मध्य प्रदेश में दलबदलू नेताओं को 'न माया मिली न राम', कांग्रेस छोड़ने से करियर पर लगा ब्रेक; 10% ही बचा पाए मंत्री पद

मध्य प्रदेश में दो महीने में कांग्रेस के 3 मौजूदा विधायक बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. पिछले 10 सालों में ये आंकड़ा 35 का है, लेकिन दल बदलने वाले ज्यादातर नेताओं की स्थिति 'न माया मिली न राम' वाली है. 40 फीसदी से कम नेता ही प्रासंगिक हैं. उसमें भी बमुश्किल 10 फीसदी ही मंत्री पद नहीं बचा पाए.

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2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावत के बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई थी.
भोपाल:

चुनाव लोकसभा (Lok Sabha Elections 2204) का हो या विधानसभा का, नेताओं का पाला बदलना आम बात है. अब तक के चुनावों में दलबदलू नेताओं की संख्या उतनी नहीं थी, जितनी 2024 के लोकसभा चुनाव में है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सबसे ज्यादा ऐसे नेताओं को टिकट दिया है, जो पाला बदलकर पार्टी में आए हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में कुल 106 दलबदलू नेताओं (Anti-Defection Law)को मौका दिया है. इनमें बड़ी संख्या मध्य प्रदेश से भी है. मध्य प्रदेश में दो महीने में कांग्रेस के 3 मौजूदा विधायक बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. पिछले 10 सालों में ये आंकड़ा 35 का है. हालांकि, पाला बदलकर आए इन नेताओं का कद भी छोटा हो गया. इनमें से 10 फीसदी ही मंत्री पद बचा पाए.

मध्य प्रदेश में दल बदल के चलते कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. कांग्रेस इन हालातों से बाहर निकलने का रास्ता नहीं खोज पा रही है. 29 मार्च को अमरवाड़ा से कांग्रेस विधायक कमलेश शाह ने सबसे पहले बीजेपी का दामन था. 30 अप्रैल को विधानसभा से उनका इस्तीफा मंजूर हो गया. 30 अप्रैल को पूर्व मंत्री, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और श्योपुर से विधायक रामनिवास रावत ने बीजेपी की सदस्यता ली, लेकिन अभी तक उन्होंने ना तो विधायकी छोड़ी है, ना ही कांग्रेस पार्टी. इसके बाद 5 मई को बीनागंज से कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे बीजेपी में शामिल हो गईं. हालांकि, उन्होंने भी विधायकी और कांग्रेस से इस्तीफा नहीं दिया है. 

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2013 से ही शुरू हो गया था कांग्रेस नेताओं का पाला बदलना 
ये 3 विधायक तो हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए, लेकिन 2013 से ही कांग्रेस विधायकों का भगवा चोला पहनना शुरू हो गया था. शुरुआत भी नाटकीय तरीके से विधानसभा के अंदर हुई. जब कांग्रेस सदन में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई, तो तत्कालीन उपनेता प्रतिपक्ष चौधरी राकेश सिंह ही बैठकर बीजेपी की तरफ चले गये.  2014 के लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस विधायक संजय पाठक, नारायण त्रिपाठी और दिनेश अहिरवार बीजेपी में शामिल हो गए.

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2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी झटका कांग्रेस का हाथ
2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी 22 विधायकों ने कांग्रेस का हाथ झटक दिया. इससे कमलनाथ सरकार गिर गई. कुछ महीनों में ही 4 और विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. 2021 में खंडवा उपचुनाव के दौरान सचिन बिड़ला सत्ताधारी पार्टी में शामिल हो गए.

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दलबदलू नेताओं के करियर पर लगा ब्रेक
कुल मिलाकर 10 सालों में लगभग 35 कांग्रेसी विधायक बीजेपी में शामिल हुए. इनमें 22 का सियासी सफर लगभग गुमनामी में चला गया. ज्यादातर नेता या तो चुनाव हार गए या उन्हें टिकट ही नहीं मिला. फिलहाल इन 35 में 9 विधायक हैं और 4 मंत्री हैं, लेकिन 60 प्रतिशत से ज्यादा घर बैठे हैं. कुछ नेता चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि कुछ नेताओं ने चुनाव से किनारा कर लिया है.

