चुनाव से पहले OBC और दलितों को लुभाने में लगी महाराष्ट्र सरकार, हरियाणा की तर्ज पर लिया फैसला

महाराष्ट्र सरकार ने गुरुवार को हुई कैबिनेट में केंद्र सरकार से सिफारिश की कि ओबीसी आरक्षण के लिए क्रीमीलेयर की सीमा को आठ लाख रुपये सालाना से बढ़ाकर 15 लाख रुपये सालाना कर दिया जाए. आइए जानते हैं कि महाराष्ट्र सरकार ने यह मांग क्यों की है.

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नई दिल्ली:

विधानसभा चुनाव से पहले महाराष्ट्र की सरकार ने गुरुवार को एक बड़ा कदम उठाया.महाराष्ट्र कैबिनेट ने केंद्र सरकार से नॉन क्रीमी लेयर के लिए आय की सीमा को आठ लाख से बढ़ाकर 15 लाख सालाना करने की मांग की है.इसके साथ ही महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के अनुसूचित जाति आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाले अध्यादेश के प्रारूप को भी मंजूरी दी है.राज्य में अगले महीने तक होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले इन फैसलों को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.आइए जानते हैं कि महाराष्ट्र सरकार के इन फैसलों के पीछे की राजनीति क्या है. इससे बीजेपी-शिवसेना और एनसीपी के महायुति को क्या लाभ हो सकता है. 

महाराष्ट्र सरकार की चुनौती क्या है

महाराष्ट्र में बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी की सरकार है. महाराष्ट्र में पिछले काफी समय से मराठा समुदाय आरक्षण की मांग कर रहा है.मराठा मनोज जरांगे के नेतृत्व में आंदोलन कर रहे हैं.मराठा समुदाय ने पहले अलग आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन किया. लेकिन अलग से आरक्षण को अदालत की ओर से मान्यता न मिलने के बाद से उसने ओबीसी आरक्षण में से ही अपने लिए 10 फीसदी आरक्षण की मांग करने शुरू कर दी.   

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे.

मराठाओं की इस मांग ने महाराष्ट्र के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को असहज कर दिया. उसने भी नाकेबंदी तेज कर दी है. इससे महाराष्ट्र में सामाजिक विभाजन सतह पर आ गया है. इस बीच मनोज जरांगे ने महायुति के खिलाफ चुनाव लड़ने की धमकी दे दी है. महाराष्ट्र सरकार ने पिछले साल विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाकर मराठा समुदाय के सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर उसे 10 फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था की थी. महाराष्ट्र में मराठा को आरक्षण की व्यवस्था इससे पहले 2014 और 2018 में भी की गई थी. इसे अदालत ने असंवैधानिक बता दिया था.इसके बाद से मराठा समुदाय ओबीसी आरक्षण में से ही अपने लिए 10 फीसदी अलग आरक्षण की मांग कर रहा है. 

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हरियाणा सरकार ने भी बढ़ाई थी क्रीमी लेयर की सीमा

मराठा आरक्षण आंदोलन इस वक्त महाराष्ट्र सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है.चुनाव से पहले महायुती की सरकार इससे दवाब में है. इससे निपटने के लिए उसने ओबीसी के क्रीमीलेयर की सीमा आठ लाख से बढ़ाकर 15 लाख रुपये करने की मांग केंद्र सरकार से की है.इसकी मांग ओबीसी समुदाय बहुत पहले से ही कर रहा था. 

