मणिपुर में कैसे 2 चरणों में हुई हिंसा? पुलिस से कहां हुई चूक? रिटायर्ड आर्मी अफसर ने NDTV को बताया

3 महीने से हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर में इस दौरान नींद के दौरान निर्मम हत्याएं हुईं, फांसी पर लटकाने की वारदात भी हुई. उपद्रवियों ने सिर कलम भी किया. वहीं, हिंसा के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराध बहुतायत में हुईं. इसमें तीन महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराना और उसमें से एक के साथ गैंगरेप करना शामिल है.

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लेफ्टिनेंट जनरल एल निशिकांत सिंह (रिटायर्ड) ने कहा कि मणिपुर में तेजी से शांति लाना जरूरी है.
नई दिल्ली:

पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 3 मई से जातीय हिंसा जारी है. मैतेई और कुकी-चिन-ज़ो जनजातियों के बीच झड़पें देखी जा रही हैं.  मणिपुर हिंसा में अब तक 180 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. 200 से अधिक लोग घायल हुए हैं. वहीं, आगजनी और अन्य हिंसक घटनाओं में सैकड़ों गांव और कई सरकारी, निजी संपत्तियां राख हो चुकी हैं. घाटी और पहाड़ी जिले के 50 हजार से ज्यादा लोगों को रिलीफ कैंप में शरण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

3 महीने से हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर में इस दौरान नींद के दौरान निर्मम हत्याएं हुईं, फांसी पर लटकाने की वारदात भी हुई. उपद्रवियों ने सिर कलम भी किया. वहीं, हिंसा के बीच महिलाओं के खिलाफ अपराध बहुतायत में हुईं. इसमें तीन महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराना और उसमें से एक के साथ गैंगरेप करना शामिल है. इस घटना ने देश और दुनिया को शर्मसार किया.

हिंसा भड़कने के बाद से पहाड़ियों और घाटी में भीड़ ने पुलिस शस्त्रागारों से करीब 4000 हथियार, गोला-बारूद और बम लूट लिए. ये पुलिस के लिए सबसे बड़ा खतरा था. हालांकि, पुलिस ने इनमें से कुछ हथियार बरामद कर लिए हैं.

इस बीच NDTV ने मणिपुर की स्थिति पर करीब से नजर रखने वाले रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल लाइफ्राकपम निशिकांत सिंह (एल. निशिकांत सिंह) से खास बात की. लेफ्टिनेंट जनरल सिंह भारतीय सेना में दूसरी सबसे ऊंची रैंक हासिल करने वाले पूर्वोत्तर के तीसरे व्यक्ति हैं. अफगानिस्तान में फरवरी 2010 में इंडिया मेडिकल मिशन पर हमले के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन उनके करियर के सबसे चुनौतीपूर्ण मिशनों में एक रहा. एल. निशिकांत सिंह ने 40 साल की सेवा के बाद 2018 में रिटायर्ड होने से पहले उन्होंने भारतीय सेना की इंटेलिजेंस कोर का भी नेतृत्व किया.

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पढ़िए, मणिपुर में हुई हिंसा और ताजा हालात पर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल लाइफ्राकपम निशिकांत सिंह से बातचीत के खास अंश:-

एक सिक्योरिटी इंटेलिजेंस के अनुभवी के रूप में आप पुलिस शस्त्रागारों से हथियारों और गोला-बारूद की लूट को कैसे देखते हैं?
हथियारों और गोला-बारूद की पहली लूटपाट चुराचांदपुर में शुरू हुई. बदमाशों ने एक बंदूक की दुकान और पुलिस स्टेशन को लूट लिया. वहां सुरक्षा कर्मियों से हथियार छीन लिए गए. इसके नतीजे के रूप में घाटी में भी लूटपाट हुई. लेकिन यहां एक बात का विश्लेषण करने की जरूरत है- कुकी 90 दिनों से अधिक समय से लड़ रहे हैं. असम राइफल्स ने कहा कि सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशंस (SOO)समूह के कैडर अपने हथियारों के साथ कैंप में हैं. अगर वाकई ऐसा है, तो कुकी विद्रोही लगभग हर दिन मैतेई गांवों पर गोलीबारी कैसे कर रहे हैं? इसके साथ ही वो अपना खाना-पीना कैसे कर रहे हैं? ध्यान रखें कि वे स्नाइपर राइफल, ग्रेनेड लॉन्चर, दो-इंच मोर्टार जैसे अत्याधुनिक हथियारों का इस्तेमाल कर रहे हैं. सवाल यह है कि वे इतने लंबे समय तक कैसे मैनेज कर पा रहे हैं? 90 दिन से ज्यादा हो गए. यह मणिपुर संकट का एक महत्वपूर्ण पहलू है.

