- बुंदेलखंड के पन्ना जिले के पास बहने वाली केन नदी में लाखों साल पुराने जीवाश्मों से बना शजर पत्थर मिलता है.
- शजर पत्थर की प्राकृतिक आकृतियां इसे खास बनाती हैं और इससे बने आभूषणों की अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग है.
- शजर पत्थर की खोज बांदा-पन्ना सीमा पर केन नदी की विशेष जगह पर गोताखोरों द्वारा की जाती है.
बुंदेलखंड का पन्ना जिला हीरों की खदानों के लिए तो दुनियाभर में मशहूर है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि हीरों से कुछ किलोमीटर दूर बहने वाली केन नदी भी अपने भीतर एक अनमोल खजाना छुपाए हुए है. शजर पत्थर. दुनिया में यह एकमात्र नदी है जिससे निकलने वाला पत्थर लाखों में बिकता है और उससे बने आभूषण अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेहद लोकप्रिय हैं.
शजर पत्थर क्यों है खास?
शजर पत्थर लाखों साल पुराने जीवाश्मों से बना होता है. जब इसे काटा जाता है, तो भीतर मौजूद प्राकृतिक आकृतियां, पत्तियां, शैवाल, फंगस के निशान बेहद सुंदर डिज़ाइन की तरह उभर आते हैं. प्रकृति द्वारा बनाई गई इन आकृतियों के कारण इसे 'Nature's Painting Stone' भी कहा जाता है. पत्थर को विशेष तरीके से तराशकर अंगूठी, हार, कान की बाली जैसे बेशकीमती गहने तैयार होते हैं, जिनकी विदेशों में भारी मांग है.
लाखों का बेशक़ीमती पत्थर
केन नदी में कहां मिलता है शजर पत्थर?
हालांकि केन नदी बांदा जिले से बहती है, लेकिन पूरी नदी में शजर पत्थर नहीं मिलता. बांदा-पन्ना बॉर्डर पर नदी की एक विशेष जगह पर गोताखोर गहराई में उतरकर इन पत्थरों की तलाश करते हैं. हजारों साधारण पत्थरों के बीच से शजर पत्थर पहचानना बेहद कठिन काम है.
पन्ना में हीरे हैं, तो वहीं पास ही केन नदी में यह प्राचीन जीवाश्म पत्थर, इस क्षेत्र की भूगर्भीय विशेषताओं को दर्शाता है.
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राष्ट्रीय पहचान: ‘वन डिस्ट्रिक्ट–वन प्रोडक्ट' में शामिल
शजर पत्थरों से आभूषण बनाने वाले कारीगर द्वारिका सोनी बताते हैं, 'शजर पत्थर को एक जिला, एक उत्पाद (ODOP) में शामिल किया गया है. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शजर पत्थर से बना उपहार सऊदी अरब के प्रिंस को दिया था, तब इसकी मांग अचानक बढ़ गई. G-20 शिखर सम्मेलन में भी विदेशी मेहमानों को शजर आभूषण दिखाए गए, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी पहचान और मजबूत हुई.
600 साल से शजर तराशी की परंपरा चली आ रही
शजर पत्थर तराशने और आभूषण बनाने का काम सिर्फ बांदा में होता है. यहां के कारीगर पीढ़ियों से इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं. यह कहा जाता है कि यहां 600 साल से शजर तराशी की परंपरा चली आ रही है.
भूगर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार, बुंदेलखंड का यह इलाका लाखों साल पहले भूगर्भीय हलचलों का केंद्र रहा होगा. इसी वजह से यहां इतने प्राचीन जीवाश्म पत्थर मिलते हैं.
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खतरे में शजर पत्थर: केन नदी में अंधाधुंध खनन से संकट
बुंदेलखंड के समाजसेवी आशीष सागर बताते हैं, 'बड़े पैमाने पर मशीनों से मोरंग का अवैध खनन शजर पत्थर के अस्तित्व के लिए खतरा बन गया है. नदी की प्राकृतिक रेत हटने से शजर पत्थर बनने की प्रक्रिया प्रभावित होती है. सरकार को शजर पत्थर आधारित कुटीर उद्योग को संरक्षण और बढ़ावा देने की जरूरत है.'
पन्ना के हीरों की तरह ही शजर पत्थर भी बुंदेलखंड की पहचान है. एक ऐसा दुर्लभ रत्न जो प्रकृति ने लाखों साल में गढ़ा है. लेकिन अवैध खनन और उपेक्षा के कारण इस अनोखी धरोहर पर संकट मंडरा रहा है. स्थानीय कारीगरों और नदी की पारिस्थितिकी को बचाया गया, तो शजर पत्थर दुनिया में भारत का नाम और रोशन कर सकता है.














