KYC InfoGraphics: कभी कांग्रेस का अभेद्य किला थी अमेठी, इस वक्त है BJP का दबदबा

Lok sabha Election 2024 : अमेठी लोकसभा सीट के तहत कुल चार विधानसभा सीटें आती हैं. इन विधानसभा सीटों के नाम हैं तिलोई, जगदीशपुर, गौरीगंज और अमेठी. अगर बात अमेठी में हुए लोकसभा चुनाव की करें तो 1967 के आमचुनाव में अमेठी लोकसभा सीट पहली बार अस्तित्व में आया.

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Lok sabha Election 2024 : अमेठी लोकसभा सीट पर इस बार भी दिलचस्प हो सकती है 'लड़ाई'
नई दिल्ली:

अमेठी लोकसभा सीट (Amethi Lok sabha seat) का सियासी इतिहास बेहद रोमांचक है. 2019 से पहले जब भी अमेठी को सियासत के फ्रेम से देखने की कोशिश की जाती थी, तो उस फ्रेम में ज्यादातर समय कांग्रेस के उम्मीदवार ही दिखते थे.लेकिन 2019 के आम चुनाव के बाद (Lok Sabha Election 2024) फ्रेम भी बदला और उसके अंदर की तस्वीर भी और अब नए फ्रेम में बीजेपी ही बीजेपी दिखती है. ये वही अमेठी है जिसे एक समय पर कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाता था. साथ ही इसे दशकों से गांधी परिवार का गढ़ माना जाता रहा. और ये वही अमेठी है जहां एक समय पर उस समय के सांसद राहुल गांधी के लापता होने के पोस्टर तक चसपा किए गए. आपको बता दें कि इस आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अमेठी से किशोरी लाल शर्मा को अपना उम्मीदवार बनाया है. 

आज हम देश की प्रमुख लोकसभा सीटों या यूं कहें कि वीवीआईपी लोकसभा सीट से रूबरू कराने के क्रम में आपको अमेठी के बारे में विस्तार से बताएंगे...

उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा सीटों में से अमेठी सीट को नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ माना जाता रहा है. हालांकि, इस सीट से पिछले चुनाव में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को बीजेपी की स्मृति ईरानी ने बड़े अंतर से हरा दिया था. लेकिन अगर अमेठी में हुए आज तक के लोकसभा चुनाव के इतिहास को देखें तो ये बात साफ हो जाती है कि यह सीट ज्यादातर समय तक कांग्रेस के ही पास रही है. अमेठी को उत्तर प्रदेश के VVIP सीटों में से एक माना जाता है. 2019 से अमेठी की यह सीट भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी के पास है. 

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अमेठी लोकसभा सीट के तहत कुल पांच विधानसभा सीटें आती हैं. इन विधानसभा सीटों के नाम हैं तिलोई, जगदीशपुर, गौरीगंज, सालौन और अमेठी.बात अगर अमेठी में हुए लोकसभा चुनाव की करें तो 1967 के आमचुनाव में अमेठी लोकसभा सीट पहली बार अस्तित्व में आया. इस नई सीट पर कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी सांसद बने. तब उन्होंने बीजेपी के गोकुल प्रसाद पाठक को साढ़े तीन हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था. इसके बाद 1972 में विद्याधर वाजपेयी दोबारा अमेठी के सांसद बने. 

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1977 के चुनाव में पहली बार गांधी परिवार से किसी ने इस सीट से अपनी दावेदारी पेश की थी. कांग्रेस पार्टी ने गांधी परिवार से संजय गांधी को मैदान में उतारा था. लेकिन आपातकाल के दौरान सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की तीव्र आलोचना के चलते जनता ने संजय गांधी पर अपना विश्वास नहीं  जताया. नतीजा यह रहा कि इस चुनाव में संजय गांधी की हार हुई. और जनता पार्टी के उम्मीदवार रविंद्र प्रताप सिंह यहां से सांसद चुने गए. 
 

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ये पहली बार था जब कांग्रेस को इस सीट पर हार का सामना करना पड़ा. लेकिन 1980 में कांग्रेस ने एक बार फिर वापसी की और इस सीट से अपनी जीत का परचम लहराया. जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी यहां से सांसद बने.

