Lok Sabha Elections 2024: हाजीपुर में'चाचा बनाम भतीजे'की जंग, दूसरे चाचा की भूमिका पर INDIA गठबंधन की निगाह?

NDTV INDIA लेकर आया है KYC यानी Know Your Constituency सीरीज. इसी सीरीज में आज बात हाजीपुर लोकसभा सीट की. यहां के मौजूदा सांसद हैं पशुपति पारस . लेकिन ऐन चुनाव से पहले उनके सामने मुश्किल खड़ी हो गई है क्योंकि इस सीट से उन्हीं के भतीजे चिराग पासवान खड़े हो रहे हैं. दोनों चाचा-भतीजे में रामविलास पासवान की विरासत को कब्जाने की जंग छिड़ी हुई है ऐसे में सवाल ये है कि चिराग के दूसरे चाचा यानी नीतीश कुमार की भूमिका हाजीपुर में कितनी अहम होगी?

विज्ञापन
Read Time: 6 mins

Lok Sabha Elections 2024:बिहार की राजधानी पटना और हाजीपुर में बस गांधी सेतु पुल का फासला है.जब ये पुल बना था तब ये भारत के सबसे लंबे और बड़े पुलों में शामिल था.दरअसल कुछ ऐसा ही इस लोकसभा सीट (Hajipur Lok Sabha Seat)का सियासी इतिहास भी है. यहां से 8 बार जीत दर्ज कर चुके दिवंगत नेता रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) ने यहां इतनी बड़ी-बड़ी जीत हासिल की है जो सालों तक रिकॉर्ड बना रहा है. अपने पहले चुनाव में रामविलास ने यहां से साढ़े चार लाख वोटों से जीत दर्ज की तो उनके तीसरे चुनाव में जीत का फासला बढ़कर 5 लाख 4 हजार हो गया जो कि वर्ल्ड रिकॉर्ड बन गया था. तब हाजीपुर में नारा लगता था- धरती से गूंजे आसमान, हाजीपुर में रामविलास पासवान. वे जब तक सियासत में रहे तब तक वे केन्द्र में करीब-करीब हर सरकार में मंत्री रहे और हर बार वे हाजीपुर से ही सांसद रहे. लोकसभा चुनाव में मतदान से पहले NDTV की विशेष सीरीज Know Your Constituency में आज बात इसी हाजीपुर लोकसभा सीट (Hajipur Lok Sabha seat) की...जहां इस बार मुकाबला चाचा बनाम भतीजा दिख सकता है. हालांकि इस जंग में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का साथ किसे मिलता है ये देखने वाली बात होगी.

हाजीपुर सीट के सियासी इतिहास पर तफ्सील से बात करेंगे लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि आखिर खुद हाजीपुर का इतिहास क्या है...क्योंकि अतीत के आइने में ही वर्तमान और फिर भविष्य दिखाई देगा.हाजीपुर जिला सूबे की राजधानी पटना से सटा हुआ है और गंगा और गंडक नदियों के किनारे पर स्थित है.

ऐसा कहा जाता है कि जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म यहीं हुआ. भगवान बुद्ध का भी इस धरती पर आना हुआ. सम्राट अशोक ने यहीं के वैशाली में सिंह स्तम्भ की स्थापना की थी, जो कि अब टूरिस्ट प्लेस बन चुका है.

इसके अलावा हाजीपुर से 3 किलोमीटर दूरी पर ही मौजूद है सोनपुर शहर जहां भारत का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है. ऐसा माना जाता है कि बंगाल के गवर्नर‍ हाजी इलियास शाह के 13 वर्षों के शासनकाल में यह इलाका कस्बे का रुप लेने लगा. इन्हीं हाजी इलियास के नाम पर इस शहर का नाम हाजीपुर पड़ा. वैसे हाजीपुर राज्य की राजधानी पटना के करीब होने के कारण हाई प्रोफाइल शहर माना जाता है. पहले यह मुजफ्फरपुर का हिस्सा था. 1972 में वैशाली के स्वतंत्र जिला बनने के बाद हाजीपुर इसका मुख्यालय बनाया गया था.

