- एमपी के दमोह में स्वतंत्रता दिवस समारोह में मीसाबंदी संतोष भारती ने मंत्री से सम्मान लेने से इनकार कर दिया.
- संतोष भारती का दावा है कि रिश्वत न देने पर 40 साल से उनके घर की रजिस्ट्री नहीं कराई जा रही है.
- भारती ने कहा कि वह 3 बार मीसा में जेल जा चुके हैं. पिछले कई दशकों से भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं.
मध्य प्रदेश के दमोह जिले में स्वतंत्रता दिवस के मुख्य समारोह में उच्च शिक्षा मंत्री और जिले के प्रभारी मंत्री इंदर सिंह परमार के हाथों सम्मान लेने से एक पूर्व मीसा बंदी ने साफ इंकार कर दिया. मंत्री और कलेक्टर सुधीर कोचर भरे मैदान में मीसाबंदी संतोष भारती को मनाते रहे, लेकिन वो नहीं माने. सख्त लहजे में नाराजगी जताई और उंगली दिखाकर चेतावनी देते हुए मंत्री के हाथ में एक आवेदन दिया. इसके बाद समारोह छोड़कर चले गए.
'रिश्वत नहीं दी तो रिकवरी निकाल दी'
एनडीटीवी से बातचीत में संतोष भारती ने कहा, "मैं सम्मान का भूखा नहीं हूं. आज तक का रिकॉर्ड रहा है. जिन मूल्यों के लिए हमने संघर्ष किया पिछले 58 वर्षों से, चाहे कांग्रेस का शासन हो या बीजेपी का, न्याय के सत्याग्रही बने रहे हैं, मान-सम्मान के लिए नहीं." भारती ने कहा कि मैं मंत्रीजी से कहने गया था कि 40 साल पहले 1984 में हमने एक निम्न श्रेणी आय वर्ग (लोअर इनकम ग्रुप) का घर खरीदा था. मैंने मंडल वालों को रिश्वत नहीं दी तो उन्होंने आगे की योजना में मुझे मनमाने तरीके से किरायेदार दिखा दिया. एक बार उन्होंने 2 लाख रुपये की रिकवरी निकाल दी, पुलिस भेज दी.
'कोर्ट-प्रशासन से फैसला, फिर भी रजिस्ट्री नहीं'
उन्होंने आगे कहा कि उसके बाद मैं कोर्ट गया. शासन ने भी हमारे पक्ष में फैसला दे दिया. हाईकोर्ट में भी मैं जीत गया, तब तो रजिस्ट्री करनी चाहिए न. मैं उम्रदराज हो गया हूं. अब लड़ नहीं सकता. मैं बच्चों के लिये क्या छोड़कर जाऊंगा. मैंने संपत्ति अधिकारी से भी हाथ जोड़ा, लेकिन आज तक रजिस्ट्री नहीं हुई.
'सम्मान लेने नहीं, ज्ञापन देने गया था'
संतोष भारती ने कहा कि मैं स्वतंत्रता दिवस समारोह में सम्मान लेने नहीं गया था. मैंने कभी किसी मंच पर जाकर सम्मान नहीं लिया. आज मेरे जाने का मकसद ज्ञापन देना और न्याय पाना था. भारती ने दावा किया कि वह देश के इकलौता ऐसे व्यक्ति हैं, जो तीन बार मीसाबंदी में जेल गए.
मीसाबंदी के मामले में मंत्री ने चुप्पी साधी
मंत्री इंदर सिंह परमार से जब पत्रकारों ने मीसाबंदी के सम्मान लेने से इंकार करने के बारे में पूछा तो उनका जवाब था, "पता नहीं मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है." मंत्री की चुप्पी पर भारती ने कहा कि मैंने उनसे बात की थी और उन्हें ज्ञापन दिया था. यदि वह कह रहे हैं कि मुझे कोई ज्ञापन नहीं दिया तो मैं क्या कह सकता हूं. मैं तो ये सुनकर दंग हूं कि 25 लोगों के पास इसका प्रमाण है. मैंने अपना कर्तव्य एक नागरिक होने के नाते पूरा किया है.
'3 बार मीसा में जेल जाने वाला इकलौता शख्स'
मीसाबंदी संतोष भारती ने जो आवेदन मंत्री के हाथों में दिया, उसमें लिखा है- आज 15 अगस्त को मीसाबंदियों को यह जो मान सम्मान देने का प्रसंग चल रहा है, उसमें मैं अपने आपको पृथक कर रहा हूं. कारण? मैं इस भारत देश का वह इकलौता व्यक्ति हूं, जो एक नहीं बल्कि तीन बार का मीसाबंदी है. सबसे पहले 1973 में पुलिस विद्रोह भड़काकर राज्य सत्ता को पलटने के आरोप में, पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव के साथ जेल गया था.
उन्होंने आगे बताया कि दूसरी बार 1974 में, ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन की ओर से रेल हड़ताल का आह्वान करने पर जेल हुई थी. तीसरी बार 1975 में आपातकाल के दौरान जॉर्ज फर्नांडिस के साथ करीब 6 महीने तक देश भर में जनजागरण अभियान चलाने की वजह से गिरफ्तारी करके गुना जेल में बंद रखा गया था.
40 साल से न्याय पाने की उम्मीद
भारती ने अपने आवेदन में आगे लिखा कि मुझे यह मान सम्मान नहीं, बल्कि सच्चे न्याय की दरकार है. मैं पिछले 40 सालों से न्याय के लिए लगातार दर-दर की ठोकरें खा रहा हूं, यह सम्मान मेरे किस काम का है? मुझे दंड केवल इसलिए मिल रहा है कि तत्कालीन अधिकारियों को मात्र 5 हजार की रिश्वत नहीं दी थी.
उन्होंने आगे लिखा कि इससे भी बड़ी विडंबना यह है कि शासन और फिर हाईकोर्ट से भी मामले में जीत जाने के बाद भी हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी निम्न श्रेणी आय वर्ग के क्वार्टर की रजिस्ट्री नहीं कर रहे हैं.
अपना दर्द बताते हुए उन्होंने आगे लिखा कि इतना ही नहीं, हजारों पात्र-अपात्र मीसाबंदियों को “ताम्रपत्र” जारी हो चुके हैं, लेकिन इस पत्र लेखक को नहीं मिला, क्योंकि मैंने जिला एवं पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय तक मामले चला रखे हैं.