1980 में संजय गांधी की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी ने अमेठी की बागडोर संभाली. इसके बाद 1984 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी को ही एक बार फिर अमेठी से मैदान में उतारा गया.1984 में इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. 

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तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने राजीव को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई. इसके बाद लोकसभा चुनावों की घोषणा हो गई. राजीव फिर अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए गए तो मेनका ने राजीव के मुकाबले निर्दलीय उम्मीदवार के तौर में पर्चा भर दिया.यह मुकाबला नेहरू-गांधी परिवार के दोनों वारिसों के बीच हो गया. जब नतीजे आए तो मेनका के सामने राजीव को प्रचंड जीत मिली. 1984 लोकसभा चुनाव में राजीव को 3,65,041 वोट जबकि उनके विरोध में उतरीं मेनका को महज 50,163 वोट ही मिल सके. 

इस तरह से मेनका को 3,14,878 वोटों से करारी हार झेलनी पड़ी. बात अगर 1989 और 1991 के लोकसभा चुनावों की करें तो यहां से एक बार फिर राजीव गांधी ही इस सीट से सांसद बने. 1991 के लोकसभा चुनावों के दौरान 20 मई को पहले चरण की वोटिंग हुई. 21 मई को राजीव गांधी प्रचार के लिए तमिलनाडू गए हुए थे. तब इस दौरान ही उनकी हत्या कर दी गयी.1991 और 1996 में अमेठी लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ जिसके बाद कांग्रेस के सतीश शर्मा सांसद बने. हालांकि, 1998 में कांग्रेस को दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा 

जब भाजपा प्रत्याशी संजय सिंह ने सतीश शर्मा को 23 हजार वोटों से हराया था.1999 में सोनिया गांधी ने जीता चुनाव. 1999 में कांग्रेस से राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी चुनावी मैदान में उतरीं और उन्होंने संजय सिंह को 3 लाख से भी अधिक वोटों से हराया. इसके बाद 2004 के 14वें लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी पहली बार इस सीट से चुनाव लड़े, उन्होंने बसपा प्रत्याशी चंद्रप्रकाश मिश्रा को 2 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया. 2009 में भी राहुल ने अमेठी सीट से जीत दर्ज की. 

इस बार जीत का अंतर साढ़े तीन लाख से भी ज्यादा रहा. 2014 में राहुल गांधी इस सीट से लगातार तीसरी बार सांसद चुने गए। उनके खिलाप भाजपा की ओर से स्मृति ईरानी मैदान में उतरी थीं. हालांकि, तब जीत का अंतर 1 लाख वोट से कुछ ही ज्यादा था.

किस पार्टी ने कब दर्ज की जीत

अब तक के हुए 16 लोकसभा चुनावों और 2 उपचुनाव में कांग्रेस ने 16 बार जीत का परचम लहराया. सिर्फ दो बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा जब 1977 में भारतीय लोकदल और 1998 में बीजेपी ने इस सीट पर जीत दर्ज की. अमेठी में हुए पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों की बात करें तो स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को 55 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था. स्मृति ईरानी को 4 लाख 68 हजार से ज्यादा वोट मिले थे. जबकि राहुल गांधी के हिस्से में 4 लाख 13 हजार से ज्यादा वोट गए थे. स्मृति ईरानी को कुल वोट का 49.71 प्रतिशत और राहुल गांधी को 43.86 प्रतिशत वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर एक निर्दलीय प्रत्याशी रहे थे.

क्या है अमेठी का जातिगत समीकरण?

अमेठी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र 1967 में बनाया गया था. अमेठी नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ रहा है. संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी के बाद राहुल गांधी इस सीट से सांसद चुने गए थे. 2013 में अमेठी की जनसंख्या 15,00,000 थी. जातिगत समीकरण के अनुसार यहां 66.5 प्रतिशत हिंदू हैं और मुस्लिम 33.04 प्रतिशत हैं. 

स्मृति ईरानी जुटीं तैयारी में

लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी के लोगों तक पहुंचने के प्रयास तेज कर दिए हैं. वे उत्तर प्रदेश के इस जिले का लगातार दौरा कर रही हैं. सियासी गलियारों में चर्चा है कि स्मृति ईरानी के इस सीट से आगामी आम चुनाव लड़ने की संभावना है.

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