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तुलनात्मक रूप से ऐसा कहा जा सकता है कि दूसरे पक्ष के पास वास्तव में कोई हथियार नहीं है. मैं किसी भी तरह से घाटी में पुलिस शस्त्रागारों की लूटपाट को नजरअंदाज नहीं कर रहा हूं. लेकिन मुझे लगता है कि जनता हालात से मजबूर थी. कुकी विद्रोहियों की ओर से हर दिन गोलीबारी किए जाने से दूसरे समूह के लोग भी मजबूर थे. मुझे लगता है कि जनता उन्माद हो गई. उन्होंने किसी भी तरह से खुद को हथियारबंद करने का फैसला किया.

मेरे नजरिए ये देखा जाए तो मणिपुर में लड़ाई को 2 चरणों में बांटा जा सकता है. पहला चरण 3 मई से 10-11 मई तक था. इसमें  कम तीव्रता वाली गोलीबारी हुई. कभी-कभी तीव्रता अधिक होती थी और कभी-कभी बहुत कम. वहीं, हिंसा का दूसरा चरण, तब शुरू हुआ, जब 27 और 28 मई को इंफाल घाटी पर सभी दिशाओं से हमले हुए. यह चरण कई दिनों तक चलने वाली उच्च तीव्रता की लड़ाई से अलग था. जब तक दोनों पक्षों से हथियार वापस लेने का कोई कारगर कदम नहीं उठाया जाता, तब तक लड़ाई जारी रहने की आशंका है.

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क्या पुलिस अपने शस्त्रागारों की लूटपाट रोकने के लिए तैयार नहीं थी? लूटपाट वास्तव में कैसे हुई?
पुलिस स्टेशनों से हथियार लूटने की घटना सिर्फ मणिपुर में ही नहीं हुई है. ऐसा कई जगहों पर हुआ है. बहुत समय पहले जब मैं भारतीय सेना में एक युवा मेजर था, तब की एक घटना बताता हूं. उस समय पुरुलिया पुलिस ने दो आतंकवादियों को गिरफ्तार किया था. वे निहत्थे थे, लेकिन उन्होंने थाने से हथियार लूट लिए. आंतकियों ने उन हथियारों से 11 पुलिसकर्मियों की गोली मारकर हत्या कर दी. हथियारों की लूट तो होती ही है, खासकर जब लोगों में हताशा हो. एक पुलिस स्टेशन में अधिकतम 25-30 लोग होते हैं, जिनमें से 5-10 ड्यूटी पर होते हैं. इसलिए किसी भी समय में एक पुलिस स्टेशन में ज्यादा से ज्यादा 10-15 लोग ही हो सकते हैं. कल्पना कीजिए 2000 से 3000 की भीड़ एक पुलिस स्टेशन में घुस जाती है. ऐसे में दो-तीन संतरियों के लिए भी भीड़ पर गोली चलाना बहुत मुश्किल होगा. क्योंकि ऐसी स्थिति के अपने कानूनी, मनोवैज्ञानिक और अन्य निहितार्थ कारण होते हैं. जाहिर तौर पर ऐसे ही हथियार लूटे गए.

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कई लोगों ने स्थिति से निपटने में मणिपुर पुलिस की अक्षमता की आलोचना की है. कई लोगों की राय है कि मणिपुर पुलिस कानून-व्यवस्था की स्थिति को ठीक से नहीं संभाल पाई. ऐसे में हिंसा नियंत्रण से बाहर हो गई. आपके अनुसार कानून-व्यवस्था के मामले में पुलिस से गलती कहां हुई?
3 मई को मणिपुर के अलग-अलग हिस्सों में जो शुरू हुआ, वह कोई साधारण कानून-व्यवस्था की स्थिति नहीं थी. यह एक बहुत बड़ा सांप्रदायिक दंगा था. अगर आपको 1984 में दिल्ली और अन्य जगहों पर हुए सांप्रदायिक दंगे याद हों, तो शुरुआत में पुलिस उनसे निपटने में सक्षम नहीं थी. मणिपुर के मामले में पुलिस को दो समूहों के लोगों का एनकाउंटर करना पड़ा. इनमें से एक समूह के पास गोला-बारूद की अच्छी खासी मात्रा थी. उनके पास हथियार थे, जिसके जरिए वो पुलिस से मुकाबला कर सकते थे. दूसरे समूह के पास भीड़ की ताकत थी.

