दिल्ली में लाल किला के बाहर हुए कार विस्फोट में कश्मीरियों की संलिप्तता सामने आने के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में पढ़ाई कर रहे कश्मीरी छात्रों की मुश्किलें बढ़ गई हैं. कई छात्रों का आरोप है कि उन्हें संदेह की नजर से देखा जा रहा है और रोजमर्रा की जिंदगी में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है.
उत्तर भारत के कई राज्यों में पढ़ रहे छात्रों ने बताया कि ‘टेरर मॉड्यूल' से जुड़े दो कश्मीरी डॉक्टरों की गिरफ्तारी के बाद माहौल अचानक बदल गया है. छात्रों के मुताबिक बात सिर्फ बढ़ी हुई सुरक्षा जांच तक सीमित नहीं है. यह अब सीधे तौर पर अविश्वास, सामाजिक दूरी और डराने-धमकाने जैसी स्थितियों में बदल रही है.
'दुकानदारों ने किराना देने से मना किया'
कुछ छात्रों ने दावा किया कि स्थानीय दुकानों ने उन्हें किराना देने से मना कर दिया, जबकि कई लोगों के मुताबिक, उनके सहपाठियों ने उनके परिवारों पर ‘आतंकी संबंध' होने के संकेत दिए. मकान मालिकों और पड़ोसियों के व्यवहार में आए बदलाव से भी छात्र असुरक्षित महसूस कर रहे हैं.
ब्लास्ट के बाद लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास सुरक्षा बढ़ाई गई.
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फरीदाबाद में कश्मीरी छात्रों से पूछताछ
फरीदाबाद में हाल ही में 2000 से ज्यादा कश्मीरी छात्रों से पुलिस ने पूछताछ की, ताकि सिलसिलेवार तरीके से दिल्ली विस्फोट से जुड़े संभावित संपर्कों की जांच की जा सके. छात्रों का कहना है कि यह प्रक्रिया उन्हें अलग-थलग और असुरक्षित कर रही है.
कश्मीरियों संग भेदभाव के मुद्दे पर गरमाई सियासत
इस स्थिति ने जम्मू-कश्मीर में नाराज़गी पैदा कर दी है. जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि कुछ लोगों द्वारा की गई आतंकी हरकत की वजह से पूरे कश्मीर घाटी के लोगों यानी सभी कश्मीरियों को न सिर्फ बदनाम किया जा रहा है बल्कि उन्हें निशाने पर लिया जा रहा है जो कि सही नही हैं. वही पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने इन घटनाओं की निंदा करते हुए कहा कि एक आतंकी घटना में किसी एक व्यक्ति की संलिप्तता को लाखों कश्मीरियों को सामूहिक रूप से दंडित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता.
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वहीं छात्र संगठनों ने भी आरोप लगाया है कि उत्तरी राज्यों में कश्मीरी छात्रों को प्रोफाइलिंग, अचानक बेदखली, बिना कारण पूछताछ और धमकियों का सामना करना पड़ रहा है. संगठनों ने इसे चिंताजनक और खतरनाक प्रवृत्ति बताते हुए प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप की मांग की है, ताकि छात्रों की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित किया जा सके. कश्मीर से जुड़े कई लोगो का कहना है कि लगातार संदेह की नजर से देखे जाने का माहौल, पहले की बड़ी आतंकी घटनाओं के बाद बने अविश्वास वाले दौर की याद दिलाता है और इससे छात्रों में गंभीर मानसिक तनाव पैदा हो सकता है.
नेताओं और समुदाय के प्रतिनिधियों का कहना है कि देश के अन्य हिस्सों में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों को अलग-थलग करना समस्या का समाधान नहीं है. उन्होंने राज्यों से अपील की है कि सुरक्षा जांच और पुलिस वेरिफिकेशन के दौरान ऐसा माहौल न बनने दिया जाए, जिससे छात्रों में भय और असुरक्षा बढ़े.














