दिल्ली यूनिवर्सिटी में मनुस्मृति और बाबरनामा पर क्यों मचा है हंगामा, जानिए पूरा मामला?

दिल्ली यूनिवर्सिटी में मनुस्मृति और बाबरनामा को सिलेबस में शामिल करने को लेकर विरोध देखने को मिल रहा है. कुछ छात्र इसके समर्थन में हैं तो वहीं कुछ इसका विरोध कर रहे हैं.

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नई दिल्ली:

दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) में एक बार फिर विवाद देखने को मिल रहा है. मामला सिलेबस में बदलाव का है, जिसमें मनुस्मृति और बाबरनामा जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों को शामिल करने की चर्चा को लेकर छात्रों, शिक्षकों ने विरोध जताया है. गौरतलब है कि डीयू के कुछ विभागों ने स्नातक पाठ्यक्रम में इन किताबों को पढ़ाने का प्रस्ताव रखा है.  

यहां जानिए पूरा मामला
डीयू के इतिहास और दर्शनशास्त्र विभाग ने अपने स्नातक पाठ्यक्रम में बदलाव के तहत मनुस्मृति और बाबरनामा को शामिल करने का सुझाव दिया.  प्रस्ताव के अनुसार, मनुस्मृति को भारतीय दर्शन और सामाजिक व्यवस्था के अध्ययन के लिए पढ़ाया जाना था, जबकि बाबरनामा को मध्यकालीन इतिहास और मुगल शासन की समझ के लिए प्रस्तावित किया गया. विश्वविद्यालय प्रशासन का तर्क था कि ये ग्रंथ छात्रों को प्राचीन और मध्यकालीन भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक गतिशीलता को समझने में मदद करेंगे. यूनिवर्सिटी के प्रस्ताव का छात्र संगठनों और शिक्षक समुदाय के एक बड़े वर्ग ने विरोध किया है.

मनुस्मृति पर क्या है विवाद?
मनुस्मृति, जिसे मनु संहिता भी कहा जाता है, एक प्राचीन हिंदू ग्रंथ है जो सामाजिक व्यवस्था, कर्तव्यों और कानूनों को परिभाषित करता है. इसकी सबसे बड़ी आलोचना इसके वर्ण व्यवस्था और महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण को लेकर रही है. डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 1927 में इसे सार्वजनिक रूप से जलाया था, इसे "जातिवाद और उत्पीड़न का प्रतीक" बताया जाता रहा है. 

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विरोध करने वाले छात्रों का कहना है कि यह ग्रंथ आधुनिक भारत के समावेशी और समतावादी मूल्यों के खिलाफ है.   दूसरी ओर, समर्थकों का तर्क है कि मनुस्मृति को उसके ऐतिहासिक संदर्भ में पढ़ाया जाना चाहिए, न कि इसे आधुनिक नैतिकता की कसौटी पर तौला जाए. 

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बाबरनामा पर क्यों है विवाद? 
बाबरनामा, मुगल सम्राट बाबर की आत्मकथा, मध्यकालीन भारत के इतिहास का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है. इसमें बाबर के जीवन, युद्धों और शासन के बारे में विस्तृत जानकारी है. हालांकि, इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव पर विवाद देखने को मिल रहा है. हालांकि इसके समर्थकों का कहना है कि बाबरनामा को केवल एक शासक की डायरी के रूप में देखना चाहिए, न कि किसी धार्मिक या सांप्रदायिक नजरिए से. लेकिन विरोधियों का कहना है कि ऐसे समय में जब अयोध्या विवाद और बाबरी मस्जिद का मुद्दा अभी भी लोगों की स्मृति में ताजा है, बाबरनामा को पढ़ाना सांप्रदायिक तनाव को भड़का सकता है. 

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छात्रों के साथ-साथ शिक्षक भी कर रहे हैं विरोध
शिक्षकों का एक वर्ग भी इस मुद्दे पर बंटा हुआ है. दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) ने एक बयान जारी कर कहा, "पाठ्यक्रम में बदलाव से पहले सभी पक्षों से विचार-विमर्श जरूरी है. जल्दबाजी में लिए गए फैसले विश्वविद्यालय की साख को नुकसान पहुंचा सकते हैं." कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) ने भाजपा पर "शिक्षा का भगवाकरण" करने का आरोप लगाया है.  

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यूनिवर्सिटी का क्या कहना है? 
डीयू प्रशासन ने अभी तक इस प्रस्ताव पर अंतिम फैसला नहीं लिया है. विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल की अगली बैठक में इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा होगी. तब तक यह विवाद थमने के कोई आसार नहीं दिख रहे.  छात्रों का कहना है कि वे अपने विरोध को तब तक जारी रखेंगे जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं. 

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