- मायावती ने कांशीराम के 19वें परिनिर्वाण दिवस पर लखनऊ में आयोजित रैली में सपा और कांग्रेस पर कड़ा हमला बोला.
- मायावती ने सपा पर सत्ता में रहते दलित महापुरुषों के सम्मान में दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप लगाया.
- सपा ने 2024 लोकसभा चुनाव में पीडीए वोट बैंक को मजबूत कर यूपी में 43 सीटें जीती थीं.
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने अपने संस्थापक कांशीराम के 19वें परिनिर्वाण दिवस पर गुरुवार को लखनऊ में एक विशाल रैली का आयोजन किया. इसे पार्टी प्रमुख मायवती ने संबोधित किया. मायावती के निशाने पर मुख्यतौर पर समाजवादी पार्टी और उसके प्रमुख अखिलेश यादव रहे. इसके अलावा उन्होंने कांग्रेस पर भी हमला बोला. बसपा प्रमुख ने अभी दो दिन पहले भी सपा और अखिलेश यादव पर निशाना साधा था. इस बीच अखिलेश यादव ने लखनऊ में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में मायावती का नाम लिए बिना कहा कि बसपा की बीजेपी से सांठगांठ है. आइए जानते हैं कि मायावती के निशाने पर सपा और अखिलेश यादव क्यों हैं.
अखिलेश यादव पर मायावती के आरोप
बसपा की रैली में मायावती ने सपा पर दलित महापुरुषों के सम्मान को लेकर दोहरे पैमाने अपनाने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि सत्ता में रहने पर इन महापुरुषों की उपेक्षा करने और सत्ता से बाहर जाने के बाद उन्हें याद करने वाले 'दोगले' लोगों से बहुजन समाज को सावधान रहने की जरूरत है. इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार को अपनी सरकार में बनवाए गए स्मारकों का ख्याल रखने के लिए उन्होंने धन्यवाद दिया.
मायावती ने कहा, ''सपा के लोग दो-तीन दिन पहले मीडिया में खबर छपवा रहे थे कि वे मान्यवर श्री कांशीराम जी के सम्मान में संगोष्ठी करेंगे लेकिन जब वह सरकार में रहते हैं तो ना उन्हें पीडीए याद आता है और ना मान्यवर श्री कांशीराम जी की जयंती याद रहती है और ना ही पुण्यतिथि याद रहती है, लेकिन जब वह सत्ता से बाहर हो जाते हैं तो समाजवादी पार्टी को याद आता है कि हमें संगोष्ठी करनी चाहिए.'' उन्होंने कहा, ''मैं सपा मुखिया अखिलेश यादव से पूछना चाहती हूं कि अगर कांशीराम के प्रति आपका इतना ही आदर सम्मान था तो जब उत्तर प्रदेश में मेरी सरकार थी तो सरकार ने अलीगढ़ मंडल में कासगंज के नाम से अलग जिला बनाया और उसका नाम कांशीराम नगर रखा था, लेकिन जैसे ही सपा सत्ता में आई उसने नाम बदल दिया. कांशीराम जी के नाम पर हमने विश्वविद्यालय और अन्य संस्थानों के नाम रखे, जनहित की योजनाएं शुरू कीं मगर बाद में आई सपा सरकार ने सभी बड़ी-बड़ी योजनाओं को बंद कर दिया. यह इनका दोहरा चरित्र नहीं है तो क्या है?''
बसपा संस्थापक कांशीराम के 19वें परिनिर्वाण दिवस पर लखनऊ में आयोजित रैली में आए पार्टी के समर्थक.
मायावती ने कहा, ''जब यह सत्ता में रहते हैं तो ना इनको पीडीए (सपा का पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक का नारा) याद आता है और ना ही पीडीए के संत, गुरु और महापुरुष याद आते हैं. जब वे सत्ता से बाहर हो जाते हैं तब उन्हें हमारे संत, गुरु और महापुरुष याद आते हैं. ऐसे 'दोगले' लोगों से आप लोगों को बहुत सावधान रहने की जरूरत है.'' मायावती ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि उसने दलितों के मसीहा बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को लोकसभा में चुनकर नहीं जाने दिया और ना ही उन्हें 'भारत रत्न' से सम्मानित किया. उन्होंने कहा कि आंबेडकर के आंदोलन को गति देने वाले बसपा संस्थापक कांशीराम के निधन पर केंद्र की कांग्रेस सरकार ने उनके सम्मान में एक दिन के राष्ट्रीय शोक की भी घोषणा नहीं की थी. मायावती ने बसपा कार्यकर्ताओं का पार्टी को मजबूत कर एक बार फिर पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाने की अपील की.
