Mpox Virus: दुनिया में कितनी तेजी से फैल रहा है मंकीपॉक्स, टीकाकरण है कितना कारगर उपाय

डब्लूएचओ के मुताबिक एक जनवरी 2022 से 31 जुलाई 2024 के बीच दुनिया के 121 देशों में मंकीपॉक्स के मामले पाए गए हैं. इस दौरान कुल एक लाख तीन हजार 48 लोगों में मंकीपॉक्स के संक्रमण की पुष्टि हुई है. इससे अब तक 229 लोगों की मौत होने की पुष्टि हुई है.

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नई दिल्ली:

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सोमवार को देश में मंकीपॉक्स का पहला मामला पाए जाने की पुष्टि की.अफ्रीकी देश की यात्रा कर लौटे इस व्यक्ति में मंकीपॉक्स के लक्षण नजर आए थे. उन्हें आठ सितंबर से ही आइसोलेशन में रखा गया था.उनके सैंपल की जांच में मंकीपॉक्स के स्ट्रेन वेस्ट अफ्रीकन क्लेड 2 की पुष्टि हुई है.यह स्ट्रेन विश्व स्वास्थ्य संगठन की ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी में शामिल स्ट्रेन क्लेड1 में नहीं है.विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, मंकीपॉक्स के अधिकतर मामले 18-44 साल के युवा पुरुषों में मिले हैं.सबसे ज्यादा मामले सेक्सुअल कॉन्टेक्ट से हुए संक्रमण के हैं.इसके बाद जिसके बाद पर्सन-टू-पर्सन नॉन सेक्सुअल कॉन्टेक्ट के मामले हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नवंबर 2022 में इसे एमपॉक्स (Mpox) नाम दिया था. अब इसे इस नाम से भी जाना जाता है.

मंकीपॉक्स का हॉटस्पॉट किस देश में है

इस समय डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डीआरसी) मंकीपॉक्स का हॉटस्पॉट बना हुआ है.यहीं से यह संक्रमण दूसरे देशों में फैला है. एक जनवरी 2022 से 31 जुलाई 2024 तक दुनियाभर के 121 देशों में मंकीपॉक्स के मामले पाए गए हैं. इस दौरान कुल एक लाख तीन हजार 48 लोगों में मंकीपॉक्स के संक्रमण की पुष्टि हुई है. इस दौरान मंकीपॉक्स के संक्रमण से 229 लोगों की मौत हुई है. 31 जुलाई तक इसके 186 संभावित मामले भी मिले थे.

पिछले महीने की तुलना में मंकीपॉक्स के मामले 11.3 फीसदी की रफ्तार से बढ़े रहे हैं. पूरी दुनिया में मिले में मामलों में से 54.3 फीसदी मामले अकेले डीआरसी में ही पाए गए थे. अमेरिकी इलाके में 23.1 फीसदी मामले पाए गए हैं.एक जनवरी 2022 के बाद से मंकीपॉक्स से सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों में अमेरिका, ब्राजील, स्पेन, डीआरसी, फ्रांस, कोलंबिया, मैक्सिको, यूके और जर्मनी शामिल हैं. इन्हीं 10 देशों में दुनियाभर के 80 फीसदी मामले पाए गए हैं. 

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मंकीपॉक्स वायरस के जरिए फैलने वाली एक बीमारी है. इसका संक्रमण मंकीपॉक्स नाम के वायरस से होता है. यह जीनस ऑर्थोपॉक्सवायरस प्रजाति का एक वायरस है. इसके दो प्रकार हैं, क्लैड I (इसके दो  उपवर्ग हैं,Ia और Ib) और क्लैड II (इसके भी दो उपवर्ग हैं, IIa और IIb.). साल 2022-2023 में मंकीपॉक्स का प्रकोप क्लैड IIb स्ट्रेन के कारण हुआ था.

