US से भारत पहुंचा NISAR सैटेलाइट, दुनिया को अब आपदाओं की पहले ही मिल जाएगी जानकारी

अमेरिकी वायु सेना का एक परिवहन विमान C-17 नासा-इसरो के निसार सैटेलाइट को लेकर बेंगलुरु पहुंचा. सैटेलाइट और उसके पेलोड्स की कई बार टेस्टिंग हो चुकी है. इसरो इसे अगले साल लॉन्च करेगा.

विज्ञापन
Read Time: 24 mins
निसार सैटेलाइट को दुनिया का सबसे महंगा अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट बताया जा रहा है.
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • दुनिया का सबसे महंगा अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट है निसार
  • निसार को विकसित करने में 10 करोड़ रुपये की आई है लागत
  • सैटेलाइट का वजन लगभग 2800 किलोग्राम है.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही? हमें बताएं।
बेंगलुरु:

नागरिक-अंतरिक्ष सहयोग में यूएस-भारत संबंधों को बनाने की दिशा में एक प्रमुख कदम के रूप में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (ISRO) ने अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा (NASA) के साथ मिलकर एक खास सैटेलाइट विकसित की है. करीब 10 हजार करोड़ रुपये की लागत से तैयार इस निसार सैटेलाइट (NISAR Satellite) को नासा में विकसित किया गया. बुधवार को यह बेंगलुरु पहुंचा. नासा जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में इसे लेने इसरो प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ खुद गए थे. इस सैटेलाइट की खास बात यह है कि इससे भूकंप, हिमस्खलन, समुद्री तूफान आदि प्राकृतिक घटनाओं की जानकारी पहले ही मिल जाएगी. इसे भारत और अमेरिका का अब तक का सबसे बड़ा संयुक्त साइंस मिशन माना जा रहा है.

अमेरिकी वायु सेना का एक परिवहन विमान C-17 नासा-इसरो के इस सैटेलाइट को लेकर बेंगलुरु पहुंचा. सैटेलाइट और उसके पेलोड्स की कई बार टेस्टिंग हो चुकी है. इसरो इसे अगले साल लॉन्च करेगा. इससे पहले इसमें कुछ जरूरी बदलाव किए जाने हैं. इसे इसरो के सबसे शक्तिशाली जीएसएलवी-एमके2 रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा. निसार सैटेलाइट को दुनिया का सबसे महंगा अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट बताया जा रहा है.

सैटेलाइट से होंगे ये फायदे
यह सैटेलाइट बवंडर, तूफान, ज्वालामुखी, भूकंप, ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्री तूफान, जंगली आग, समुद्रों के जलस्तर में बढ़ोतरी, खेती, गीली धरती, बर्फ का कम होगा आदि की पहले ही जानकारी दे देगा. धरती के चारों ओर जमा हो रहे कचरे और धरती की ओर अंतरिक्ष से आने वाले खतरों की भी जानकारी इस सैटेलाइट से मिल सकेगी. इतना ही नहीं ये सैटेलाइट धरती पर पेड़ पौधों की घटती-बढ़ती संख्या पर नजर रखेगा. निसार से प्रकाश की कमी और इसमें बढ़ोतरी की भी जानकारी मिल पाएगी.

Advertisement
Advertisement

2800 किलोग्राम है इसका वजन
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो इस सैटेलाइट का इस्तेमाल हिमालय और भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों में ग्लेशियरों की निगरानी के लिए करेगी. एसयूवी के आकार के सैटेलाइट का वजन लगभग 2800 किलोग्राम है. इसमें एल और एस-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार (एसएआर) दोनों डिवाइस लगे हैं.

Advertisement

दमदार है इसका रडार
इसका रडार इतना दमदार होगा कि यह 240 किलोमीटर तक के क्षेत्रफल की एकदम साफ तस्वीरें ले सकेगा. यह धरती के एक स्थान की फोटो 12 दिन के बाद फिर लेगा. क्योंकि इसे धरती का पूरा एक चक्कर लगाने में 12 दिन लगेंगे.  इस दौरान यह धरती के अलग-अलग हिस्सों की रैपिड सैंपलिंग करते हुए तस्वीरें और आंकडे वैज्ञानिकों को मुहैया कराता रहेगा. 

Advertisement

ये भी पढ़ें:-

मंगल ग्रह पर रेत के गोल टीलों का क्‍या काम? Nasa के स्‍पेसक्राफ्ट ने खींची तस्‍वीर

Milky Way : आकाशगंगा पर भी ‘जनसंख्‍या का बोझ'! अनुमान से ज्‍यादा तारे हो रहे पैदा, जानें पूरा मामला

आपकी छत से एक-दूसरे के करीब दिखाई देंगे शुक्र और बृहस्‍पति ग्रह! इस दिन मिलेगा मौका

Featured Video Of The Day
Patna Students Protest: छात्रों का जोरदार प्रदर्शन जारी, डोमिसाइल नीति को लेकर छात्रों का प्रोटेस्ट
Topics mentioned in this article