18वीं लोकसभा के स्पीकर (Lok Sabha Speaker) को लेकर सत्तापक्ष NDA और विपक्ष INDIA के बीच टकराव बढ़ गया है. स्पीकर के चयन को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच आम सहमति नहीं बन पाई. लिहाजा अब स्पीकर का चयन चुनाव के जरिए होना है. 48 साल के बाद ऐसा होने जा रहा है. चुनाव बुधवार को है. NDA की तरफ से ओम बिरला दूसरी बार स्पीकर पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं. INDIA की ओर से कांग्रेस ने के. सुरेश को उम्मीदवार बनाया है. हालांकि, TMC का आरोप है कि कांग्रेस ने फैसला लेते वक्त उनसे सलाह-मशवरा नहीं किया.
ओम बिरला राजस्थान के कोटा से सांसद चुने गए हैं. जबकि के सुरेश केरल के मवेलिकारा से चुनाव जीते हैं. सुरेश 8 बार के सांसद रह चुके हैं. दोनों ने दोपहर 12 बजे से पहले नामांकन दाखिल किया. वोटिंग 26 जून को सुबह 11 बजे होगी.
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तीसरी बार होगा लोकसभा स्पीकर का चुनाव
देश के इतिहास में ऐसा तीसरी बार होने जा रहा है, जब स्पीकर के पद को लेकर आम सहमति नहीं बन पाई और चुनाव कराने की नौबत आ पड़ी. 15 मई 1952 को पहली लोकसभा के अध्यक्ष का चुनाव हुआ था. इस चुनाव में सत्ता पक्ष के जीवी मावलंकर उमीदवार थे. उनका मुकाबला शंकर शांतराम मोरे से हुआ था. मावलंकर के पक्ष में 394 वोट पड़े, जबकि 55 वोट उनके खिलाफ डाले गए थे. इस तरह मावलंकर आजादी से पहले देश के पहले लोकसभा स्पीकर बने थे.
दूसरी बार लोकसभा स्पीकर का चुनाव 1976 में हुआ. 1975 में इमरजेंसी के ऐलान के बाद 5वीं लोकसभा का कार्यकाल एक साल के लिए बढ़ा दिया गया था. इसके बाद 1976 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कांग्रेस सांसद बी आर भगत को स्पीकर के रूप में चुनने का प्रस्ताव रखा. संसदीय कार्य मंत्री रघु रमैया द्वारा इसका समर्थन किया गया. वहीं भावनगर के सांसद पी एम मेहता ने जगन्नाथ राव जोशी के नाम का प्रस्ताव रखा. हालांकि, भगत को बाद में स्पीकर चुन लिया गया. उनके पक्ष में 344 वोट आए और 58 वोट उनके खिलाफ गए.
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आम सहमति से स्पीकर चुनाव की ये परंपरा क्यों टूटी?
अमूमन स्पीकर के पद को निष्पक्ष माना जाता है. इस लिहाज से इस पर आम राय बनती आई है. इस बार भी सरकार ने आम राय बनाने की कोशिश की, लेकिन डिप्टी स्पीकर पर बात अटक गई. पीएम मोदी के साथ गृहमंत्री अमित शाह और BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा की बैठक में स्पीकर पद पर चर्चा हुई. इस बैठक में अन्य पदों की ही तरह स्पीकर पद पर भी निरंतरता बनाए रखने का फैसला हुआ. विपक्ष और सहयोगी दलों से चर्चा कर आम राय बनाने की ज़िम्मेदारी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को दी गई.
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राहुल गांधी ने दिला दी डिप्टी स्पीकर वाली परंपरा की याद
मंगलवार सुबह तक लग रहा था कि राजनाथ सिंह की कोशिशें रंग ला रही हैं. विपक्ष आम सहमति के लिए तैयार हो जाएगा. लेकिन तभी राहुल गांधी ने संसद भवन में बयान देकर डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को देने की परंपरा की याद दिला दी. इसके बाद बातचीत टूट गई. इसके साथ ही यह तय हो गया कि स्पीकर के लिए चुनाव होगा.
कांग्रेस ने चला दलित कार्ड
कांग्रेस ने दलित कार्ड चलते हुए अपने 8 बार के सांसद के सुरेश को उम्मीदवार बनाया है. हालांकि, सरकार को यह देख कर राहत मिली है कि स्पीकर के लिए चुनाव लड़ने के कांग्रेस के फैसले से TMC और शरद चंद्र पवार गुट जैसे उसके सहयोगी दल सहमत नहीं दिख रहे. बुधवार को चुनाव के वक्त इन दलों का क्या रुख रहेगा, इस पर भी सबकी नजरें होंगी.
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विपक्ष के पास नंबर है ही नहीं तो चुनाव की जिद क्यों?
