सुप्रीम कोर्ट के 75वें स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि 29 जुलाई से 3 अगस्त तक सुप्रीम कोर्ट में लोक अदालत लगी. एक टीम लीडर उतना ही बेहतर हो सकता है, जितनी उनकी टीम. पूरी टीम के सहयोग के बिना ये संभव नहीं है. सुप्रीन कोर्ट भले ही दिल्ली में हो, लेकिन ये दिल्ली का सुप्रीम कोर्ट नहीं है. ये पूरे देश का सुप्रीम कोर्ट है. मेरी कोशिश रही है कि रजिस्ट्री के देशभर के अधिकारी शामिल रहे. लोक अदालत के मामलों के निपटारे कर लिए, पैनल में दो जज, दो मेंबर बार थे. मकसद था कि वकीलों को भी उचित प्रतिनिधित्व रहे. इस दौरान जजों और वकीलों को एक दूसरे से समझने का मौका मिला.
डीवाई चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) ने पिछले साल 8.1, करोड़ मुकदमों का निपटार किया है. कई बार मुझसे पूछा जाता है कि सुप्रीम कोर्ट इतने छोटे केस को इतनी अहमियत क्यों दे रहा है. इसका मकसद क्या है, तब मैं इस बात का जवाब देता है कि डॉक्टर अंबेडकर जैसे संविधान निर्माताओं ने संविधान के आर्टिकल 136 का प्रावधान किया. इस गरीब समाज में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना का मकसद था कि वो जनता तक न्याय सुलभ हो सके. सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के पीछे आइडिया नहीं था कि अमेरिका सुप्रीम कोर्ट की तर्ज पर 180 संवैधानिक मामलों का ही निपटारा करें. बल्कि इसका मक़सद लोगों तक न्याय की पहुंच सुनिश्चित करना 'न्याय' सबके द्वार है.
डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कई बार लोग क़ानूनी प्रकिया से इतने परेशान हो जाते है कि वो किसी भी तरह का सेटलमेंट करके बस कोर्ट से दूर जाना चाहते है. ये चिंता का विषय है. लोक अदालत का मकसद है कि लोगों को इस बात का आभास हो कि जज उनकी ज़िन्दगी से जुड़े है. हम भले ही न्यायपालिका के शीर्ष पर हो, पर हम लोगों की ज़िंदगी से जुड़े है. लोगों को लगता होगा कि जज शाम 4 बजे के बाद काम बंद कर देते है,पर ऐसा नहीं है. वो अगले दिन की फ़ाइल पढ़ते है. वीकेंड पर जज आराम न होकर यात्रा कर रहे होते है ताकि समाज तक पहुंच सके.
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