मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के खरगौन (Khargaun) में लूट के मामले में गिरफ्तार आदिवासी युवक की मौत का मामला तूल पकड़ता जा रहा है. परिजनों का आरोप है मौत पुलिस प्रताड़ना से हुई. राज्य सरकार (MP Govt) ने तीन पुलिसकर्मियों सहित जेल के एक अधिकारी को निलंबित कर दिया है. वहीं कांग्रेस इस मुद्दे पर डीजीपी के पास पहुंची है. एनडीटीवी के हाथ कुछ तस्वीरें लगी हैं जो बताती हैं कि मृतक के शरीर पर जख्म के निशान तो थे. इन तस्वीरों को देखकर सवाल उठता है कि क्या 35 साल के बिसन के शरीर पर ये जख्म पुलिस की पिटाई से आए हैं, ये निशान कुछ तो कह रहे हैं, हालांकि डॉक्टरों का कहना ये पुराने जख्म हैं, ये मौत की वजह भी हो सकता है.
सिविल सर्जन डॉ दिव्यवेश वर्मा ने कहा, ''तीन डॉक्टरों के पैनल ने पूरी जांच की है, बाहर किसी चोट के निशान नहीं थे, दाहिने पुठ्ठे पर घाव था जिसमें पस था. वो काफी गहरा था. वो जिस भी इंफेक्शन से हुआ है वो ब्लड में भी गया, पूरे शरीर में फैल गया जिससे जहर बना, सेप्टीसीमिया हो गया जिससे हार्ट, लीवर में सूजन थी. जिससे शॉक की वजह से उसकी मौत हुई... जांच में ऐसा कोई मार या चोट का निशान नहीं दिखा मारपीट का. घाव सात दिन से भी ज्यादा पुराना था. हमने पोस्टमॉर्टम की फाइनल रिपोर्ट पुलिस को दे दी है. थाने में उन्होंने किसी बीमारी के बारे में नहीं बताया था, यहां चल फिर के आया था. यहां डॉक्टरों ने जांच की, घाव की ड्रेसिंग की, दवा देकर पुलिस के हवाले कर दिया.''
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दरअसल चित्तौड़गढ़-भुसावल राजमार्ग पर लूट करने के आरोप में बिसन समेत खैरकुंडी गांव के 12 आरोपियों को पुलिस ने पकड़ा था. 8 आरोपी जेल गये, 4 पुलिस रिमांड में थे, रिमांड के बाद सोमवार को बिसन को भी जेल भेजा गया जहां रात में उसकी तबीयत बिगड़ी. जेल से रात दो बजे जिला अस्पताल लाया गया. यहां इलाज के दौरान सुबह उसकी मौत हो गई.
परिजनों का कहना है ना तो बिसन लूट का आरोपी था ना ही बीमार, पुलिस की पिटाई से उसकी मौत हुई. बिसन की पत्नी रंतु बाई ने कहा, ''मेरा पति किसी की सोहबत में नहीं था, पुलिस ने जबरन मार-मारकर उसे जान से मार दिया. कोई चोरी नहीं की, किसी ने मेरी बात नहीं सुनी, मेरे चार बच्चे हैं उनको अब कौन पूछेगा.''
मौत की सूचना मिलते ही परिजन आक्रोशित हो गए. हंगामा इतना बढ़ा कि 100-150 की भीड़ ने थाने पर हमला कर दिया और 3-4 पुलिसकर्मी घायल हो गये. कांग्रेस ने अपनी ओर से मामले की जांच के लिये एक दल बनाया है. पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण यादव ने डीजीपी को ज्ञापन दिया और गृहमंत्री का इस्तीफा मांग लिया. उन्होंने आरोप लगाया, ''बिसन के साथ बर्बरता से मारपीट की गई जिससे हिरासत में मृत्यु हो गई. डीजीपी से मिले और बताया कि आदिवासियों की सुरक्षा हो, महिलाओं के साथ अपराध हो रहे हैं. पूरी तरह सरकार फेल है, गृहमंत्री जुबानी जमाखर्च करते हैं. यही हाल मुख्यमंत्री का भी है, गृहमंत्री से नहीं संभल रहा तो वो इस्तीफा दे दें.''
दूसरी ओर गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्र तर्क दे रहे हैं कि थानेदार, एडिश्नल एसपी, लूट के आरोपी, शिकायतकर्ता सब एक ही जाति के हैं, थाने के एसआई, कॉन्स्टेबल, जेल के प्रभारी को निलंबित किया है, सभी जनजाति वर्ग से थे, लूट के शिकायतकर्ता, आरोपी, एसडीओपी, एडिश्नल एसपी सब जनजाति वर्ग से हैं. ये एक वर्ग का मामला है. अगर कांग्रेस भ्रम फैलाती है तो ये मैं अच्छा नहीं मानता, घटना दुखद है कोई आरोपी बचेगा नहीं. हमने हर मामले में कार्रवाई की है.''
हालांकि अगर खुद केन्द्र सरकार के आंकड़े देखें तो मध्यप्रदेश सरकार पर गंभीर सवाल हैं. एनसीआरबी ने 2019 में जो आंकड़े दिये उसके मुताबिक राज्य में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार के 1922 मामले दर्ज हुए, जो देश में 23.3 फीसद था. इसके बाद राजस्थान में 1797 मामले दर्ज हुए, जो देश में आदिवासियों के प्रति अपराध का 21.8 प्रतिशत था.
सवाल सियासी भी है क्योंकि 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों के लिये आरक्षित हैं, जिसमें पिछले चुनावों में कांग्रेस ने 29 सीटें जीती थीं, बीजेपी के खाते में 17 सीटें ही आई थी.