लोकसभा चुनाव से पहले एक्शन मोड में BJP, 4 राज्यों के संगठन में किया बदलाव; दूसरी लिस्ट भी तैयार

अगले तीन दिनों के दौरान भारतीय जनता पार्टी में कई और बदलाव होने की उम्मीद है. यह समझा जाता है कि मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, केरल और कर्नाटक जैसे कई राज्यों में संगठनात्मक परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं.

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बीजेपी ने मंगलवार को 4 राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष बदल दिए.
नई दिल्ली:

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections 2023) और इस साल 5 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly Elections 2023) को देखते बीजेपी नेतृत्व (BJP)ने पिछले एक महीने कई बैठकें की. बीजेपी ने मंगलवार को 4 राज्यों पंजाब, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और झारखंड में प्रदेश अध्यक्ष बदल दिए. इन बदलावों का मकसद राज्य टीमों में पूर्ण एकता का प्रदर्शन, जातिगत संतुलन, गठबंधन सरकार के सहयोगियों पर नियंत्रण रहा.

अगले तीन दिनों के दौरान भारतीय जनता पार्टी में कई और बदलाव होने की उम्मीद है. यह समझा जाता है कि मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, केरल और कर्नाटक जैसे कई राज्यों में संगठनात्मक परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं. इन निर्णयों के परिणामस्वरूप अगले कुछ दिनों में मोदी कैबिनेट (Modi Cabinet) में बदलाव भी हो सकते हैं.

संस्कृति, पर्यटन और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय का प्रभार संभालने वाले केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी को तेलंगाना की जिम्मेदारी दी गई है. राज्य में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि ऐसी जिम्मेदारियों को संभालने के लिए कुछ और मंत्रियों को भी उन राज्यों में भेजा जा सकता है, जहां चुनाव होने हैं. यह याद रखना अहम है कि पार्टी अक्सर सांसदों को विधायक का चुनाव लड़वाती रही है. यहां तक ​​कि 2024 के आम चुनाव लिए भी ऐसी संभावनाएं हैं. आम तौर पर बीजेपी में किसी मंत्री को अपने विभाग रखने और राज्य यूनिट के अध्यक्ष के रूप में भी काम करने की अनुमति नहीं दी गई है.

शासन इस सरकार का मुख्य जोर रहा है. 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले यह संभावना है कि बीजेपी राजनीति, सोशल इंजीनियरिंग, जातिगत प्रतिनिधित्व, गठबंधन के सहयोगियों तक पहुंच पर बहुत ज्यादा फोकस करेगी. सबसे महत्वपूर्ण बात बीजेपी इस बात पर भी फोकस करेगी कि कैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने साथ रखे और उन्हें संतुष्ट करे. चार राज्यों में बीजेपी संगठन में हुआ बदलाव इन कारकों के महत्व की ओर इशारा करते हैं.

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तेलंगाना
तेलंगाना में बीजेपी ने बांदी संजय की जगह केंद्रीय मंत्री किशन रेड्डी पर भरोसा जताया है. यह कदम सदन को व्यवस्थित करने के लिए था, क्योंकि केसीआर सरकार में वित्त मंत्री एटाला राजेंद्रन जैसे कई नेताओं ने बंदी संजय के नेतृत्व के खिलाफ खुलकर बात की थी. आपको याद होगा कि हुजूराबाद उपचुनाव में राजेंद्रन की जीत को बीजेपी के तेलंगाना में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने के रूप में देखा गया था. 2014 के चुनाव में केसीआर की बेटी के. कविता को हराने वाले बीजेपी नेता अरविंद धर्मपुरी ने भी राज्य नेतृत्व को लेकर कई समस्याएं उठाई थीं. अब बीजेपी ने पार्टी में किसी भी तरह की नाराजगी से बचने के लिए आरएसएस-बीजेपी के एक प्रमुख कार्यकर्ता बंदी संजय की जगह किशन रेड्डी को मौका दिया है.

