मीना खालको हत्याकांड : आरोपी पुलिसकर्मियों को कोर्ट ने किया बरी, मायूस परिजन बोले - "क्या करें, हमारे पास तो..."

सीआईडी ने सिपाही धर्मदत्त धनिया और जीवनलाल रत्नाकर को अपने हथियार से हत्या व थाना प्रभारी निकोदीन खेस को झूठे सबूत इकठ्ठा करने का आरोपी बनाया था. लेकिन अब तीनों को बरी कर दिया है.

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छत्तीसगढ़:

मीना खालको हत्याकांड के तीनों आरोपी पुलिसकर्मी को कोर्ट ने बरी कर दिया है. हालांकि, तीनों को बरी करते हुए कोर्ट ने पूरे मामले की जांच को निम्नस्तरीय बताते हुए सवाल उठाए हैं. दरअसल, पूरा मामला साल 2011 की सात जुलाई का है. 11 साल पहले छत्तीसगढ़ के बलरामपुर में 16 साल की एक लड़की को नक्सली बताकर मार डाला गया था. पुलिस की ओर से दावा किया गया था कि झारखंड से आए नक्सलियों के साथ दो घंटे तक चली मुठभेड़ के दौरान मीना को गोली लगी, जिससे उसकी मौत हो गई.  

ग्रामीणों ने लगाए थे गंभीर आरोप

हालांकि, गांववालों ने कहा कि उस रात सिर्फ तीन गोलियों की आवाज आई थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि पुलिसकर्मियों ने मीना का अपहरण कर उसके साथ दुष्कर्म किया और बाद में उसकी हत्या कर दी. इस मामले ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में हलचल मचा दी थी, जिसके बाद तत्कालीन सरकार ने जांच के आदेश दिए थे. जांच के आधार पर तीन पुलिसकर्मियों को आरोपी बनाया गया था. लेकिन 11 साल बाद तीनों आरोपी पुलिसकर्मी बरी हो गए, पर बाइज्जत नहीं.

पूरे मामले में सरकार की ओर से न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया था. अनिता झा की न्यायिक जांच आयोग ने लगभग चार साल बाद साल 2015 में अपनी जांच रिपोर्ट दी थी. आयोग ने अपनी जांच में पाया कि मीना की मौत पुलिस वालों की गोली लगने से हुई थी. लेकिन नक्सलियों से मुठभेड़ का दावा आयोग ने फर्जी पाया था, जिसके बाद न्यायिक जांच में 42 पुलिस अधिकारियों और जवानों पर हत्या और हत्या के प्रयास का केस दर्ज किया गया था.

कोर्ट के फैसले के परिजन मायूस

सीआईडी ने सिपाही धर्मदत्त धनिया और जीवनलाल रत्नाकर को अपने हथियार से हत्या व थाना प्रभारी निकोदीन खेस को झूठे सबूत इकठ्ठा करने का आरोपी बनाया था. लेकिन अब तीनों को बरी कर दिया है. कोर्ट के इस फैसले के बाद पीड़िता के परिजनों में मायूसी है. मीना की मां गुतियारी ख़लखो ने स्पष्ट कहा कि पुलिस वालों ने बलात्कार के बाद गोली मारकर उसकी हत्या कर दी. बेटी की याद आने के सवाल पर पथराई आंखों से कहती हैं याद तो आती है, लेकिन क्या कर सकते हैं. 

वहीं, भाभी कलवंति खलखो ने कहा कि मीना सहेली के घर गई थी. हमें लगा शाम हो गई तो सहेली के घर रुक गई होगी. लेकिन लोगों ने बताया  कि उसे मार दिया. पुलिस ने उसे बालात्कार करके मार डाला और फिर नक्सली बता दिया. उन्होंने गलत किया है और उन्हें सजा मिलना चाहिए. हमारे पास कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए रुपये नहीं है.

बाहरहाल पूरे मामले में हैरानी की बात ये है कि अदालत ने आरोपियों को रिहा तो कर दिया लेकिन जांच को घटिया बताते हुए कहा, " इस प्रकरण में जांच समय से ही विवेचना कार्यवाही निम्न स्तर की रही है. विवेचना कार्यवाही के दौरान अभियोजन ने यह स्थापित नहीं किया है कि मृतका मीना खलखो की हत्या आरोपीगण को आवंटित शस्त्र एवं उन्हें प्रदत्त गोली के लगने से हुई है. अभियोजन ने मात्र साक्षियों की संख्या को अधिक दर्शाया है, परंतु विवेचना के दौरान कथित अपराध से संबंधित तथ्यों को स्थापित करने में वह पूर्णत: असफल रहा है. अभियोजन की लापरवाही के कारण इस प्रकरण में साक्ष्य का पूर्णत: अभाव रहा है, जिससे अभियुक्त संदेह के घेरे में आने पर भी दोषसिद्धि की ओर नहीं जा पा रहे हैं, क्योंकि संदेह कितना भी गहरा हो, वह साक्ष्य का स्थान कभी नहीं ले सकता." 

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कांग्रेस विधायक ने कही ये बात

इस मामले में छत्तीसगढ़ सरकार में गृह विभाग में संसदीय सचिव और कांग्रेस विधायक विकास उपाध्याय ने कहा कि मीना खलखो प्रकरण जब हुआ तब बीजेपी की सरकार थी. चार्जशीट भी उसी वक्त दायर हुआ और जांच भी हुई. तीन-तीन जांच हुई, इसके बाद भी हमारी सरकार की प्राथमिकता सबको न्याय दिलवाने की है. कुछ बच जाता है तो जांच होगी, जांच के बाद कार्रवाई होगी.

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