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तुलसी सिलावट, प्रधुम्न सिंह तोमर और गोविंद सिंह राजपूत ने पिछली सरकार से अपना मंत्रीपद बरकरार रखा था. लेकिन इस बार प्रभुराम चौधरी, हरदीप सिंह, ब्रजेंद्र यादव, बिसाहूलाल सिंह, संजय पाठक जैसे नेताओं की मंत्रिमंडल में एंट्री नहीं हुई.

2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के 3 विधायककों ने पाला बदला 
2023 के विधानसभा चुनाव में 230 में 163 विधायक बीजेपी से बने. 66 सीटों पर कांग्रेस जीती, लेकिन 3 विधायकों ने पाला बदल लिया. कांग्रेस नेताओं के पार्टी छोड़ने के सवाल पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी थोड़े तल्ख नज़र आते हैं, तो बीजेपी भी हमलावर है. मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी कहते हैं, "किसी के आने और जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. जो लोग यहां से बीजेपी में गए हैं, सबको पता है कि उन्हें कितनी इज्जत मिली है. आपको चुनावों के दौरान कहीं पर कोई भी नज़र आया. हमारे पास जो लोग आए थे, हमने उनका स्वागत माला पहनाकर किया था. इस तरह के दलबदल से जन प्रतिनिधियों का सम्मान जनता की नज़रों में खत्म होता जा रहा है. सिर्फ लोकतंत्र की हत्या करने की कोशिश की जा रही है."

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दूसरी ओर, बीजेपी के प्रवक्ता अजय सिंह यादव कहते हैं, "कांग्रेस में तुष्टिकरण की राजनीति चलती है. इसलिए नेता और कार्यकर्ता पार्टी छोड़कर बीजेपी में आ रहे हैं. बीजेपी में कई नेताओं को सम्मान मिला है. कोई मंत्री हैं, कोई पूर्व मंत्री रह चुके हैं. आगामी आने वाले दिनों में भी कई नेताओं और कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारियां दी जाएंगी. कांग्रेस किसी भी नेता का सम्मान नहीं किया जाता है. हमारी पार्टी दूरदर्शी सोचती है. इसलिए हर नेता को उचित सम्मान दिया जाएगा. हर कार्यकर्ताओं को उचित स्थान दिया जाएगा."

क्या है दल बदल कानून?
 दल बदल कानून हरियाणा के एक विधायक की वजह से अस्तित्व में आई. दरअसल, 1967 में हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली. उसके बाद से राजनीति में आया राम गया राम की कहावत मशहूर हो गई. इसे रोकने के लिए तत्कालीन राजीव गांधी सरकार 1985 में दल-बदल कानून लेकर आई. इसमें कहा गया कि अगर कोई विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी की सदस्यता छोड़कर दूसरी पार्टी ज्वॉइन कर लेता है, तो वो दल-बदल कानून के तहत सदन से उसकी सदस्यता जा सकती है. अगर कोई सदस्य सदन में किसी मुद्दे पर मतदान के समय अपनी पार्टी के व्हिप का पालन नहीं करता है, तब भी उसकी सदस्यता जा सकती है.

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एक्शन से बचने के लिए दलबदलुओं ने निकाला तरीका
हालांकि, दलबदलुओं ने इससे बचने का तरीका भी निकाल लिया. 2003 में हुए संशोधन के पहले नियम था कि अगर एक तिहाई विधायक या सांसद बगावत करके अलग होते हैं तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी. संविधान की दसवीं अनुसूची में दल-बदल के मामले में फैसला लेने का अधिकार सदन के अध्यक्ष को दिया गया. एक नया तरीका ये है कि विधायक दूसरे दल में शामिल हो रहे हैं, लेकिन विधानसभा में इस्तीफा नहीं दे रहे हैं. 

कर्नाटक, मध्य प्रदेश इसके सबसे ताजा उदाहरण हैं. जहां विधायकों का एक समूह एक साथ इस्तीफा देकर दूसरी पार्टी में शामिल हो गया. लेकिन विधायकी से इस्तीफा नहीं दिया. इसके बाद विरोधी दल सत्ता में आ गया. बाद में इन बागियों को चुनाव लड़ने के लिए टिकट भी मिल गया.

2020 में अल्पमत में आई कमलनाथ सरकार को लंबे ड्रामे के बाद इस्तीफा देना पड़ा था. बीजेपी के शिवराज सिंह चौहान ने सरकार बनाई. बगावत करने वाले कई नेता दोबारा विधायक और मंत्री भी बनाए गए थे.

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