वोट बैंक बचाने की लड़ाई
दरअसल यह लड़ाई उत्तर प्रदेश में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए तेज हो गई है. ऐसे में बसपा प्रमुख के निशाने पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस है. लेकिन वह बीजेपी को लेकर नरम रुख अपनाती रही हैं. दरअसल सपा और कांग्रेस के गठबंधन ने 2024 के लोकसभा चुनाव में उम्मीद से अधिक सफलता हासिल की. लेकिन बसपा एक बार फिर शून्य पर सिमट गई थी.
साल 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद सपा ने पीडीए (पीछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) वोट बैंक का नारा बुलंद किया. यादव-मुसलमान की राजनीति करने वाली सपा के लिए यह बड़ा रणनीतिक बदलाव था. दरअसल उसे बसपा कमजोर होती हुई दिख रही थी. 2007 में 206 सीटें और 30.4 फीसदी वोट हासिल कि थे. जीतने वाली बसपा 2022 में एक सीट पर सिमट गई थी. उसका वोट फीसद भी गिरकर 13 फीसदी पर पहुंच गया था. इस चुनाव परिणाम में सपा को अपने लिए उम्मीद नजर आया था. उसे लगा कि बसपा के कमजोर होते जनाधार को वह अपने पाले में कर सकती है. इसलिए सपा ने पीडीए का नारा उछाला. साल 2024 का लोकसभा चुनाव आते आते सपा पीडीए के नारे में रंगने लगी.
साल 2022 के लोकसभा चुनाव के बाद से अखिलेश यादव ने पीडीए वोट बैंक की कवायद शुरू की. इसका फायदा उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में मिला.
समाजवादी पार्टी का पीडीए वोट बैंक
लोकसभा चुनाव से पहले सपा और कांग्रेस ने संविधान और आरक्षण के खतरे में बताना शुरू किया. यह दोनों विषय दलितों के लिए स्वाभिमान की बात है, जिनकी उत्तर प्रदेश में आबादी 20 फीसदी से अधिक है. इसे ध्यान में रखते हुए सपा ने ड़ॉक्टर आंबेडकर और कांशीराम को याद करना शुरू किया.यहां तक की मेरठ और फैजाबाद जैसी सामान्य सीटों पर दलित उम्मीदवार उतारे. इसका उसे फायदा भी मिला. सपा और कांग्रेस का गठबंधन उत्तर प्रदेश में 43 सीटें जीतने में कामयाब रहा. इसमें 37 सीटें अकेले सपा ने जीतीं थीं. यह सपा के इतिहास में सबसे बेहतर प्रदर्शन दिया था.
पीडीए के इस नारे पर मिली सफलता से सपा और अखिलेश यादव के हौंसले बुलंद हैं. सपा ने लोकसभा चुनाव में वह फैजाबाद सीट भी जीत ली, जिसमें अयोध्या आती है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद को अपने साथ हर जगह लेकर जाने लगे. यहां तक की संसद में भी वो उनको अपने पास ही बैठाते थे. इस पीडीए वोट बैंक को मजबूत करने के लिए ही सपा ने आंबेडकर जयंती पर सात दिन का आयोजन किया. वहीं कांशीराम की जयंती पर सपा ने प्रदेश भर में विचार गोष्ठी के आयोजन की घोषणा की.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का चुनाव 2027 में होना है. लेकिन इसकी तैयारी में राजनीतिक दल अभी से जुट गए हैं. बसपा की रैली उसकी चुनाव तैयारियों का आगाज है. बसपा इन दिनों अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. उत्तर प्रदेश में चार बार सरकार बनाने वाली बसपा का इस समय विधानसभा में मात्र एक विधायक है. वहीं लोकसभा में उसका कोई सदस्य नहीं. इस स्थिति में सपा के पीडीए वोट बैंक का मजबूत होना बसपा को खतरा नजर आ रहा है. इसलिए मायावती ने अपनी रैली में सपा और अखिलेश यादव पर जमकर निशाना साधा. बीजेपी के कोर वोट बैंक ने 2007 को छोड़कर कभी बसपा का वोट नहीं दिया. उस समय बसपा को ब्राह्मण समाज का वोट केवल इसलिए मिला था, क्योंकि उस समय बीजेपी कमजोर स्थिति में थी. इसलिए मायावती के निशाने पर सपा और अखिलेश यादव अधिक हैं, क्योंकि उनको डर है कि उनका वोट बैंक बिखर सकता है. इसलिए उन्होंने बसपा कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर बसपा की सरकार बनाने की अपील की है. मायावती अपना वोट बैंक कितना संभाल पाती हैं और सपा उसमें कितना सेंध लगा सकती है, इसके लिए हमें 2027 के नतीजे आने तक का इंतजार करना होगा.
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