आखिर पूर्णिया पर क्यों अड़े हैं पप्पू यादव? जहां लालू ने ठोक दी है ताल... क्या RJD-कांग्रेस के बिगड़ सकते हैं रिश्ते?

पप्पू यादव को कांग्रेस में शामिल करने के समय कांग्रेस ने भी अपने वोट बैंक और बिहार में संभावनाओं को लेकर गुणा-भाग किया होगा. क्या पप्पू यादव से किया वादा पूरा नहीं कर पाने के बाद कांग्रेस को भी सीमांचल के इलाकों में नुकसान हो सकता है?

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नई दिल्ली:

बिहार में ये बात आम है कि महागठबंधन में लालू यादव जो फैसला करते हैं, उसे कोई नहीं काट सकता. हाल ही में पप्पू यादव के रूप में एक और उदाहरण देखने को मिला. काफी धूमधाम और बड़े दावे के साथ 5 बार के सांसद पप्पू यादव ने अपनी 'जन अधिकार पार्टी' का कांग्रेस में विलय तो कर लिया, लेकिन एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बाद भी कांग्रेस पप्पू यादव की एक मात्र जाहिर पूर्णिया से चुनाव लड़ने की मंशा पूरी नहीं कर सकी, क्योंकि लालू यादव ने 'वीटो' लगा दिया.

पप्पू यादव उत्तर पूर्वी बिहार के सीमांचल क्षेत्र के कई जिलों में लोकप्रिय माने जाते हैं, उनको बाहुबली के तौर पर भी जाना जाता है. महागठबंधन में सीट शेयरिंग के दौरान आरजेडी ने पूर्णिया लोकसभा सीट अपने पास रख लिया है, लेकिन पप्पू यादव यहां से चुनाव लड़ने पर अड़े हुए हैं. उन्होंने चार अप्रैल को नामांकन करने का ऐलान भी कर दिया है.

सोशल मीडिया पर किए एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, "देश भर में फैले पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र के साथी, मेरे जन नामांकन में शामिल होना चाहते हैं, उनकी सुविधा के लिए पूर्णिया की महान जनता द्वारा प्रस्तावित नामांकन तिथि दो अप्रैल की जगह चार अप्रैल हो गया है. आप सब इसमें शामिल हों और आशीष दें."

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पूर्व सांसद पिछले एक साल से पूर्णिया में मेहनत कर रहे हैं. 'प्रणाम पूर्णिया' अभियान चलाकर वो गांव-गांव में मतदाताओं से मिलकर अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है. इसीलिए वो किसी भी कीमत पर पूर्णिया को छोड़ने को तैयार नहीं हैं. उन्होंने साफ कह दिया है कि "दुनिया छोड़ दूंगा, लेकिन पूर्णिया नहीं छोड़ूंगा".

पप्पू यादव पिछली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की थी. हालांकि उस समय वो राजद के टिकट पर मधेपुरा से जीते थे. उन्होंने 1990 के दशक में तीन बार पूर्णिया का प्रतिनिधित्व किया, जिसमें दो बार वो निर्दलीय जीते थे.

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Photo Credit: PTI

अब सवाल उठता है कि पूर्णिया से पप्पू यादव के चुनाव लड़ने की जिद से क्या कांग्रेस और आरजेडी के रिश्ते बिगड़ सकते हैं? क्या कांग्रेस पप्पू यादव को पूर्णिया से फ्रेंडली फाइट की हरी झंडी दे सकती है? या कांग्रेस आखिरी समय में लालू यादव को मनाने में कामयाब रहेगी? हालांकि इसकी उम्मीद नहीं ही दिखती है.

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पप्पू यादव को शामिल कराने से कांग्रेस को फायदा

पप्पू यादव को कांग्रेस में शामिल करने के समय कांग्रेस ने भी अपने वोट बैंक और बिहार में संभावनाओं को लेकर गुणा-भाग किया होगा. क्या पप्पू यादव से किया वादा पूरा नहीं कर पाने के बाद कांग्रेस को भी सीमांचल के इलाकों में नुकसान हो सकता है? या फिर पप्पू यादव को लेकर कांग्रेस ने बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की कुछ रणनीति बनाई है? पप्पू यादव के पूर्णिया से लोकसभा चुनाव लड़ने की जिद देखकर तो ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस उन्हें बिहार में राजनीति करने के लिए लेकर आयी है.   

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पप्पू यादव हमेशा अपने मन की करने के लिए जाने जाते हैं, वो किसी के निर्देश पर काम करना पसंद नहीं करते. पूर्णिया से पहली बार निर्दलीय चुनाव लड़कर जीतने के बाद कई पार्टियों ने उनसे संपर्क किया, लेकिन उस वक्त पप्पू यादव की सीमांचल के इलाके में धाक थी और चुनाव जीतने के लिए उनका नाम ही काफी था. हालांकि बाद में वो आरजेडी में शामिल हुए, लेकिन यहां भी ज्यादा दबाव महसूस करने के बाद वो पार्टी से अलग हो गए और अपनी पार्टी बना ली.

अब कांग्रेस में शामिल होने के बाद पप्पू पूर्णिया से चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. हालांकि कांग्रेस के किसी भी बड़े नेता ने अभी तक उनका समर्थन नहीं किया है. राजद ने यहां से बीमा भारती को उम्मीदवार बनाया है.

पप्पू की आरजेडी से पूर्णिया सीट कांग्रेस के लिए छोड़ने की अपील
हालांकि पप्पू यादव ने आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव से एक बार फिर पूर्णिया सीट कांग्रेस के लिए छोड़ने की अपील की है. पप्पू ने कहा, "बिहार में 'इंडिया' गठबंधन के बड़े भाई राजद प्रमुख आदरणीय लालू प्रसाद जी से पुनः आग्रह है कि वह गठबंधन के हित में पूर्णिया सीट पर पुनर्विचार करें और इसे कांग्रेस के लिए छोड़ दें."

वहीं कांग्रेस की राज्य इकाई ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि पप्पू यादव आलाकमान की मंजूरी से मैदान में उतर रहे हैं या नहीं, लेकिन अगर वो अपनी मर्जी से ऐसा कर रहे हैं, तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.

रिपोर्ट्स के मुताबिक पप्पू यादव को लेकर एक नई बात भी सामने आ रही है कि उन्होंने अभी तक कांग्रेस की औपचारिक तौर पर प्राथमिक सदस्यता नहीं ली है. ऐसे में अगर वो पूर्णिया से चुनाव लड़ते भी हैं तो उन पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती.

कांग्रेस गठबंधन की मजबूरी और लालू प्रसाद यादव के तेवर देखकर सीधे तौर पर पप्पू यादव को टिकट तो नहीं दे सकती, लेकिन शायद चुनाव के दौरान पर्दे के पीछे से वो पप्पू यादव का समर्थन करे. अब तो ये वक्त ही बताएगा कि कांग्रेस का पप्पू यादव वाला पासा सीधा बैठता है या उल्टा.
 

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