हिंसा की भयावहता को देखकर पुलिस बेशक कुछ घबरा गई होगी. 4 मई से केंद्र सरकार ने हवाई मार्ग से कई अर्धसैनिक बल इंफाल भेजे. एक अनुमान के मुताबिक, आज राज्य में करीब 60000 सुरक्षाबल तैनात हैं. अगर हमें अक्षमता के लिए पुलिस को दोषी ठहराना है, तो हमें 60000 केंद्रीय सुरक्षा कर्मियों को ध्यान में रखना चाहिए. ये सुरक्षा कर्मी तीन महीने से अधिक समय से राज्य में तैनात हैं. उन्हें भी स्थिति को नियंत्रित करना बेहद चुनौतीपूर्ण लगा.

मैं मानता हूं कि अगर शुरुआती दौर में हिंसा पर काबू पा लिया जाता, तो स्थिति नियंत्रित हो जाती. लेकिन सवाल यह है कि क्या पिछले 90 दिनों में हमने स्थिति पर काबू पाने में सचमुच काम किया है? मुझे वास्तव में नहीं पता. आए दिन फायरिंग की घटनाएं होती रहती हैं. ऐसा कोई दिन नहीं जाता, जब मैतेई गांव पर तलहटी से विद्रोहियों ने गोलीबारी न की हो. दुर्भाग्य से, अगर असम राइफल्स, बीएसएफ और सीआरपीएफ सहित इतना बड़ा केंद्रीय बल हिंसा को पूरी तरह से नियंत्रित नहीं कर सका, तो मणिपुर पुलिस से यह उम्मीद करना कि वह इसे अपने दम पर नियंत्रित कर लेगी, ऐसा कहना बेमानी होगा. मेरा मानना ​​है कि जल्द ही सुरक्षा बल स्थिति पर काबू पाने में सफल होंगे.

असम राइफल्स और मणिपुर पुलिस कमांडो दशकों से राज्य में सक्रिय प्रमुख बल हैं. इस बार दोनों पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप और अविश्वास के मुद्दे भी सामने आए. यह सुरक्षा परिदृश्य को किस हद तक नुकसान पहुंचा रहा है?
हां... विश्वास की कमी मौजूद है. जब समस्या शुरू हुई, तो कुकियों ने यहां तैनात 23 मैतेई अधिकारियों का ट्रांसफर कराने के लिए रक्षा मंत्रालय के सामने एक प्रेजेंटेशन दिया था. यह सिस्टम में भरोसे की कमी को ही दर्शाता है. उन्हें सिर्फ मणिपुर पुलिस पर ही भरोसा नहीं था. बल्कि वो असम राइफल्स और भारतीय सेना पर भी अविश्वास करते हैं. क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनके उद्देश्य को नुकसान होगा. यह एक पहलू है. आपको जानकर हैरानी होगी कि यही सूची संयुक्त राष्ट्र के पास भी गई है. अगर आप कुकियों की ओर से संयुक्त राष्ट्र में किए गए निवेदन को देखें, तो आप इसे समझ पाएंगे.

सार्वजनिक आरोप जो भी हों, संबंधित अधिकारियों यानी गृह मंत्रालय, असम राइफल्स और मणिपुर सरकार को जांच करने की कोशिश करनी चाहिए. जनता का विश्वास हासिल करने का आश्वासन देना चाहिए. अगर जो आरोप लगाया जा रहा है वह सही नहीं है, तो उन्हें मामले के तथ्यों के साथ सामने आना चाहिए. स्पष्टीकरण देना चाहिए. अगर आरोप सही पाया जाता है तो अधिकारियों को इसमें सुधार करना चाहिए. सबकी जिम्मेदारियां तय करनी चाहिए.

आज की स्थिति के अनुसार, मैतेई लोगों को असम राइफल्स के एक वर्ग पर भरोसा नहीं है. कुकियों को राज्य बलों पर भरोसा नहीं है. मैतेई ने तीसरे सप्ताह के दौरान असम राइफल्स पर अविश्वास करना शुरू कर दिया था. कुकियों के हमलों का दूसरा चरण शुरू करने के ठीक बाद ऐसा हुआ. वास्तव में, मैतेई लोग हिंसा के दौरान क्षेत्र के गलत तरफ पकड़े गए लगभग 40000 लोगों को बचाने के लिए असम राइफल्स के आभारी थे. ऐसे मानवीय कार्य करने के लिए असम राइफल्स को श्रेय दिया जाना चाहिए. लेकिन विश्वास की कमी तब विकसित हुई जब 27-28 मई की रात को इंफाल घाटी पर कुकियों ने समन्वित हमले शुरू किए. विश्वास की यह कमी अब भी बनी हुई है. 

हालांकि, मुझे यकीन है कि गृह मंत्रालय, असम राइफल्स, भारतीय सेना और मणिपुर सरकार इस मुद्दे को देखने के लिए अपना आंतरिक तंत्र बनाएगी. साथ ही इस विश्वास की कमी को कम करने के लिए पर्याप्त कार्रवाई करेगी.

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