सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे गुट को बड़ी राहत देते हुए कहा कि वह चुनाव चिह्न को लेकर फिलहाल कोई फैसला नहीं करेगा. साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को कहा कि इस मामले में कोई फैसला न ले. सभी पक्ष हलफनामा दायर कर सकते है. 8 अगस्त को EC में जवाब दाखिल करना है. अगर पक्षकार जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगते हैं तो EC उसे समय देने पर विचार कर सकता है. अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई 8 अगस्त को करेगा. क्या मामले को संवैधानिक पीठ को भेजा जाए इस पर सुप्रीम कोर्ट 8 अगस्त को विचार करेगा.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुटे से सवाल किया कि अगर आप चुने जाने के बाद राजनीतिक दल को पूरी तरह से नजरअंदाज कर रहे हैं तो क्या यह लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है? इसके जवाब में शिंदे गुट की ओर से पेश हुए वकील हरीश साल्वे ने कहा कि नहीं, मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं. हमने राजनीतिक दल नहीं छोड़ा है. कोर्ट ने यह सवाल तब पूछा जब सुनवाई के दौरान वकील साल्वे ने कहा, अगर कोई भ्रष्ट आचरण से सदन में चुना जाता है और जब तक वो अयोग्य घोषित नहीं होता तब तक उसके द्वारा की गई कार्रवाई कानूनी होती है. जब तक उनके चुनाव रद्द नहीं हो जाते, तब तक सभी कार्रवाई कानूनी है. दलबदल विरोधी कानून असहमति विरोधी कानून है. यहां एक ऐसा मामला है जहां दलबदल विरोधी नहीं है. उन्होंने कोई पार्टी नहीं छोड़ी है. अयोग्यता तब आती है जब आप किसी निर्देश के खिलाफ मतदान करते हैं या किसी पार्टी को छोड़ देते हैं.
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साथ ही साल्वे की ओर से कहा गया, कोर्ट में याचिका दाखिल करने और अयोग्यता के खिलाफ कार्रवाई दो महीने बाद होती है. उस दौरान वो सदन में वोट दे देता है तो ऐसा नहीं है कि दो महीने बाद वो अयोग्य होता है तो उसका वोट मान्य नहीं होगा. ऐसे में केवल उसे अयोग्य माना जाएगा ना की उसके द्वारा किये गए वोट को.
इस पर सीजेआई ने पूछा कि जब आप कोर्ट आये थे तब हमनें कहा था की स्पीकर इस मामले का (अयोग्यता) का निपटारा करेंगे न कि सुप्रीम कोर्ट न ही हाईकोर्ट. तो आपके कहने का मतलब है कि SC या HC फैसला नहीं कर सकते. आप कहते हैं कि स्पीकर को पहले फैसला करने की अनुमति दी जानी चाहिए. इस पर साल्वे ने कहा कि बिल्कुल.
इसके बाद CJI ने उद्धव ठाकरे गुट के वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि राजनीतिक पार्टी की मान्यता को ये मामला है इसमें हम दखल कैसे दें? चुनाव आयोग में ये मामला है.
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कपिल सिब्बल ने चुनाव आयोग की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग यह निर्धारित नहीं कर सकता कि असली शिवसेना कौन है? बागी विधायकों की अयोग्यता पर फैसला होने तक चुनाव आयोग ये फैसला नहीं कर सकता. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. मान लीजिये कि आयोग इस मामले में एक फैसला देता है और तब अयोग्यता पर फैसला आता है तो फिर क्या होगा?
चुनाव आयोग ने भी सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रखते हुए कहा कि अगर ऐसे मामलों में कोई पक्ष आयोग के पास आता है तो उस समय आयोग का ये फर्ज है कि वो तय करें कि असली पार्टी कौन है.