'एक देश एक चुनाव' लागू हुआ तो क्या होंगे फायदे, इसे लागू करने में सरकार के लिए क्या है चुनौतियां ? 

अगर केंद्र सरकार देश में 'एक देश एक चुनाव' को लागू करती है तो ये कोई पहली बार नहीं होगा जब इसे तरह से देश में चुनाव कराए जाएंगे. इससे पहले वर्ष 1952, 1957, 1962, 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए थे.

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'एक देश एक चुनाव' को लागू करने के लिए केंद्र सरकार ने गठित की समिति

नई दिल्ली:

देश में एक ही चुनाव कराने को लेकर केंद्र सरकार ने एक बड़ा फ़ैसला किया है. केंद्र ने 'एक देश एक चुनाव' को लेकर एक समिति का गठन किया है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इस समिति का अध्यक्ष बनाया गया है. ये समिति इस मुद्दे पर विचार करने के बाद अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. इसके बाद ही ये तय होगा कि आने वाले समय में क्या सरकार लोकसभा चुनाव के साथ ही राज्यों में विधानसभा के चुनाव कराने की तैयारी करेगी या नहीं. इन सब के बीच एक अटकल यह भी है कि इस विशेष सत्र में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने का बिल लाया जा सकता है. पूरे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हों, इसका सुझाव पीएम मोदी कई बार दे चुके हैं,  लेकिन जानकारों के मुताबिक ऐसा करना आसान नहीं होगा. आखिर ऐसा क्यों है आइये जानते हैं इसकी वजह...

लागू करने से पहले क्या कुछ करना होगा - 

'एक देश एक चुनाव' को लागू करने में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. मसलन, सबसे पहले इसे लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा. लोकसभा का कार्यकाल या तो बढ़ाना होगा या फिर तय समय से पहले इसे खत्म करना होगा. इतना ही नहीं कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाना भी पड़ सकता है. जबकि कुछ विधानसभा का कार्यकाल समय से पहले खत्म करना होगा . इसे लागू करने से पहले सभी दलों में आम राय बनाना जरूरी है. हालांकि, एक देश एक चुनाव को लेकर चुनाव आयोग पहले ही कह चुका है कि वह इसके लिए तैयार है. खास बात ये है कि अगर देश में एक चुनाव को लागू भी किया जाता है तो पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनाव इसके तहत नहीं कराए जा सकते. ऐसा इसलिए भी क्योंकि ये राज्य के विषय हैं. 

देश में कब-कब हुआ 'वन नेशन, वन इलेक्शन' 

अगर केंद्र सरकार देश में 'एक देश एक चुनाव' को लागू करती है तो ये कोई पहली बार नहीं होगा जब इसे तरह से देश में चुनाव कराए जाएंगे. इससे पहले वर्ष 1952, 1957, 1962, 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए थे. 1968 और 1969 में कई विधानसभा समय से पहले भंग भी किए गए. वहीं, 1970 में लोकसभा को समय से पहले भंग किया था. 1970 के बाद ही 'एक देश, एक चुनाव' की परंपरा खत्म हो गई. 

क्या होगा इससे फायदा 

देश में 'एक देश एक चुनाव' की परंपरा को लागू करने से चुनाव में पैसों की बर्बादी बचेगी. साथ ही राज्यों के मुताबिक बार बार चुनाव कराने की चुनौती से भी मुक्ति मिलेगी. जानकारों का मानना है कि ऐसा करने से चुनाव में इस्तेमाल होने वाले काले धन पर भी लगाम लगाया जा सकता है. साथ ही साथ सरकारी संसाधनों का उपयोग सीमित होगा. और इससे देश में विकास कार्यों की रफ्तार पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा. 

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इसे लागू करने में आएगी ये चुनौती - 

सूत्रों के अनुसार 'एक देश एक चुनाव' को लागू करने से केंद्र में बैठी सरकार के दल को फायदा संभव है. ऐसा हुआ तो जिस दल की केंद्र में सरकार है वो ही अन्य राज्यों में भी सरकार बना सकती है. इस परंपरा के शुरू होने से छोटे दलों को हो सकता है नुक़सान . साथ ही इसके लागू होने के बाद चुनावी नतीजों में हो सकती है देरी. सबसे बड़ा सवाल ये है कि अगर अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही गिर जाए तो ऐसे में क्या किया जाएगा. सूत्रों का मानना है कि इसके लागू होने से संवैधानिक, राजनीतिक, ढांचागत चुनौतियां बढ़ेंगी. साथ ही साथ विधानसभा, लोकसभा का एक दिन का कार्यकाल बढ़ाने पर संवैधानिक संशोधन ज़रूरी होगा. राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल भंग होने पर संवैधानिक व्यवस्था करने का सवाल .विधानसभा का कार्यकाल घटाने या बढ़ाने पर सर्वसम्मति कैसे बना पाएगी सरकार, ये भी एक बड़ा सवाल है. सरकार को संवैधानिक संशोधन को पहले लोकसभा और बाद में राज्यसभा से पारित कराना होगा. इसे लागू कराने के लिए केंद्र सरकार को कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से इस प्रस्ताव को अनुमोदित कराना होगा.

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