दरअसल, विपक्ष डिप्टी स्पीकर पद चाह रहा है. फिलहाल सत्ता पक्ष का कहना है कि वो इस मामले को बाद में देखेंगे. पहले विपक्ष स्पीकर पद पर समर्थन दें. लेकिन विपक्षी दल 'एक हाथ ले और दूसरी हाथ ले' की नीति पर काम करना चाहता है. ताकि डिप्टी स्पीकर पद लिया जा सके. लिहाजा चुनाव की जिद की जा रही है. दोनों ही खेमों ने अपने-अपने सांसदों को बुधवार सुबह साढ़े 10 बजे संसद पहुंचने के निर्देश दिए हैं.
अभी लोकसभा में क्या है नंबर
लोकसभा में अभी BJP के 240 सांसद हैं. NDA के कुल 293 सांसद हैं. इनमें TDP के 16 और JDU के 12 सांसद हैं. INDIA की बात करें, तो 235 सांसद हैं. इनमें कांग्रेस के 98 सांसद हैं. अन्य के खाते में 14 सांसद हैं. जबकि एक सीट खाली है.
स्पीकर के चुनाव की क्या प्रक्रिया होगी?
-प्रोटेम स्पीकर चुनाव की प्रक्रिया संपन्न कराएंगे. राष्ट्रपति ने भर्तृहरि महताब को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया है.
-बुधवार को स्पीकर के चुनाव से पहले अगर किसी सांसद का शपथ छूट गया, तो उन्हें पहले शपथ दिलाई जाएगी.
-इसके बाद प्रोटेम स्पीकर ओम बिरला के प्रस्तावक का नाम बुलाएंगे. फिर प्रस्ताव रखने को कहा जाएगा. एक अनुमोदक भी होगा.
-फिर के सुरेश के प्रस्तावक और अनुमोदक का नंबर आएगा.
-इसके बाद मत विभाजन होगा. जिस प्रस्ताव के पक्ष में साधारण बहुमत होगा, उसे विजयी घोषित किया जाएगा.
-इसी तरह जिसे सदन में मौजूदा सांसदों में आधे से अधिक का वोट मिलेगा, वह स्पीकर चुनाव में विजयी होगा.
-इसके बाद सदन के नेता यानी पीएम मोदी और विपक्ष के नेता निर्वाचित स्पीकर को आसन तक लेकर जाएंगे.
-इसी समय प्रोटेम स्पीकर आसन नवनिर्वाचित स्पीकर को सौंप देंगे.
-इसके बाद सभी दलों के प्रमुख नेता नवनिर्वाचित स्पीकर को भाषण के माध्यम से बधाई और शुभकामनाएं देंगे.
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मत विभाजन की मांग हुई, तो कागज की पर्चियों से होगी वोटिंग
विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर विपक्ष इस चुनाव के दौरान मत विभाजन पर जोर देता है, तो वोटिंग कागज की पर्चियों के जरिए की जाएगी, क्योंकि नए सदन में सदस्यों को अब तक सीटें आवंटित नहीं गई हैं. ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले सिस्टम का उपयोग नहीं किया जा सकता है.
स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का इतिहास
-पहली लोकसभा में कांग्रेस के जी वी मावलंकर स्पीकर बनाए गए थे. डिप्टी स्पीकर का पद एम ए अयंगर (कांग्रेस) और हुकुम सिंह (अकाली दल) को मिला था.
-दूसरी लोकसभा में कांग्रेस के एम ए अयंगर स्पीकर बनाए गए. हुकुम सिंह डिप्टी स्पीकर बने. वो बाद में अकाली दल से कांग्रेस में शामिल हो गए थे.
-तीसरी लोकसभा में स्पीकर का पद हुकुम सिंह (कांग्रेस) को मिला. डिप्टी स्पीकर के आसन पर कांग्रेस के एस वी कृष्णमूर्ति राव बैठे.
-चौथी लोकसभा में कांग्रेस सांसद नीलम संजीव रेड्डी स्पीकर बनाए गए. डिप्टी स्पीकर के पद पर रघुनाथ केशव खादिलकर (कांग्रेस), जी जी स्वैल (APHLC) रहे.
-पांचवी लोकसभा में स्पीकर का पद गुरुदयाल सिंह ढिल्लो और बलिराम भगत (कांग्रेस-R) को दिया गया. जी जी स्वैल (APHLC) डिप्टी स्पीकर बनाए गए थे.
-छठी लोकसभा में नीलम संजीव रेड्डी और के एस हेगड़े (जनता पार्टी) स्पीकर बनाए गए. जी मुरहरी (कांग्रेस) डिप्टी स्पीकर बने.
-सातवीं लोकसभा में बलराम जाखड़ (कांग्रेस) को स्पीकर बनाया गया और जी लक्ष्मणन (DMK)को डिप्टी स्पीकर की कुर्सी मिली.
