- इस बार लालबाग के राजा का विसर्जन गिरगांव चौपाटी पर तेरह घंटे की देरी से हुआ, जो परंपरा से अलग था.
- विसर्जन चंद्र ग्रहण के सूतक काल में हुआ, जिसे धार्मिक जानकारों ने नियमों के खिलाफ बताया और कड़ी आपत्ति जताई.
- कोली समुदाय, पारंपरिक रूप से विसर्जन प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभाता है, इस बार उनको प्रमुखता नहीं मिली.
मुंबई के सबसे मशहूर गणपति लालबाग के राजा के विसर्जन को लेकर इस बार विवाद हो गया है. इस बार उनके विसर्जन की प्रक्रिया मुंबई की गिरगांव चौपाटी पर तेरह घंटे की देरी के बाद पूरी हुई. विसर्जन के दौरान कई परंपराएं भी टूटीं, जिससे लालबाग के राजा के भक्त गुस्से में हैं.
अनंत चतुर्दशी यानी कि गणेशोत्सव के दसवें दिन लालबाग के राजा का विसर्जन चौपाटी पर सुबह आठ बजे तक हो जाता है. राजा यहां मध्य मुंबई के लालबाग से करीब 20 घंटे का सफर तय करते हुए पहुंचते हैं. अरब सागर में विसर्जित होने वाले वे सबसे आखिरी गणपति होते हैं. बीते कई दशकों से ये परंपरा बरकरार रही है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ.
असफल हुआ हाईटेक तराफे का प्रयोग
दरअसल राजा को विदाई गहरे समंदर में ले जाकर दी जाती है. इसके लिए एक फ्लोटिंग प्लेटफॉर्म, जिसे तराफा कहते हैं, उस पर मूर्ति को चढ़ाया जाता है. हर बार ये तराफा मछुआरों की नौकाओं को जोड़कर बनाया जाता था, लेकिन इस बार करोड़ों रुपये खर्च करके एक निजी कंपनी से ये तराफा मंगाया गया. समुद्र में ज्वार के चलते मूर्ति तराफे पर चढ़ ही नहीं पा रही थी. बार-बार लहरों के थपेड़ों के कारण मूर्ति तराफे पर चढ़ते-चढ़ते फिसल जाती. ऐसा लग रहा था कि गणेशजी इस बार वापस लौटने को तैयार न थे. लाखों लोग, हजारों पुलिसकर्मी और प्रशासन के लोग लगातार चौपाटी पर बने रहे. दिनभर में तीन प्रयास किए गए, लेकिन सफलता तेरह घंटे बाद, रात नौ बजे के करीब मिली, जब समंदर थोड़ा शांत हुआ. लालबाग के राजा विसर्जित तो हो गए, लेकिन इसके बाद विवादों का सिलसिला शुरू हो गया.
ग्रहण के सूतक काल में विसर्जन
विसर्जन प्रक्रिया पर सबसे बड़ी आपत्ति धर्मगुरुओं की रही. जिस वक्त राजा की मूर्ति को विसर्जित किया गया. उस वक्त चंद्र ग्रहण का सूतक काल चल रहा था. विसर्जन भी चंद्र ग्रहण शुरू होने के चंद मिनटों पहले ही शुरू हुई. नासिक के कालाराम मंदिर के महंत सुधीर दास ने विसर्जन प्रक्रिया पर तीखी आपत्ति जताते हुए इसे गलत करार दिया. सूतक काल से ही जब मंदिरों के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं और कोई धार्मिक काम नहीं होता, तो ऐसे में विसर्जन करना धार्मिक नियमों के खिलाफ है. हालांकि कुछ लोगों का तर्क है कि प्रतीकात्मक तौर पर विसर्जन तब ही मान लेना चाहिए, जब सुबह के वक्त मूर्ति ने समंदर के पानी को छू लिया.
अनंत चतुर्दशी के बाद विसर्जन
धार्मिक जानकारों की दूसरी आपत्ति विसर्जन के वक्त को लेकर है. गणेश चतुर्थी से शुरू होने वाला गणेश उत्सव अनंत चतुर्दशी तक चलता है. मूर्तियों का विसर्जन हर हाल में चतुर्दशी के दिन हो जाना चाहिए, ऐसी मान्यता है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. विसर्जन चतुर्दशी की अगली तिथि की रात को हुआ, जिसे गलत माना जा रहा है.
कोली समुदाय हुआ नाराज
विसर्जन की वजह से कोली समुदाय भी नाराज है. कोली मुंबई के मूल निवासी माने जाते हैं और मच्छीमारी के व्यवसाय से जुडे हैं. हर साल विसर्जन की प्रक्रिया उन्हीं की ओर से पूरी की जाती है. गणपति प्रतिमा के चौपाटी पहुंचने पर कोली उसे रंग-बिरंगी झंडियों से सजी अपनी नौकाओं से सलामी देते हैं और फिर तराफे के जरिए गहरे समंदर में ले जाकर मूर्ति को समर्पित कर देते हैं. इस बार कोली समुदाय के लोग समंदर में थे तो जरूर, लेकिन विसर्जन प्रक्रिया में उन्हें वो प्रधानता नहीं मिली, जो हर साल मिलती है.
लालबाग के राजा विसर्जित होने वाले आखिरी गणपति नहीं
विसर्जन की प्रक्रिया को लेकर सोशल मीडिया पर बहस
विसर्जन प्रक्रिया में इस बार हुई गड़बड़ी ने सोशल मीडिया पर खासी चर्चा छेड़ दी है.कई लोगों का कहना है कि ये गणपति बप्पा का अपनी नाराजगी जताने का तरीका था.लालबाग के राजा के पंडाल में जिस तरह से सेलिब्रिटी, राजनेताओं और प्रभावशाली हस्तियों को सिर आंखों पर बिठाया जाता था और आम भक्तों के साथ बदसलूकी की जाती थी, उसी का सबक लालबाग के राजा ने सिखाया है.