महबूबा मुफ्ती को अदालत से झटका, विचाराधीन कैदियों को वापस जम्‍मू-कश्‍मीर भेजने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज

हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मुफ्ती की जनहित याचिका का उद्देश्य राजनीतिक लाभ उठाना और खुद को एक विशिष्ट वर्ग के लिए न्याय के पैरोकार के रूप में प्रस्तुत करना था.

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  • जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने महबूबा मुफ्ती की एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया है.
  • याचिका में केंद्र शासित प्रदेश के बाहर बंद विचाराधीन कैदियों को वापस जम्मू-कश्मीर भेजने की मांग थी.
  • कोर्ट ने कहा कि याचिका का उद्देश्य राजनीतिक लाभ उठाना और विशिष्ट वर्ग के लिए न्याय का पैरोकार बनना था.
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नई दिल्‍ली:

जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट से पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को झटका लगा है. हाई कोर्ट ने मुफ्ती की उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उन्‍होंने केंद्र शासित प्रदेश के बाहर की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों को वापस जम्मू-कश्मीर भेजने की मांग की थी. न्यायालय ने याचिका को "राजनीतिक रूप से प्रेरित, अस्पष्ट और तथ्यों से रहित" करार दिया. साथ ही अदालत ने इस मामले में महबूबा को बाहरी पक्ष बताया.

हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण पल्ली और न्यायमूर्ति रजनेश ओसवाल की अध्यक्षता वाली पीठ ने पाया कि मुफ्ती की जनहित याचिका का उद्देश्य राजनीतिक लाभ उठाना और खुद को एक विशिष्ट वर्ग के लिए न्याय के पैरोकार के रूप में प्रस्तुत करना था.

याचिका राजनीतिक लाभ प्राप्त करने का माध्यम नहीं: अदालत

न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि जनहित याचिका राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने या न्यायपालिका को राजनीतिक अखाड़ा बनाने का साधन नहीं है.

अदालत ने कहा, "जनहित याचिका को पक्षपातपूर्ण या राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने या न्यायालय को राजनीतिक मंच में बदलने के साधन के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. यह जनहित याचिका राजनीतिक लाभ प्राप्त करने का माध्यम भी नहीं है और न्यायालय चुनावी अभियानों के लिए मंच के रूप में कार्य नहीं कर सकते हैं. हालांकि राजनीतिक दलों के पास मतदाताओं से जुड़ने के अनेक वैध तरीके हैं, अदालतों को चुनावी लाभ प्राप्त करने के साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता."

याचिकाकर्ता महबूबा मुफ्ती बाहरी पक्ष: महबूबा मुफ्ती 

याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि याचिकाकर्ता महबूबा मुफ्ती इस मामले में एक बाहरी पक्ष हैं और इसलिए उन्‍हें अदालत के अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने का उनका कोई अधिकार नहीं है. जनहित याचिका को “गलत धारणा पर आधारित” मानते हुए अदालत ने खारिज कर दिया.

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