सुप्रीम कोर्ट ने केरल के विधायक और पूर्व परिवहन मंत्री एंटनी राजू के खिलाफ अंडरवियर चरस केस में आपराधिक सुनवाई को बहाल कर दिया है. जूनियर वकील के तौर पर उनके द्वारा लड़े गए ड्रग्स मामले में "अंडरवियर" के रूप में सबूतों से कथित छेड़छाड़ के मामले में आपराधिक सुनवाई एक बार फिर से बहाल कर दी गई है. जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा कि केरल उच्च न्यायालय ने यह मानकर गलती की है कि आपराधिक कार्यवाही दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195(1)(बी) के कारण वर्जित है.
सुप्रीम कोर्ट ने राजू के खिलाफ आरोपपत्र का संज्ञान लेने वाले मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश को इस तथ्य पर बहाल किया है कि अपराध तीन दशक पहले हुआ था और अदालत ने आदेश दिया कि ट्रायल को एक साल के अंदर खत्म किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि राजू के खिलाफ नए सिरे से जांच शुरू करने का आदेश देने में केरल उच्च न्यायालय की कोई गलती नहीं थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज किया है कि अपीलकर्ता एमआर अजयन के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने का कोई अधिकार नहीं था.
क्या है ' अंडरवियर चरस केस'
दरअसल, यह 1990 का मामला है. 34 साल पहले एंड्रयू साल्वाटोर सेरवेली नाम के एक ऑस्ट्रेलियाई व्यक्ति अपने अंडरवियर में छिपाकर 61.5 ग्राम चरस की तस्करी करने के आरोप में तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर गिरफ्तार किया गया था. उस वक्त राजू आपराधिक मामलों में केरल की जिला अदालत में वकालत करते थे. तब तक उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम नहीं रखा था. राजू ने अंडरवियर चरस मामले में कोर्ट में सेरवेली की पैरवी की थी और ट्रायल कोर्ट ने सेरवेली को एनडीपीएस के तहत दोषी ठहराते हुए 10 सल कैद की सजा सुनाई थी.
इस फैसले को सेरवेली ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. इसके बाद राजू पर आरोप लगा कि उन्होंने अंडरवियर के साथ छेड़छाड़ की है. दरअसल, जिस अंडरवियर में चरस मिली थी वो अंडरवियर सेरवेली को फिट ही नहीं आता था. वो अंडरवियर सेरवेली के शरीर में फिट आने के लिए बहुत छोटा था. इसी आधार पर सेरवेली को अदालत ने बरी कर दिया था.
फिर भी खत्म नहीं हुई परेशानी...
हालांकि, इसके बाद भी राजू की परेशानियां खत्म नहीं हुई. सेरवेली के अपने देश वापस लौटने के कुछ साल बाद ऑस्ट्रेलिया के नेशनल सेंट्रल ब्यूरो ने केरल हाईकोर्ट से कुछ चौंकाने वाली जानकारी देते हुए संपर्क किया. चरस तस्करी मामले के वहां के जांच अधिकारी ने केरल हाईकोर्ट से यह पता लगाने के लिए जांच की मांग की कि क्या इस मामले में अहम सबूतों में से एक अंडरवियर से छेड़छाड़ हुई थी. बाद में आरोप लगाया गया कि वकील राजू ने अंडरवियर ही बदल दिया था. वो छोटा अंडरवियर जानबूझ कर बदला गया था.
इसके बाद 1994 में राजू और अदालत में कार्यरत क्लर्क के खिलाफ एक आपराधिक शिकायत दर्ज की गई थी और 12 साल बाद, 2006 में, सहायक पुलिस आयुक्त ने मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष आरोप पत्र दायर किया था. हालांकि, हाईकोर्ट ने राजू के खिलाफ चल रही कार्यवाही इस तर्क के साथ खत्म कर दी थी कि संबंधित अपराध के लिए, निचली अदालतें पुलिस रिपोर्ट के आधार पर संज्ञान नहीं ले सकती हैं.
हालांकि , उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि उसका आदेश आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 195(1)(बी) के प्रावधानों के अनुसार मुकदमा चलाने पर रोक नहीं लगाएगा. मामले में तिरुवनंतपुरम अदालत के उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के खिलाफ राजू ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. इसके बाद याचिकाकर्ता ने भी सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी और अब सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सुनवाई बहाल कर दी है.