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मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (बीच में) और उपमुख्यमंत्री अजित पवार (बाएं)

दरअसल हरियाणा में बीजेपी को मिली सफलता के पीछे ओबीसी और दलित समुदाय का हाथ माना जा रहा है. हरियाणा में बीजेपी की नायब सिंह सैनी की सरकार ने 32 जून की कैबिनेट बैठक में ओबीसी की क्रीमीलेयर की सीमा छह लाख सालाना से बढ़ाकर आठ लाख रुपये सालाना कर दिया था.इस आय से कृषि और वेतन से होने वाली आयक बाहर रखा गया था.इसकी अधिसूचना 16 जुलाई को जारी की गई. हरियाणा में 10 साल से सरकार चला रही बीजेपी एंटी इन्कंबेंसी का सामना कर रही थी.सैनी सरकार के इस फैसले ने बीजेपी की जीत में बड़ी भूमिका निभाई.इस फैसले का परिणाम यह हुआ कि तमाम अनुमानों को धता बताते हुए बीजेपी ने हरियाणा में बंपर जीत दर्ज की.इसलिए महाराष्ट्र सरकार ने ओबीसी के क्रीमीलेयर की सीमा आठ लाख से बढ़ाकर 15 लाख रुपये करने की मांग की है. दरअसल महायुति महाराष्ट्र में ओबीसी और दलितों को हर हाल में अपने साथ बनाए रखना चाहती है.  

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महाराष्ट्र अनुसूचित जाति आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलेगा

इसके साथ ही महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में अनुसूचित जाति आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाले अध्यादेश के प्रारूप को भी मंजूरी दी है.इस अध्यादेश को विधानसभा के अगले सत्र में पेश किया जाएगा. इसके मुताबिक आयोग में कुल 27 पद होंगे.इसके अलावा महाराष्ट्र सरकार ने कुछ जातियों के आर्थिक विकास के लिए आयोग बनाने का भी फैसला किया है. इनमें वाणी समुदाय के लिए सोला कुलस्वामिनी आर्थिक विकास निगम, लोहार समुदाय के लिए ब्रह्मलीन आचार्य दिव्यानंद पुरीजी महाराज आर्थिक विकास निगम,शिम्पी समुदाय के लिए संत नामदेव महाराज आर्थिक विकास निगम और गवली समुदाय के लिए श्री कृष्ण आर्थिक विकास निगम के नाम शामिल है.लोहार और नाथपंथी समुदाय के लिए बनने वाले आयोग के लिए 50 करोड़ रुपये का बजट दिया गया है. 

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इन आयोगों को बनाने के फैसले को चुनाव से पहले छोटे-छोटे समुदायों को अपने साथ जोड़े रखने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.

क्रीमी लेयर हैं क्या

अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आरक्षण का लाभ हासिल करने के लिए गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र की जरूरत होती है. यह प्रमाणपत्र प्रमाणित करता है कि उक्त व्यक्ति की पारिवारिक आय निर्धारित सीमा से कम है. क्रीमी लेयर से मतलब उस वर्ग से है जो आर्थिक और सामाजिक रूप से संपन्न हो चुका है. इस श्रेणी में आने वाले लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है. अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण में क्रीमी लेयर की सीमा लागू है.

आरक्षण का लाभ वास्तव में वंचित वर्गों के लोगों को मिले, यह सुनिश्चित करने के लिए क्रीमी लेयर का प्रावधान लाया गया था. क्रीमी लेयर  की अवधारणा इंद्रा साहनी मामले (1992) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पेश की गई थी. इसे मंडल आयोग मामले के रूप में भी जाना जाता है.अदालत ने कहा था कि ओबीसी के उन्नत वर्गों को आरक्षण के लाभ का दावा नहीं करना चाहिए,जबकि इस वर्ग के वास्तव में जरूरतमंद लोगों को इसका लाभ मिलना चाहिए.

क्रीमी लेयर की शुरुआत  1993 में हुई.उस समय एक लाख रुपये सालाना की आय वाले लोगों को इसके दायरे में रखा गया. इसके बाद 2004 में इस सीमा को बढ़ाकर ढाई लाख रुपये कर दिया गया. वहीं 2008 में क्रीमी लेयर की सीमा को बढ़ाकर साढ़े चार लाख रुपये,2013 में छह लाख रुपये और 2017 में आठ लाख रुपये सालाना तक कर दिया गया.
 

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