधानसभा को लिखी ऐसी भाषा में चिठ्ठी अभूतपूर्व है. विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव भगवान देव इसराणी कहते हैं कि कोई भी अधिकारी पत्राचार करता है तो विधानसभा प्रमुख सचिव के माध्यम से करता है. कोई निर्देष नहीं दे सकता ये उसके कार्यों में हस्तक्षेप है. महामहिम राज्यपाल भी विशेष अवसरों को छोड़कर विधानसभा को निर्देश नहीं देते हैं.
महामारी को जिम्मेदार बताकर इस बार ना तो सदन में बैठक हुई और ना ही विधायकों को उनके सवालों के जवाब मिले. विधायकों के अभी तक 3000 से ज्यादा सवाल लटके हुए हैं. मौजूदा 15वीं विधानसभा में 16 मार्च 2020 को 17 बैठक प्रस्तावित थीं, 2 बैठक हुईं. 24 मार्च 2020 को 3 बैठक प्रस्तावित थीं, एक बैठक हुई, एक घंटे 26 मिनट तक. 21 सितंबर को 3 बैठक प्रस्तावित थीं, एक बैठक हुई वो भी सिर्फ 9 मिनट तक.
मजे की बात ये है कोरोना के नाम पर 28 दिसंबर को सदन नहीं चला लेकिन महज 3 दिन बाद, 31 दिसंबर को सरकार ने कोरोना में कमी के नाम पर सिर्फ एक को छोड़कर प्रदेश के सारे कोविड केयर सेंटर बंद कर दिए.
ये मामला भी अपने आप में अनूठा है कि सामयिक अध्यक्ष जो आमतौर पर शपथ दिलाने के लिए नियुक्त होते हैं, वो लगभग साल भर से पूर्णकालिक अध्यक्ष जैसा ही काम कर रहे हैं. विपक्ष का आरोप है कि गुटबाजी की वजह से सत्तापक्ष नाम तय नहीं कर पा रहा है. हालांकि ये कामकाज सदन के बाहर ज्यादा दिख रहे हैं, आंकड़े देखें तो साफ है सदन के अंदर ज्यादा काम नहीं हो रहे हैं.