कर्नाटक उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को मुरुगा मठ बलात्कार मामले की कथित पीड़िताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील को ‘वकालतनामा' की वैधता के संदर्भ में आरोपी पुजारी शिवमूर्ति मुरुगा शरणारू के दावों पर अपनी आपत्तियां दर्ज कराने के लिए एक सप्ताह का समय दिया. मुख्य पुजारी शिवमूर्ति मुरुगा शरणारू ने पीड़िताओं की ओर से दायर वकालतनामा की वैधता को लेकर सवाल खड़े किए हैं.
यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामले में मठ के पुजारी एक सितम्बर से हिरासत में हैं. चित्रदुर्ग जिले के मुरुगा मठ द्वारा संचालित एक स्कूल में पढ़ने वाली दो लड़कियों ने मठ के मुख्य पुजारी शिवमूर्ति मुरुगा शरणारू द्वारा यौन उत्पीड़न किए जाने की शिकायत की थी.
पुजारी की ओर से दायर जमानत याचिका में लड़कियों की ओर से दायर 'वकालत' की वैधता पर सवाल उठाया गया है. इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीश कुमार की सिंगल जज बेंच ने की.
पुजारी के वकील स्वामीनी गणेश मोहनंबल ने दलील दी कि मणि नामक व्यक्ति ने दोनों लड़कियों का अभिभावक होने का दावा करते हुए 'वकालत(नामा)' दाखिल किया है, लेकिन यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है कि कथित पीड़िताओं ने वकालतनामे की सहमति दी है.
इसलिए, उच्च न्यायालय ने इस पर लिखित आपत्ति दर्ज करने के लिए पीड़िताओं के वकील को एक सप्ताह का समय दिया और मामले की सुनवाई स्थगित कर दी. इससे पहले दिन में पुलिस ने चित्रदुर्ग जिला सत्र अदालत में मुरुगा मठ के प्रमुख पुजारी के खिलाफ बलात्कार के मामले में 694 पन्नों का आरोप पत्र दाखिल किया था.
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