-आठवीं लोकसभा में कांग्रेस के बलराम जाखड़ फिर से स्पीकर बनाए गए. इस बार थंबी दुरै (AIADMK) को डिप्टी स्पीकर की कुर्सी मिली.
-नौवीं लोकसभा में स्पीकर के आसन पर रबी रे (जनता दल) आसीन हुए. शिवराज पाटिल (कांग्रेस) डिप्टी स्पीकर बने.
-10वीं लोकसभा में इस बार शिवराज पाटिल (कांग्रेस) स्पीकर बनाया गया. डिप्टी स्पीकर के पद पर एस मल्लिकार्जुनैया (BJP) आसीन हुए.
-11वीं लोकसभा की बात करें, तो पीएम संगमा (कांग्रेस) को स्पीकर बनाया गया. सूरज भान (BJP) डिप्टी बनाए गए.
-12वीं लोकसभा में जीएमसी बालयोगी (TDP) स्पीकर बनाए गए. पी एम सईद (कांग्रेस) डिप्टी स्पीकर बने.
स्पीकर-
-13वीं लोकसभा में शिवसेना के मनोहर जोशी स्पीकर बने थे. पी एम सईद (कांग्रेस) को डिप्टी स्पीकर का पद मिला था.
-14वीं लोकसभा में सोमनाथ चटर्जी (CPM)स्पीकर बनाए गए थे. चरण जीत सिंह अटवाल (अकाली दल) को डिप्टी बनाया गया था.
-15वीं लोकसभा में कांग्रेस की मीरा कुमार ने स्पीकर की कुर्सी संभाली थी. करिया मुंडा (BJP) डिप्टी स्पीकर बने थे.
-16वीं लोकसभा में सुमित्रा महाजन (BJP) ने स्पीकर की जिम्मेदारी संभाली. थंबी दुरै (AIADMK) को डिप्टी स्पीकर बनाया गया.
-17वीं लोकसभा में BJP के ओम बिरला स्पीकर थे. जबकि डिप्टी स्पीकर का पद खाली था.
जीते तो दोबारा स्पीकर बनने वाले BJP के पहले सांसद होंगे बिरला
NDA की ओर से ओम बिरला दोबारा स्पीकर पद के उम्मीदवार हैं. कोटा से सांसद ओम बिरला 2019 से 2024 तक स्पीकर रह चुके हैं. अगर इस बार भी वो जीतते हैं, तो दोबारा स्पीकर बनने वाले पहले BJP सांसद होंगे. अगर वे अपना कार्यकाल पूरा कर लेते हैं, तो कांग्रेस के बलराम जाखड़ के रिकॉर्ड की बराबरी कर लेंगे. बलराम जाखड़ 1980 से 1985 और 1985 से 1989 तक लगातार दो बार लोकसभा अध्यक्ष रह चुके हैं. उन्होंने अपने दोनों कार्यकाल पूरे किए थे.
क्यों अहम होता है लोकसभा स्पीकर का पद?
लोकसभा स्पीकर सदन के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए जिम्मेदार होता है. स्पीकर संसदीय बैठकों का एजेंडा भी तय करते हैं. सदन में विवाद होने पर स्पीकर नियमानुसार कार्रवाई भी करते हैं. लोकसभा स्पीकर किसी मुद्दे पर अपनी राय घोषित नहीं करते. न ही वो किसी प्रस्ताव पर मतदान में भाग लेते हैं, लेकिन अगर प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में बराबर वोट हों, तो वो निर्णायक वोट डाल सकते हैं. लोकसभा स्पीकर विभिन्न समितियों का गठन करते हैं. इन समितियों का कार्य उसके निर्देशानुसार ही किया जाता है.
खास बात ये है कि यदि कोई सदस्य सदन में दुर्व्यवहार करता है, तो लोकसभा अध्यक्ष के पास ये शक्ति होती है कि वो उस सदस्य को निलंबित कर सकते हैं.
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स्पीकर बनने के लिए क्या होनी चाहिए योग्यता?
स्पीकर पद के लिए जरूरी है कि वह व्यक्ति लोकसभा का सदस्य हो. इसके अलावा अलग से और कोई मापदंड नहीं हैं. हालांकि, देश के संविधान और कानूनों की समझ अध्यक्ष पद पर बैठने वाले व्यक्ति के लिए एक अहम गुण माना जाता है. स्पीकर चुने जाने के लिए सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत की जरूरत होती है. इसलिए, आमतौर पर सत्तारूढ़ दल का सदस्य ही स्पीकर बनता है.
कितना होता है स्पीकर का कार्यकाल?
स्पीकर का कार्यकाल लगभग 5 साल का होता है. लोकसभा के भंग होने के बाद भी वह अपने पद पर बना रहता है. नियमों के मुताबिक, लोकसभा के भंग होने के बाद से अगली लोकसभा की पहली बैठक तक स्पीकर अपना पद खाली नहीं करेगा.
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