Monsoon Update: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत पूरा उत्तर भारत मानसून (Monsoon) के इस मौसम में लू के थपेड़े झेल रहा है. अब तक दिल्ली को भिगो देने वाला दक्षिण-पश्चिम मानसून इस बार नहीं पहुंच सका है. आलम यह है कि दिल्ली-एनसीआर में तापमान 41 से 43 डिग्री के बीच सबको झुलसा रहा है. यही हाल पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और राजस्थान का भी है.
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी में गुरुवार (1 जुलाई) को अधिकतम तापमान 43.1 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था, जो 2012 के बाद जुलाई में दर्ज किया गया सर्वाधिक तापमान था. न्यूनतम तापमान 31.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था. आईएमडी ने कहा कि शहर में 7 जुलाई तक दक्षिण-पश्चिम मानसून आने की ‘‘कोई संभावना'' नहीं है.
क्या है दक्षिण-पश्चिम मानसून?
ये मौसमी हवाएं हैं जो हिन्द महासागर और अरब सागर की ओर से भारत के दक्षिणी-पश्चिमी तट की ओर बढ़ते हुए भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में जून से सितंबर के बीच बारिश कराती हैं. हिन्द महासागर में दक्षिण-पूर्व से बहने वाली इन हवाओं की दिशा भूमध्य रेखा को पार करने के बाद बदल जाती है और वह दक्षिण-पश्चिम दिशा की तरफ हो जाती है. इसी दिशा से बहने के कारण इसका नाम दक्षिण-पश्चिम मानसून (South-West Monsoon) पड़ा है. इसे सामान्य भाषा में मानसून कहा जाता है, जो भारत में बारिश कराती है. केरल के तट से यह प्राय: 1 जून को टकराता है, उसके बाद यह महाराष्ट्र, कर्नाटक होते हुए आगे बढ़ जाता है.
दक्षिण-पश्चिम मानसून का जुलाई के लिए पूर्वानुमान, जानिए इस महीने कितनी होगी बारिश
दक्षिणी प्रायद्वीपीय भारत की बनावट की वजह से मानसूनी हवाएं दो भागों में बंट जाती है. एक अरब सागर की शाखा जो महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश में बारिश कराती है और दूसरी बंगाल की खाड़ी की शाखा जो पूर्वोत्तर भारत समेत पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश में बारिश कराती है. दक्षिण-पश्चिम मानसून ही गुजरात से आगे बढ़ते हुए राजस्थान पहुंचती है, वहां अरावली की पहाड़ियों से टकराने के बाद ये हवाएं ऊपर उठती हैं और वहां बारिश कराती हैं. यही हवाएं दिल्ली पहुंचकर भी बारिश कराती है.
उत्तर भारत में बारिश होने में क्यों हो रही देरी?
जब उत्तर भारत तपता है तो मानसून प्रबल होता है और मानसूनी बारिश होती है. यानी उत्तर भारत के तपने से वहां निम्न दाब का क्षेत्र बनता है, जिसे मानसूनी हवाएं भरने को दौड़ती हैं. चूंकि ये हवाएं समंदर से आ रही होती हैं, इसलिए उनमें पर्याप्त मात्रा में आर्द्रता होती है. अवरोध मिलते ही वह ऊपर उठकर बारिश कराती हैं.
लेकिन मौसम विभाग का कहना है कि इस बार मानसून के अनुकूल मौसमी स्थितियां नहीं बन पा रही हैं. पश्चिम से बहने वाली गर्म हवाएं मानसून की आर्द्रता सोख रही हैं, जिस वजह से उत्तर भारत में तपन के बावजूद बारिश नहीं हो पा रही है. IMD के मुताबिक 26 जून से 30 जून के बीच प्राय: इन हवाओं के धीरे-धीरे जोर पकड़ने की संभावना रहती है लेकिन इस बार यह इंतजार लंबा खिंचकर 7 जुलाई तक जा सकता है. सात जुलाई के आसपास ही मानसून के उत्तर-पश्चिम भारत के अधिकतर हिस्सों की ओर बढ़ने की संभावना है.
मानसूनी वर्षा कितना जरूरी?
देश में 80 फीसदी बारिश मानसूनी हवाओं से ही होती है. देश की खेती मानसूनी बारिश पर ही निर्भर है. बिहार, यूपी, एमपी और छत्तीसगढ़ में चावल, महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात में कपास, फिर तिलहन और मोटे अनाज का उत्पादन मानसूनी बारिश पर ही निर्भर करता है. जब मानसून समय पर नहीं आता, या कम बारिश होती है तब खेतीबारी प्रभावित होती है, जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है. किसानों की कमर टूट जाती है और देश में महंगाई का बोलबाला हो जाता है.