Mayawati Rise and Fall: कभी फोर्ब्‍स ने बताया पावरफुल वुमन, PM फेस भी कही गईं... अर्श से फर्श पर आईं मायावती

मायावती की कहानी भारतीय राजनीति में 'अर्श से फर्श' की कहानी है. मायावती एक बार फिर राजनीति की धारा को मोड़ पाएंगी, इस पर फिलहाल सवालिया निशान दिखते हैं.

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  • वर्ष 2008 में फोर्ब्स ने मायावती को दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया था.
  • मायावती उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं जिन्होंने पूर्ण पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था.
  • 2007 के विधानसभा चुनाव में बसपा को पूर्ण बहुमत मिला और मायावती को उत्तर प्रदेश की आयरन लेडी कहा गया.
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साल 2008. आज ही की तारीख थी. अंतरराष्ट्रीय पत्रिका फोर्ब्स ने दुनिया की 100 सबसे शक्तिशाली महिलाओं की लिस्ट जारी की. इसमें उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती (Mayawati) का नाम भी शामिल था. दलित राजनीति की सबसे सशक्त आवाज, सत्ता की बेहद मजबूत खिलाड़ी और सामाजिक समीकरणों की धुरी- मायावती उस वक्त अपने करियर के शीर्ष पर थीं. 403 में से 206 सीटें जीतकर सरकार बनाने वालीं मायावती को कभी 'दलितों की बेटी' कहकर प्रधानमंत्री पद का दावेदार तक माना गया. लेकिन वक्‍त ने ऐसी करवट बदली कि आज वही मायावती अर्श से फर्श पर आ खड़ी दिखती हैं. 

मजबूत महिला नेतृत्‍व के रूप में उभरीं

2008 में फोर्ब्स ने मायावती को दुनिया की 100 सबसे शक्तिशाली महिलाओं में 59वें स्थान पर रखा था, जो उनके राजनीतिक प्रभाव और कुमारी मायावती के सामाजिक न्याय के लिए किए गए कामों और सेट किए गए नैरेटिव का सबूत था. उस समय वो एक मजबूत राजनीतिक नेता के रूप में उभरी थीं, जिन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए आवाज उठाई और अपने शासनकाल के दौरान कानून व्यवस्था, विकास और सामाजिक न्याय पर जोर दिया था. 

उन्होंने दलितों की समस्या को उठाया और उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था सुधारने, अपराध कम करने और भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का श्रेय हासिल किया. उनके शासन में यूपी की जीडीपी (GDP) करीब 15% से ज्‍यादा तक बढ़ी और अपराध दर भी कुछ कम हुई. 2007 के विधानसभा चुनावों में BSP को स्पष्ट बहुमत मिला, जिससे मायावती यूपी की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. उस दौरान उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस समय राजनीतिक विशेषज्ञ उन्हें बेहद प्रभावी और सक्षम बताने लगे थे.

मायावती का सियासी सफर 

  • जून 1995 में मायावती यूपी की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं. 18 अक्टूबर 1995 तक सीएम रहीं.
  • 21 मार्च 1997 को, वो दूसरी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और 20 सितंबर 1997 तक रहीं.
  • 1998 में अकबरपुर क्षेत्र से 12वीं लोकसभा की सदस्य के रूप में दूसरी बार चुनी गईं. 1999 में फिर 13वीं लोकसभा की सदस्य बनीं. 
  • 15 दिसंबर 2001 को, दलित नेता कांशी राम ने एक बड़ी सभा में मायावती को राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित किया. 
  • फरवरी 2002 में वो फिर से विधायक बनीं तो मार्च में उन्होंने अकबरपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया. 
  • 3 मई 2002 को वो तीसरी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनाई गईं. 26 अगस्त 2002 तक सीएम बनी रहीं. 
  • कांशी राम की तबीयत खराब रहने लगी तो 18 सितंबर 2003 को उन्‍हें बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया.
  • 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में वो एक बार फिर अकबरपुर क्षेत्र से (चौथी बार) जीत हासिल कर सांसद बनीं.
  • हालांकि जुलाई 2004 में उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और दूसरी बार राज्यसभा की सदस्य बनीं. 
  • 13 मई 2007 को, मायावती चौथी बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और 14 मार्च 2012 तक पद पर बनी रहीं. 

इन वजहों से शिखर पर थीं मायावती 

2007 विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 403 में से 206 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया था. यूपी की राजनीति में यह पहली बार था जब एक दलित नेता ने जातीय समीकरणों को जोड़कर, खासकर 'बहुजन-तथागत (दलित-ब्राह्मण) समीकरण' के दम पर सत्ता पाई. यही दौर था जब मायावती को यूपी की 'आयरन लेडी' कहा जाने लगा. उनकी मजबूती के पीछे कई वजहें रहीं. 

  • सोशल इंजीनियरिंग- दलितों को ब्राह्मणों, पिछड़ों और मुसलमानों से जोड़ने का प्रयोग.
  • करिश्माई नेतृत्व- मायावती को 'दलितों की बेटी' के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान.
  • केंद्रीय राजनीति में पकड़- 2008–09 तक पीएम पद के संभावित चेहरे के रूप में उनका नाम चर्चाओं में.
  • बड़ी वोट बैंक- 2009 लोकसभा चुनाव में बसपा ने 21 सीटें जीतीं और करीब 6% वोट शेयर हासिल किया.

...और ऐसे शुरू हुआ मायावती का पतन  

यूपी में 2007 का विधानसभा चुनाव मायावती के लिए स्‍वर्णकाल रहा, लेकिन 2012 विधानसभा चुनाव में बसपा 80 सीटों तक सिमट गई, जबकि समाजवादी पार्टी को बहुमत मिल गया.वहीं 2014 लोकसभा चुनाव तो बसपा के लिए बहुत ही बुरा साबित हुआ, जबकि नरेंद्र मोदी की लहर में बसपा का खाता तक नहीं खुला. फिर आया साल 2017. यूपी में विधानसभा चुनाव हुए और एक बार फिर मोदी लहर में बीजेपी ने कमाल कर दिखाया. वहीं, बसपा को महज 19 सीटों से संतोष करना पड़ा. 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने अखिलेश के साथ हाथ मिलाया, लेकिन सपा-बसपा की जोड़ी भी बहुत कमाल नहीं कर पाई. बसपा केवल 10 सीटें जीत पाई. 

बीजेपी ने गैर-जाटव दलितों को अपने साथ जोड़ लिया और मायावती का दलित वोट बैंक बिखर गया. बसपा के नेतृत्व में भी ठहराव-सा आ गया. पार्टी का चेहरा सिर्फ मायावती तक सीमित रहा, उनके बाद कौन, ये तय नहीं हो पाया.  बीजेपी ने जहां गांव-गांव तक बूथ स्तर पर संगठन मजबूत किया वहीं, बसपा ऐसा नहीं कर पाई. विफलता के चलते 2019 का महागठबंधन चुनाव बाद तुरंत टूट गया. मायावती की रैलियों और जनता से सीधा संवाद भी कम होता चला गया.

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अब मिशन-2027 पर नजर 

मायावती की कहानी भारतीय राजनीति में 'अर्श से फर्श' की कहानी है. मायावती एक बार फिर राजनीति की धारा को मोड़ पाएंगी, इस पर फिलहाल सवालिया निशान दिखते हैं. अब मायावती ने बसपा के संस्थापक कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस 9 अक्तूबर को 'मिशन-2027' का आगाज करने का प्लान बनाया है.

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