In-depth : ऐसे तो नहीं हरा पाएंगे मोदी को! कांग्रेस की रणनीति पर उठ रहे सवाल

बेशक भारत जोड़ो यात्रा, नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान और न्याय यात्रा के जरिए राहुल गांधी ने काफी कोशिशें कीं. लेकिन क्या उनके ये काम कांग्रेस को केंद्र में दोबारा पहुंचाने के लिए काफी हैं? शायद नहीं...

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राहुल गांधी ने 14 जनवरी से 18 मार्च तक भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाली थी.
नई दिल्ली/कन्नौज:

"हमारी सरकार करोड़ों लोगों को लखपति बनाने का काम करेगी. हर महिला को महीने में 8 हजार रुपये उसके खाते में भेजेंगे. खटाखट, खटाखट, खटाखट पैसा हर महीने महिलाओं के खाते में जाएगा. ये पैसा तब तक मिलता रहेगा, जब तक ये परिवार गरीबी रेखा से ऊपर नहीं उठ जाएंगे. हमें हर महीने पैसे भेजने हैं तो भेजेंगे. हम लखपति बनाएंगे."

ये कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का बयान है. शुक्रवार (10 मई) को यूपी के कन्नौज में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और राहुल गांधी ने मिलकर रैली की. इसी रैली में राहुल गांधी ने ये बातें कही है. इस दौरान उन्होंने एक लिखित गारंटी भी दे दी. राहुल गांधी ने कहा, "हमने जो काम करना था वो कर दिया है. आप गारंटी लिख के ले लो... नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे." भाषण खत्म होने के बाद राहुल गांधी और अखिलेश यादव गर्मजोशी से मिले. इससे लोगों को ये मैसेज देने की कोशिश की गई कि साल 2017 के बाद की खटास अब इतिहास की बात हो गई है. यूपी के लड़के अब साथ-साथ हैं. कन्नौज से अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं.

राहुल गांधी से पहले INDIA अलायंस के कई नेता पीएम मोदी को लेकर ऐसे बयान दे चुके हैं. सबके बीच सवाल उठता है कि क्या मौजूदा समय में राहुल गांधी और INDIA गठबंधन के सहयोगी वाकई पीएम मोदी को चुनाव में हराने की ताकत रखते हैं? या INDIA अलायंस और कांग्रेस के अंदर सेल्फ गोल करने वालों पर कोई कंट्रोल नहीं है, जिसका खामियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ता है.

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राहुल गांधी ने गिनाए ये काम
कन्नौज की रैली में राहुल गांधी ने यूपीए सरकार की उपलब्धियां गिनाईं. भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा का जिक्र भी किया. राहुल कहते हैं, "पिछले दो साल से हम काम कर रहे हैं...भारत जोड़ो यात्रा, नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान, न्याय यात्रा और INDIA गठबंधन की मीटिंग. हमने जो काम करना था, कर दिया है." 

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क्या कांग्रेस के लिए काफी हैं राहुल गांधी के ये काम?
बेशक लोकतंत्र में जीत के लिए आपको जनमत का निर्धारण करना होता है. इसके लिए जनता के बीच जाना होता है. अपने विचार रखने होते हैं, विजन रखना होता है. बेशक भारत जोड़ो यात्रा, नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान और न्याय यात्रा के जरिए राहुल गांधी ने काफी कोशिशें कीं. लेकिन क्या उनके ये काम कांग्रेस को केंद्र में दोबारा पहुंचाने के लिए काफी हैं? शायद नहीं... 

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जनता से जुड़ने के लिए जनता के बीच जाना पड़ता है. लोकसभा चुनाव में हुई रैलियों के आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं. लोकसभा चुनाव के ऐलान के बाद से 8 मई तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 103 रैलियां कर चुके हैं. इसके मुकाबले राहुल गांधी सिर्फ 39 रैलियों में शामिल हुए.

कैसे लोगों के दिल तक पहुंचने के रास्ते खोज लेते हैं पीएम मोदी
रैलियों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी मन की बात करते हैं और लोगों के दिल तक पहुंचने के रास्ते ढूंढ लेते हैं. मिसाल के तौर पर 23 अप्रैल को जांजगीर चांपा की रैली में पीएम मोदी ने ऐसा ही कुछ किया था. एक बच्ची भीड़ में पीएम मोदी का स्केच लेकर खड़ी थी. स्टेज से पीएम ने देखा और बच्ची को प्यार से टोका. उन्होंने कहा था, "आप बैठ जाओ. थक जाओगी. स्केच के पीछे अपना नाम और पता लिखकर दे दो. मैं तुम्हे चिट्ठी लिखूंगा." पीएम मोदी ने ये बात कही तो उस बच्ची से थी, लेकिन वो बात वहां सबके दिल तक पहुंची.

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चुनावी रैली और रोड शो के अलावा भी प्रधानमंत्री को जब-जहां मौका मिला, उन्होंने अपने ही स्टाइल में जनता को मुग्ध कर दिया. गुजरात के अहमदाबाद में 7 मई को वोटिंग के दिन पीएम मोदी एक बच्चे को गोद में लेकर उसे दुलार करते देखे गए. दूसरी ओर एक जिम्मेदार मुखिया की तरह उन्होंने लोगों को मतदान के बीच भीषण गर्मी से बचने के टिप्स भी दिए.

राहुल गांधी की रैलियों में क्या है खामियां?
दूसरी तरफ, राहुल गांधी के बारे में कहा जा रहा है कि वो जनता के बीच गारंटी तो दे रहे हैं, लेकिन इसके लिए जितनी कोशिशें करनी चाहिए वो नहीं कर पा रहे. सवाल तो ये भी उठ रहे हैं कि राहुल गांधी ऐसी जगहों पर चुनावी सभा कर ही क्यों रहे हैं, जहां जीत का कोई चांस ही नहीं है?

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कांग्रेस की रणनीति पर भी उठ रहे सवाल
इधर, यूपी की दो हाईप्रोफाइल सीटों रायबरेली और अमेठी में जिस तरह से आखिरी मौके पर कांग्रेस ने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया, उससे पार्टी की रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं. और तो और... INDIA गठबंधन की नींव रखने के लिए जिन दलों ने कांग्रेस से हाथ मिलाया था, चुनाव से पहले वही साथ छोड़ गए. इससे गठबंधन का कमजोर और कंफ्यूज चेहरा सामने आया.

ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस और उनके साथी न सिर्फ संख्या बल में कम हो गए, बल्कि योजना बनाने में भी पीछे रह गए हैं. खास तौर पर तब जब प्रधानमंत्री मोदी अभी से नतीजों के बाद का रोडमैप बता रहे हैं. बीजेपी के घोषणापत्र (संकल्प पत्र) पर 4 जून के नतीजे के बाद तुरंत तेजी से काम शुरू हो जाएगा. सरकार पहले ही 100 दिन के प्लान पर काम करना शुरू कर चुकी है. 

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