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बंदी संजय ने राज्य की पदयात्रा की थी. पेपर लीक मुद्दे को लेकर विरोध-प्रदर्शन किया था. इसके लिए गिरफ्तार भी हुए थे. उन्होंने अपने प्रयासों के लिए पीएम मोदी की तारीफ भी बटोरी थी. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि बंदी संजय को बाद में मंत्रिपरिषद में शामिल किया जाता है या नहीं. हालांकि, किशन रेड्डी को राज्य में संतुलन बनाए रखने के लिए सबसे अच्छे विकल्प के रूप में देखा गया है. वह केंद्र में राज्य का चेहरा हैं और स्पष्ट रूप से उन्हें वापस भेजकर बीजेपी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह तेलंगाना में एक प्रमुख पार्टी है. 

कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद राज्य में बीजेपी की पकड़ कमजोर होने के कयास लगाए जा रहे थे. हमने हाल ही में पोंगुलेटी श्रीनिवास रेड्डी और जुप्पाला कृष्ण राव जैसे बीआरएस के नेताओं को कांग्रेस में शामिल होते देखा. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने खम्मम में एक विशाल रैली की. इस सप्ताह के अंत में प्रधानमंत्री मोदी की तेलंगाना यात्रा के साथ ही बीजेपी का चुनावी अभियान और तेज होने जा रहा है.

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आंध्र प्रदेश
बीजेपी ने आंध्र प्रदेश में चौंकाने वाला फैसला लिया. पार्टी नेतृत्व ने पूर्व मंत्री दग्गुबाती पुरंदेश्वरी को अपनी प्रदेश इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया. पुरंदेश्वरी राष्ट्रीय स्तर पर पहचाना जाने वाला चेहरा हैं. वो तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) संस्थापक और प्रसिद्ध अभिनेता एनटी रामाराव की बेटी हैं और यूपीए सरकार में मंत्री रह चुकी हैं. पुरंदेश्वरी ने सोमू वीरराजू की जगह ली है, जिन्हें जुलाई 2020 में बीजेपी राज्य प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया था. हालांकि, इसे एक संकेत के रूप में देखा जा सकता है कि बीजेपी शक्तिशाली, प्रभावशाली और धनी कम्मा समुदाय को लुभाने की कोशिश कर रही है, जिसने पारंपरिक रूप से टीडीपी का समर्थन किया है. यह बैठक टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बीच एक बैठक के कुछ दिनों बाद हुई.

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आंध्र प्रदेश में संभावित बीजेपी-टीडीपी गठबंधन को लेकर पहले से ही काफी चर्चा है, लेकिन यहां दिलचस्प बात यह है कि पुरंदेश्वरी और चंद्रबाबू नायडू वास्तव में सौहार्दपूर्ण संबंध के लिए नहीं जाने जाते हैं. इससे यह भी पता चलता है कि बीजेपी टीडीपी को यह स्पष्ट कर रही है कि गठबंधन पर उसका कंट्रोल रहेगा. वास्तव में चंद्रबाबू नायडू ने बहुत अच्छे शर्तों पर एनडीए नहीं छोड़ा था.

वाईएसआरसीपी और आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी का भी बीजेपी के साथ सौहार्दपूर्ण समीकरण है. वे अक्सर संसद में महत्वपूर्ण विधेयकों पर बीजेपी का समर्थन करते हैं. यह संभावित गठबंधन में सत्ता बरकरार रखने और टीडीपी को खुली छूट न देने का बीजेपी का तरीका हो सकता है. बता दें कि आंध्र प्रदेश में 9 महीने के अंदर चुनाव होने हैं.