Advertisement

इसके सियासी इतिहास पर बात करने से पहले इसकी डेमोग्राफी भी जान लेते हैं. हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की कुल 6 सीटें हैं. जिसमें हाजीपुर, लालगंज, महनार, महुआ, राजापाकर और राघोपुर शामिल हैं. पातेपुर विधानसभा क्षेत्र भी पहले इसी लोकसभा क्षेत्र में था, लेकिन यह 2014 के चुनाव में कटकर उजियारपुर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा बन गया. इसके बदले में वैशाली लोकसभा क्षेत्र से लालगंज को काटकर हाजीपुर से जोड़ा गया.यहां के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां सबसे ज्यादा 2 लाख 75 हजार वोटर यादव जाती हैं जबकि 2 लाख 50 हजार वोटर पासवान और राजपूत जाति के हैं. इसके अलावा एक लाख से ज्यादा आबादी भूमिहार, कुशवाहा, ब्राह्मण और कुर्मी मतदाताओं की है. यहां की आबादी का कुल 9 फीसदी मुस्लिम हैं. कुल मतदाताओं की संख्या करीब 19 लाख है. 

Advertisement

2024 के लोकसभा चुनाव में क्या होगा, यह तो 4 जून को ही पता चलेगा, लेकिन यह साफ है कि हाजीपुर सीट एक बार फिर से बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है. 1977 के पहले यह सीट कांग्रेस का गढ़ थी. यहां 1957 में पहला चुनाव हुआ तब कांग्रेस के राजेश्वर पटेल ने जीत दर्ज की थी. कांग्रेस की जीत का सिलसिला 1971 तक चला. लेकिन 1977 में रामविलास पासवान ने यहां से पहली बार चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की.उसके बाद से 1984 को छोड़कर अब तक यहां की जनता कांग्रेस से रूठी हुई है.  

Advertisement
यहां 1991 में जनता दल के रामसुंदर दास जीते. हालांकि बाद में ये सीट रामविलास पासवान की परंपरागत सीट बन गई. वे यहां से लगातार चार बार यानी 1996, 1998, 1999 और 2004 यहां से सांसद चुने गए.

हालांकि 2009 के चुनाव में एक बार फिर उन्हें जनता दल यूनाइडेट के राम सुंदर दास से हार का स्वाद चखना पड़ा. अपनी हार का बदला उन्होंने 2014 में लिया औऱ फिर हाजीपुर से ही सांसद बनें. वे यहां से कुल 8 बार सांसद बने. 2019 के चुनाव में उन्होंने अपना भाई पशुपति पारस को मैदान में उतारा और वे भी यहां से जीत कर संसद पहुंचे. 

Advertisement

लेकिन 2024 के चुनाव में बड़ा ट्विस्ट है. रामविलास पासवान की पुश्तैनी सीट पर कब्जे की जंग उनके ही परिवार में छिड़ी हुई है. NDA में सीट बंटवारे के तहत ये सीट राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान के हिस्से में आई है तो दूसरी तरफ उनके ही चाचा पशुपति पारस यहीं से चुनाव लड़ने के लिए अड़े हुए हैं और ऐसी खबरें हैं कि वो महागठबंधन में ठौर तलाश रहे हैं. इस सियासी जंग में अहम ये है कि चाचा-भतीजे की इस लड़ाई में भतीजे चिराग को अपने दूसरे चाचा नीतीश कुमार का साथ चाहिए होगा. क्योकि नीतीश कुमार पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की ओर से लगे चोट को शायद ही अब तक भूले होंगे. हालांकि अभी खुद नीतीश भी NDA में हैं लेकिन देखना ये होगा कि वे निजी तौर पर चिराग का कितना साथ देते हैं. इन्हीं वजहों से चिराग के लिए राह उतनी आसान नहीं है जितनी की वो मान रहे होंगे.

ये भी पढ़ें: Prayagraj Lok Sabha seat: 'प्रधानमंत्रियों के शहर' में बीजेपी को हैट्रिक लगाने से रोक सकेगा INDIA गठबंधन?

Featured Video Of The Day
UP By Elections: Karhal में यादव बनाव यादव की जंग, BJP या Samajwadi Party में से जीत किसकी ? UP News