महाराष्‍ट्र: कोरोना से 15 दिनों में परिवार के 4 सदस्‍यों की मौत, मुंबई के एक कब्रिस्‍तान में लगा 'जगह नहीं होने' का बोर्ड

हालात यह है कि मुंबई के वडाला मुस्लिम सुन्नी कब्रिस्‍तान पर 'जगह की कमी' का बोर्ड लग चुका है.

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प्रतीकात्‍मक फोटो
मुंंबई:

महाराष्‍ट्र में कोरोना के नए केसों की संख्‍या भले ही कम हो गई हो लेकिन राज्‍य में मई माह में 155% मौतें बढ़ी हैं. नांदेड़ के एक परिवार के चार सदस्यों की मौत 15 दिनों के अंदर हो गई, ऐसे कई परिवार कोरोना ने उजाड़ दिए हैं, इधर मुंबई में एक क़ब्रिस्तान ने बोर्ड लगाया है कि नए शवों के लिए उसके पास जगह शेष नहीं है. महाराष्ट्र के नांदेड़ में कोरोना की दूसरी लहर ने प्रतिभा से उनके डॉक्टर पति, सास, ससुर और जेठ, चार सदस्यों को छीन लिया. परिवार में मातम पसरा हुआ है. प्रतिभा के पति 44 साल के डॉक्टर अनिल पार्डीकर क्लिनिक चलाते थे.कोविड-19 के कारण निजी अस्पताल में उनकी मौत हो गई. 4 अप्रैल से 20 अप्रैल के बीच यानी क़रीब 15-16 दिनों में परिवार के चारों सदस्यों की कोरोना संक्रमण के कारण जान चली गई.

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प्रतिभा पार्डीकर कहती हैं, 'बुख़ार था, बदन दर्द था, पंद्रह दिन में सब ख़त्म हो गया, मेरे पति, उनके भाई, सास-ससुर, सब कोरोना के चलते चले गए. घर पर अब मेरी जेठानी, उनकी दो बेटियाँ और मैं और मेरे बच्चे बचे रह गए हैं. अब तो कुछ समझ नहीं आ रहा, अब जो मार्ग आगे भगवान दिखाएँगे,उस पर चलेंगे.' 16 मई को नांदेड़ से 43 मौतें रिपोर्ट हुईं थीं. महाराष्ट्र में बीते 16 दिनों में 1 मई से 16 मई के बीच 11,871 मौतें हुईं, वहीं 1 अप्रैल से 16 अप्रैल के बीच 4653 मौतें दर्ज हुई थीं. अप्रैल माह के शुरुआती 16 दिनों की तुलना में मई के शुरुआती 16 दिनों में 155% मौतें बढ़ी हैं.

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राज्य के कोल्हापुर, बीड, नांदेड़, औरंगाबाद, चंद्रपुर जैसे ज़िले भी 24 घंटों में 35 से ऊपर मौतें दर्ज कर रहे हैं. सरकारी बुलेटिन में सबसे ज़्यादा नागपुर ने 104 मौतें रिपोर्ट कीं. कोल्हापुर में 98, पुणे में 62 तो मुंबई में 60 कोविड मौतें एक दिन में रिकॉर्ड हुईं. हालात यह है कि मुंबई के वडाला मुस्लिम सुन्नी कब्रिस्‍तान पर 'जगह की कमी' का बोर्ड लग चुका है. बोर्ड पर लिखा है कि यहां, 1,132 क़ब्रों की जगह है जिनमें 128 बच्चों के लिए हैं और 165 कोविड से मृत लोगों के लिए और 839 बाक़ी शवों के लिए है. बोर्ड में छपे संदेश के मुताबिक़, बीते 18 महीनों से अब तक क़रीब 1000 शव यहां पहुंचे, जिनके लिए जगह बनाने में दिक़्क़त हो रही है. बोर्ड पर ये भी लिखा है कि शव को गलने में करीब 18 महीने का वक्त लगता है लेकिन नई जगह बनाने के लिए 10-12 महीनों में ही इन्हें निकाला जा रहा है. यहां के निवासी बशीर क़ाज़ी कहते हैं, 'शव को दफ़नाए रखने की मियाद एक साल छह महीना है. अब ये क़ब्रिस्तान फ़ुल हो चुका है यहां दफन करने की गुंजाइश नहीं है. शांतिनगर में एक कब्रिस्तान हमको अलॉट हुआ है लेकिन अभी तक हमारे पज़ेशन में आया नहीं है. यहां से बहुत आगे है नारियलवाड़ी क़ब्रिस्तान, वहां शव को ले जाना पड़ता है. वहां भी दिक़्क़तें हैं. यहां के लोगों के लिए यही क़ब्रिस्तान अच्छा है, या जो जगह मिली है वो ठीक है. लेकिन अगर जगह नहीं मिली तो अपनी मयीयतों को कहाँ दफ़नाएं. गौरतलब है कि मुंबई में पिछली पीक के दौरान, जून महीने में कोविड से एक दिन में 100 पार मौतें दर्ज हुई थीं, इस बार शहर में हालात वैसे नहीं लेकिन जो हालात हैं, वो क़ब्रिस्तान पर भी भारी पड़ रहे हैं.

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