झारखंड
झारखंड में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी ने अपनी राज्य इकाई के प्रमुख के रूप में एसटी नेता बाबूलाल मरांडी को कमान सौंपी है. 64 वर्षीय मरांडी संघ प्रचारक रहे हैं और झारखंड के पहले सीएम भी थे. मरांडी ने 2002 में बीजेपी से नाता तोड़ लिया था और झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) नाम से खुद की पार्टी बना ली थी. 2020 में वो फिर से बीजेपी में शामिल हो गए और अपनी पार्टी का विलय कर लिया. पार्टी ने उन्हें विधायी नेता बनाया था, लेकिन विधानसभा ने उन्हें इसकी मान्यता नहीं दी. अयोग्यता मामले के कारण उन्हें नेता प्रतिपक्ष के रूप में चुना गया.

2014 में बीजेपी ने एक गैर-आदिवासी रघुबर दास को सीएम चुना था. इसका खामियाजा पार्टी को 2019 के इलेक्शन में भुगतना पड़ा. राज्य के आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों (झारखंड विधानसभा की कुल 81 सीटें) में बीजेपी ने सिर्फ दो पर जीत हासिल की थी. हाल के दिनों में भी बीजेपी चार उपचुनाव हार चुकी है, जिसमें दो एसटी सीटें भी शामिल हैं. वर्तमान झारखंड में रहने वाले आदिवासी (आदिवासी) और मूलवासी (मूल गैर-आदिवासी निवासी) समुदायों के आसपास की बहस बहुत नाजुक है. ऐसे में मरांडी की नियुक्ति अहम है. बीजेपी उनकी नियुक्ति से यह दिखाना चाहती है कि वह राज्य के आदिवासी मुद्दों को लेकर संजीदा है.

पंजाब
पंजाब में बीजेपी ने दूसरे दल से आए नेता पर भरोसा जताया है. बीजेपी ने अश्वनी शर्मा की जगह सुनील जाखड़ को पंजाब अध्यक्ष नियुक्त किया है. जाखड़ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं. वह तीन बार के विधायक और एक बार के सांसद हैं. उनका सभी समुदायों से जुड़ाव रहा है. सुनील जाखड़ एक हिंदू जाट हैं. उन्हें पिछले साल दिसंबर में पंजाब के पूर्व प्रमुख के साथ इसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया था. 

जाखड़ पंजाब में बीजेपी के प्रयासों के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे, क्योंकि पार्टी यहां एक-तिहाई दलित आबादी सहित सिख बहुल राज्य में अपना समर्थन आधार बढ़ाने के लिए हर संभव कोशिशें कर रही है. कैप्टन अमरिन्दर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस और अकाली दल से अलग हुए गुट के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के बावजूद बीजेपी पंजाब विधानसभा चुनाव में केवल दो सीटें जीत पाई थी.

कर्नाटक पर अभी कोई फैसला नहीं
बीजेपी ने अभी तक कर्नाटक में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्षों के नामों की घोषणा नहीं की है. केंद्रीय पर्यवेक्षक मनसुख मांडविया और महाराष्ट्र के पार्टी नेता विनोद तावड़े राज्य में बीजेपी विधायकों और नेताओं के साथ चर्चा के बाद नई दिल्ली लौट आए हैं. राज्य इकाई में गंभीर गुटबाजी को नए प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति में देरी का कारण माना जा रहा है. लिंगायत समुदाय के उम्मीदवार विधानसभा में विपक्ष के नेता बनने की दौड़ में सबसे आगे हैं. इसलिए पार्टी अध्यक्ष की पसंद वोक्कालिगा समुदाय से होने की संभावना है. 

इसके अलावा बीजेपी आने वाले कुछ दिनों में केरल, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के संगठन में भी बदलाव कर सकती है. 2024 के चुनाव के मद्देनजर बीजेपी दक्षिण में एंट्री के लिए केरल पर भी फोकस कर रही है. ऐसी अटकलें हैं कि वरिष्ठ, राष्ट्रीय स्तर पर पहचाने जाने वाले नेताओं और यहां तक ​​​​कि मंत्रियों को राज्य इकाइयों का अध्यक्ष बनाया जा सकता है. क्योंकि वे लोगों को एक साथ रखने में कहीं अधिक सक्षम होंगे. 

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