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यह सेक्स के साथ-साथ किस करने से भी फैल सकता है. इसके अलावा मंकीपॉक्स से संक्रमित किसी व्यक्ति के आस-पास रहने से भी यह फैल सकता है.संक्रमित व्यक्ति के कपड़ों को छूने, उनके खून, उनके तौलियों,उनकी ओर से इस्तेमाल किए गए इलेक्ट्रानिक उपकरणों का इस्तेमाल करने से भी इसका संक्रमण हो सकता है.

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मंकीपॉक्स के लक्षण क्या हैं

बुखार
सिरदर्द मांसपेशियों में दर्द
पीठ दर्द
कमजोरी 
हाथ-पैर में गांठें बनना
ये दाने फफोले या घाव की तरह दिखते हैं 
ये गांठें चेहरे,हथेलियों, तलवों, कमर,मुंह और गले और जननांग या गुदा में हो सकते हैं.

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मंकीपॉक्स रोकने के लिए कितना कारगर है टीकाकरण

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक टीकाकरण के जरिए इसकी रोकथाम की जा सकती है. डीआरसी के अलावा केवल नाइजीरिया में ही अब तक इसका टीका पहुंच सका है. टीके की कमी इसके तेजी से फैलने के कारणों में से एक है. इसे देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले महीने मंकीपॉक्स को अंतरराष्ट्रीय इमरजेंसी घोषित कर दिया था.  

इसका पहला मामला 1958 में डेनमार्क में सामने आया था. इंसान में मंकीपॉक्स का पहला मामला 1970 में सामने आया था.आजकल यह अपने क्लैड-1b के फैलने की वजह से सुर्खियों में है. क्लैड-1 और क्लैड-2 में से क्लैड-1 को अधिक घातक माना जाता है. क्लैड-1b के संक्रमण का मुख्य कारण सेक्स को माना जाता है. वहीं क्लैड-1a आमतौर पर पशुओं से फैलता है. इसका नया वैरिएंट अफ्रीका में महिलाओं और बच्चों को अधिक शिकार बना रहा है. 

इस समय कितने वैक्सीन हैं 

इस समय दुनिया में मंकीपॉक्स की रोकथाम के लिए तीन तरह के टीके मौजूद हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीन टीकों की अनुसंशा इसके इलाज के लिए की है. ये टीके हैं, एमवीए-बीएन, एलसी16 और एसीएम2000. ये टीके केवल उन्हीं लोगों को लगाए जा सकते हैं, जिनको इसके संक्रमण का खतरा है, जैसे अगर कोई व्यक्ति किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आया हो. लेकिन अभी इनके सामूहिक टीकाकरण की इजाजत विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नहीं दी है. स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य अधिकारी या सरकार इस विषय में फैसला ले सकती है. 

मॉडिफाइड वैक्सीन अंकारा या एमवीए-बीएन का इस्तेमाल सबसे अधिक होता है. इसका विकास डेनमार्क की कंपनी बावरियन नार्डिक ने किया है.इसकी अनुशंसा अमेरिका की यूएस फूड एंड ड्रग एडमिस्ट्रेशन (एफडीए) और यूरोपिय मेडिसिन एजेंसी ने भी की है. वहीं एलसी-16 का विकास जापान की केएम बायोलॉजिकल ने किया है. वहीं एसीएम2000 का उत्पादन अमेरिकी कंपनी इमरेंट बायोसाल्यूशंस करती है.एफडीए ने अगस्त में इसके इस्तेमाल की इजाजत दी है. ये टीके काफी महंगे हैं.इनके एक डोज की कीमत 50 से 75 डॉलर के बीच है.

भारतीय कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कहा है कि वह मंकीपॉक्स के लिए टीका बनाने पर काम कर रही है. उसे उम्मीद है कि उसका टीका इस साल के अंत तक आ जाएगा.इसके अलावा इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर)ने दवा कंपनियों और शोध में लगे संगठनों से मंकीपॉक्स के टीके के विकास और इलाज के लिए किट तैयार करने के लिए सहयोग करने की अपील की है.यह समझौता रॉयल्टी पर आधारित होगा. 

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