मध्य प्रदेश के सतना जिले में चार महीने के हुसैन रजा ने मंगलवार की रात जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया. चार दिन तक वह जिंदगी से जूझता रहा. कुपोषण के शिकार बच्चे को बचाने के लिए डॉक्टरों ने पूरी कोशिश की, लेकिन वो नाकाम रहे. सतना के मझगंवा ब्लॉक के मरवा गांव में कुपोषण से बच्चे की मौत का मामला तूल पकड़ने के बीच राज्य की महिला बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया ने प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा, कुपोषण वैश्विक समस्या है. इसके लिए जागरूकता भी जरूरी है. हमारा लगातार प्रयास है कि हम ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में दोनों जगह कुपोषण को कैसे खत्म कर सकें. इसके लिए हम और हमारी सरकार पूरी तरीके से जुटी हुई है.
कुपोषण दूर करने के लिए पोषण आहार के लिए 8 और 12 रुपये देने के सवाल पर भूरिया ने कहा, हमने केंद्र सरकार से मांग की है. जब भी हमारी बात होती है, राज्य सरकार और हम केंद्र सरकार से मांग करते हैं, मुझे लगता है कि केंद्र सरकार इस विषय पर जल्द फैसला लेगी.
बहुत कम वजन था हुसैन का
डॉक्टरों के मुताबिक, हुसैन का वजन सिर्फ 2 किलो 500 ग्राम था. उसकी उम्र के शिशु का सामान्य वजन कम से कम 5 किलो होना चाहिए. वह इतना कमज़ोर था कि जोर से रो भी नहीं पाता था. उसकी मां आसमा बानो ने पिछले शनिवार को उसे जिला अस्पताल लाकर दाखिल करवाया था. जब डॉ. संदीप द्विवेदी ने पहली बार बच्चे को देखा तो वह भी हैरान रह गए. जांच में पता चला कि बच्चा ‘गंभीर रूप से कुपोषित' है. उसे तुरंत न्यूट्रिशन रिहैबिलिटेशन सेंटर भेजा गया और फिर PICU में भर्ती किया गया. डॉक्टरों ने 4 दिन तक उसे बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन मंगलवार देर रात उसने दम तोड़ दिया.
तीन स्वास्थ्यकर्मियों को नोटिस
जांच में पता चला कि हुसैन 2 जुलाई 2025 को जन्मा था, तब उसका वजन 3 किलो था. जन्म के कुछ दिन बाद उसको निमोनिया हो गया. बीमारी के बाद उसका वजन घटकर ढाई किलो रह गया. चौंकाने वाली बात रही कि उसे कोई टीका भी नहीं लगा था. उसकी बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता लगभग खत्म हो चुकी थी. शिशु की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग ने लापरवाही बरतने पर 3 लोगों को नोटिस जारी किया. इसमें खुठा स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा अधिकारी डॉ. एस.पी. श्रीवास्तव, आशा कार्यकर्ता उर्मिला सतनामी और मरवा उप स्वास्थ्य केंद्र की कार्यकर्ता लक्ष्मी रावत शामिल हैं. विभाग के अनुसार, कुपोषित बच्चों की पहचान और निगरानी में लापरवाही सहन नहीं की जा सकती.
इससे पहले अगस्त में शिवपुरी की 15 महीने की दिव्यांशी ने जिला अस्पताल में दम तोड़ा था. उसका वजन सिर्फ़ 3.7 किलो था. श्योपुर की डेढ़ साल की राधिका की मौत हुई थी तो उसका वजन सिर्फ़ 2.5 किलो था. जुलाई में भिंड के लहार अस्पताल में भी एक बच्चे की मौत हुई थी. परिवार ने कारण कुपोषण बताया था.
सरकारी रिकॉर्ड में 10 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषित
विधानसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 से जून 2025 तक आदिवासी विकास खंड में 85330 बच्चों को NRC में भर्ती किया गया. ये तादाद हर साल लगातार बढ़ी है. वर्ष 2020–21 में 11566, और 2024–25 में 20741 बच्चे भर्ती किए गए. सिर्फ 2025–26 के पहले तीन महीनों में ही 5928 बच्चों का इलाज हो चुका है. सरकारी रिकॉर्ड भी मानते हैं कि प्रदेश में 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं. इनमें से 1.36 लाख गंभीर रूप से कमजोर हैं.
मध्य प्रदेश में कुपोषण बड़ी समस्या
प्रैल 2025 में राष्ट्रीय स्तर पर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में गंभीर और मध्यम कुपोषण का औसत 5.40 फीसदी था, जबकि मध्य प्रदेश में यह दर 7.79 फीसदी रही. केंद्र के न्यूट्रिशन ट्रैकर ऐप के अनुसार, मई 2025 में राज्य के 55 में से 45 जिले रेड जोन में थे, जहां 20 फीसदी से अधिक बच्चे अपनी उम्र के अनुसार, बेहद कम वजन के हैं. आंगनवाड़ी में सामान्य बच्चों के लिए 8 रुपये और गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के लिए 12 रुपये रोज खर्च दिखाया जाता है.