योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर में दिलचस्प रण, इस बार मामला पूरा फिल्मी है

गोरखपुर सीट पर आजादी के बाद हुए पहले चुनाव से लेकर 1984 तक कांग्रेस का दबदबा रहा. इस दौरान हुए आठ चुनाव में कांग्रेस ने छह बार जीत दर्ज की. कांग्रेस मदन पांडेय 1984 के चुनाव में गोरखपुर से जीते थे. उनके बाद कांग्रेस को यहां पर कभी जीत नसीब नहीं हुई.

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नई दिल्ली:

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के अंतिम चरण में जिन सीटों पर मतदान होगा, उनमें गोरखपुर सीट(Gorakhpur Lok Sabha Seat) भी शामिल है. यह सीट उत्तर प्रदेश की हाई प्रोफाइल सीटों में शामिल है, जिस पर देशभर की निगाहें हैं. इसकी वजह यह है कि गोरखपुर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) का क्षेत्र है.वो गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर (Gorakhnath Temple) के महंत भी हैं.इस वजह से गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र की प्रतिष्ठा गोरखनाथ मंदिर से जुड़ी हुई है. यहां के चुनाव नतीजों पर गोरखनाथ मंदिर का प्रभाव भी देखा जाता है.मंदिर का प्रभाव केवल गोरखपुर ही नहीं बल्कि गोरखपुर और बस्ती मंडल की आठ दूसरी सीटों पर भी है.आदित्यनाथ ने 1998 से 2017 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया. 

गोरखपुर कबसे है बीजेपी का गढ़

आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस सीट पर उपचुनाव कराया गया था.इसमें बीजेपी उम्मीदवार उपेंद्र शुक्ल को हार का सामना करना पड़ा था. बाद में 2019 के चुनाव में बीजेपी ने फिल्म अभिनेता रविकिशन को टिकट दिया. वो चुनाव भी जीते. बीजेपी ने उनपर 2024 में भी भरोसा जताया है. वहीं समाजवादी पार्टी ने उनके खिलाफ अभिनेत्री काजल निषाद को मैदान में उतारा है. इस तरह गोरखपुर का मुकाबला अभिनेता बनाम अभिनेत्री का हो गया है.
 

योगी आदित्यनाथ ने 1998 से 2014 तक लोकसभा का चुनाव जीता.

गोरखपुर लोकसभा सीट पर आजादी के बाद हुए पहले चुनाव से लेकर 1984 तक कांग्रेस का दबदबा रहा. इस दौरान हुए आठ चुनाव में कांग्रेस ने छह बार जीत दर्ज की. कांग्रेस मदन पांडेय 1984 के चुनाव में गोरखपुर से जीते थे.उस चुनाव में कांग्रेस की आंधी चल रही थी. उसने 400 से अधिक सीटें जीत ली थीं. उसके बाद कांग्रेस को इस सीट पर कभी जीत नसीब नहीं हुई. साल 1989, 1991 और 1996 के चुनाव में गोरखनाथ मंदिर के महंत अवैद्यनाथ ने जीत दर्ज की. यह राम मंदिर आंदोलन के दौर में महंत अवैद्यनाथ की राजनीति में वापसी की तरह था.महंत अवैद्यनाथ का उत्तराधिकारी बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने 1998 में गोरखपुर से पहली बार चुनाव लड़ा और जीता.उसके बाद हुए चुनावों में आदित्यनाथ को कभी कोई चुनौती नहीं मिली. वो 2014 तक लगातार गोरखपुर से सांसद चुने जाते रहे.

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योगी आदित्यनाथ का करिश्मा

मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने सांसद पद छोड़ दिया था. इसके बाद कराए गए उपचुनाव में सपा उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने बीजेपी के उपेंद्र शुक्ल को हराया था. यह गोरखपुर में 1989 के बाद पहली हार थी. लेकिन सपा यह बादशाहत बहुत दिन तक अपने पास नहीं रख पाई.बाद में प्रवीण निषाद बीजेपी के साथ हो गए. वो बीजेपी के टिकट पर संतकबीर नगर से चुनाव जीते.इस बार भी वो वहीं से उम्मीदवार हैं.साल 2019 के चुनाव से पहले अभिनेता रविकिशन कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए.पार्टी ने उन्हें टिकट दिया. वो तीन लाख से अधिक वोटों से जीतने में कामयाब रहे. उन्होंने कांग्रेस के रामभुआल निषाद को हराया था.  

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गोरखपुर में चुनाव प्रचार करते बीजेपी उम्मीदवार रवि किशन.

 समाजवादी पार्टी का भरोसा

गोरखपुर में मल्लाह जाति के वोटों की संख्या अधिक है. इसे ध्यान में रखते हुए पिछले आठ चुनावों में 2009 को छोड़कर  सपा ने निषाद उम्मीदवार ही उतारे हैं. लेकिन उसे हर बार निराशा ही हाथ लगी.लोगों ने गोरखनाथ मंदिर के प्रति ही अपनी आस्था जताई और जातीय समीकरणों को नकार दिया. इस बार के चुनाव में भी सपा ने काजल निषाद को मैदान में उतारा है. वो टीवी और भोजपुरी फिल्मों की अभिनेत्री हैं. इससे पहले वो 2022 का विधानसभा चुनाव और 2023 में नगर निगम चुनाव में भी सपा की उम्मीदवार थीं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. सपा ने निषाद वोटों की उम्मीद में ही एक बार फिर निषाद को टिकट दिया है.

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गोरखपुर में सपा उम्मीदवार काजल निषाद के समर्थन में सभा करते अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी.

इस बार के चुनाव में बीजेपी जहां गोरखपुर में विकास कार्यों और मोदी सरकार की गारंटियों के नाम पर वोट मांग रही है. वहीं इंडिया गठबंधन संविधान बचाने के नाम पर वोट मांग रहा है. जनता किसकी अपील पर ध्यान देती है, इसका पता चार जून को ही चल पाएगा.

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