आईपीएस रश्मि शुक्ला की ओर से ओर से एक पत्र लिखकर ट्रांसफर रैकेट चलने और अफसरों-नेताओं के इसमें शामिल होने के आरोप ने महाराष्ट्र की सियासत में तूफान ला दिया है. विपक्षी पार्टी बीजेपी ने इस मामले में उद्धव ठाकरे नीत गठबंधन सरकार के खिलाफ हमलावर रुख अपना रखा है. इस बीच राज्य के मुख्य सचिव सीताराम कुंटे ने तबादले और पोस्टिंग के आरोप पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. रिपोर्ट में मुख्य सचिव इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि रश्मि शुक्ला में जिस अवधि में कॉल रिकॉर्डिंग कर तबादला पोस्टिंग में गड़बड़ी का दावा किया था, उस दौरान किसी भारतीय पुलिस सेवा (IPS) अधिकारी का तबादला या पोस्टिंग नहीं की गई थी. साल 2020 में एकाध अपवाद को छोड़कर ज्यादातर बदली पुलिस अस्थापना एक की सिफारिश पर ही हुई थी इसलिए उस दौरान जब रिपोर्ट मुख्यमंत्री के सामने रखी गई थी तब कोई कार्रवाई नहीं की गई.
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दूसरे रश्मि शुक्ला ने 2/9/2020 से 28/10/2020 की अवधि में फोन टैपिंग की इजाजत मांगी थी. तब उन्होंने सार्वजनिक सुरक्षा व्यवस्था को खतरा बताकर तत्कालीन ACS सीताराम कुंटे से फोन टैपिंग की इजाजत ली थी. रिपोर्ट में लिखा है कि तब रश्मि शुक्ला ने जानबूझकर झूठ बोलकर इंडियन टेलीग्राफ कानून के तहत इजाजत ली जबकि राजनीतिक मतभेद, कारोबारी विवाद और पारिवारिक कलह इसमें नही आते. ये बात सामने आने पर रश्मि शुक्ला से स्पष्टीकरण लेने का आदेश दिया गया था, तब उन्होंने मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और ACS से मिलकर अपनी गलती के लिए माफी मांगी और कैंसर बीमारी से अपने पति की मौत की वजह से बच्चों के पढ़ाई की दुहाई दी थी.
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रिपोर्ट बताती है कि रश्मि शुक्ला ने अपनी रिपोर्ट वापस लेने का प्रस्ताव भी दिया था लेकिन शासन में इस तरहं का कोई प्रावधान नही होने से उन्हें रिपोर्ट लेने से मना कर दिया गया. उनकी विनंती और महिला अधिकारी होने के नाते उन पर कोई कार्रवाई नही की गई इस बीच वो केंद्र में डेपुटेशन पर चली गईं. मुख्य सचिव ने रिपोर्ट में लिखा है कि 25/8/2020 को पुलिस महानिदेशक ने जब रिपोर्ट सौंपी थी तब उसमे फ़ोन रिकॉर्डिंग की पेन ड्राइव नही थी. लेकिन मीडिया में पेन ड्राइव में डेटा होने का दावा किया गया है. जिस तरहं से रिपोर्ट सामने आई है ऐसा लगता है कि ये रश्मि शुक्ला की आफिस प्रति है. इससे टॉप सीक्रेट कॉपी लिंक करने का मामला बनता है और अगर ये सिद्ध होता तो कठोर कार्रवाई की हकदार होंगी. इसके अलावां जिन अधिकारियों का नाम उजागर हुआ, उनकी निजता का हनन और बदनामी का मामला भी बनता है.