आम आदमी की मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा अफसरों के ऐशो आराम पर खर्च किया जा है. योजनाओं के कार्यान्वयन में बजट का हवाला देने वाली सरकार अफसरों को सुविधाएं मुहैया कराने के लिए गर साल करोड़ों खर्च रही है. मध्यप्रदेश पुलिस में ट्रेड आरक्षक की नियुक्ति की जाती है, जिनका काम अधिकारियों के कपड़े धोना, जूते साफ करना, खाना बनाना और उनके आवास में झाड़ू पोछा लगाना है. इनकी तनख्वाह साधारण कॉन्स्टेबल जितनी ही होती है, लेकिन ये शहर की सुरक्षा नहीं 'साहब' का काम करते हैं.
कई अफसर ऐसे हैं, जिनकी पात्रता एक या दो अर्दलियों की है, उनके पास 10 से 12 कॉन्स्टेबल हैं, वो भी 3-3 शिफ्टों में. बता दें कि मध्यप्रदेश पुलिस के तहत भर्ती होने वाले ट्रेड आरक्षक वो कर्मचारी हैं, जो मैदानी ड्यूटी नहीं बल्कि साहब के बंगले पर झाड़ू-पोछा, सब्जी भाजी लाने जैसे काम करते हैं. इनकी तादाद 1-2 नहीं हजारों में है.
नाम ना बताने की शर्त पर एक कॉन्स्टेबल ने दुखी होकर कहा कि जबसे भर्ती हुई है, वो काफी परेशान रहा है. हमारे सहकर्मी हमें भेदभाव की नजर से देखते हैं. चपरासी की भी भर्ती होती है तो प्रमोशन होकर वो 'बाबू' बन जाता है. लेकिन हमें यही काम करना है. चाहे वर्दी पर स्टार भी लग जाए.
दूसरे पुलिसकर्मी ने कहा कि पहली भर्ती होती थी तो पांच सालों के बाद जेनरल ड्यूटी में शिफ्ट कर दिया जाता था. लेकिन अब एक स्टार भी लग जाएं तो खाना ही बनाएंगे. तीसरे आरक्षक की भी यही व्यथा थी. उनका कहना था कि 17 साल से वे वही काम कर रहे हैं. मोहल्ले में सब हीन भावना से उन्हें देखते हैं.
बता दें कि 4000 से ज्यादा ये ट्रेड आरक्षक प्रदेश गृहमंत्री, डीजीपी, एडीजी, आईजी से लेकर सीएसपी तक के बंगलों पर झाड़ू पोंछा, बर्तन मांझने, कपड़े धोने, बागबानी करने जैसे दूसरे काम कर रहे हैं. पहले 5 साल की नौकरी के बाद ये जेनरल ड्यूटी में जा सकते थे. लेकिन 2013 में इसे बंद कर दिया गया. ट्रेड आरक्षक प्रमोशन से सब इंस्पेक्टर तक बन गए. उनकी तनख्वाह 70,000 रुपये प्रति महीने की हो गई, लेकिन वे काम वही कर रहे हैं.
अब समझिए कि अफसरों का आराम सरकारी तिजोरी पर कैसे भार पड़ रहा है. मध्यप्रदेश में पुलिसकर्मियों को 13 महीने का वेतन मिलता है. अगर इन 4076 कर्मचारियों का वेतन औसत 45000 रुपये मान लें तो 1 महीने का खर्च बैठता है - 18,34,20000 यानी 13 महीने का लगभग 240 करोड़ रुपये.
अब सोचें ये काम कलेक्टर रेट पर 9000-10000 का है, यानी बगैर वर्दी महीने का खर्च लगभग 3 करोड़ साल भर का 36 करोड़ रुपये यानी 200 करोड़ रुपये से अधिक की बचत. इस संबंध में जब गृहमंत्री से सवाल किया गया तो वे जवाब देने से बचते दिखे. वहीं, पूरे मामले में विपक्ष की मांग है इनका शोषण बंद हो.
नेता प्रतिपक्ष गोविंद सिंह ने कहा कि कई ऐसे अधिकारी हैं ,जो रिटायर हो चुके हैं फिर भी सुरक्षा मिली हुई है. अर्दली भी लगे हैं. हमारी मुख्यमंत्री से मांग है कि इसकी समीक्षा करें और उनका शोषण बंद करें. मध्य प्रदेश में 1 लाख की आबादी पर लगभग 700 पुलिसवाले हैं. 20,000 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की कमी है. गृहमंत्री ने मार्च में ही पुलिस महकमे को इस बारे में खत लिखा था. लेकिन जवाब नहीं आया.
बहरहाल, साहब सुविधा छोड़ना नहीं चाहते, भले ही उसके लिए जनता के पैसों की बर्बादी और कर्मचारियों का शोषण ही क्यों ना हो. जिस शहर में लोगों की सुरक्षा में पुलिसकर्मी ना हों वहां साहब की तरकारी लाने वर्दीधारी तैनात हो तो इस व्यवस्था को और कुछ कह लीजिए लोकतांत्रिक तो कतई नहीं.
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