मोरल पुलिसिंग : झील किनारे बैठे थे 'अलग-अलग धर्म' वाले चचेरे भाई-बहन, भीड़ ने घंटों पीटा

कर्नाटक के मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने पिछले साल अक्टूबर में भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं पर छिपे हुए शरारती कृत्यों में शामिल होने का आरोप लगाया था और कहा था कि वे समाज में दरारें पैदा करते हैं और सांप्रदायिक हिंसा भड़काते हैं.

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बेंगलुरु:

कर्नाटक के बेलगावी से मोरल पुलिसिंग का एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है. यहां एक झील के पास एक साथ बैठने पर 17 लोगों के एक समूह ने विभिन्न समुदायों के एक पुरुष और महिला को पाइप और रॉड से बेरहमी से पीटा. पीड़ित चचेरे भाई-बहन हैं. वे दोनों राज्य सरकार की योजना के लिए आवेदन करने एक साथ निकले थे. जब तक उनके परिवार वाले उन्हें बचाने नहीं आए, तब तक उन पर घंटों तक हमला किया जाता रहा.

पुलिस ने कहा है कि इस घटना में शामिल आरोपियों में से नौ को गिरफ्तार कर लिया गया है. इनमें से दो किशोर हैं.

पीड़ित शनिवार दोपहर करीब डेढ़ बजे बेलगावी में किला झील के पास बैठे थे, तभी करीब आठ लोगों का एक समूह उनके पास आया और उनका नाम पूछने लगा. पुलिस ने कहा कि जब उन्हें पता चला कि वे अलग-अलग धर्मों से हैं, तो उन्होंने उससे सवाल करना शुरू कर दिया कि वो महिला के बगल में क्यों बैठा था.

शिकायत के मुताबिक, गुंडों ने उस व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार किया और उसका गला घोंटने की भी कोशिश की. इसके बाद, समूह में और भी लोग शामिल हो गए और वे चचेरे भाई को एक कमरे में ले गए और उस व्यक्ति को घंटों तक बेरहमी से पीटा. उन्होंने शाम साढ़े छह बजे तक उसकी पिटाई की. पुलिस सूत्रों के मुताबिक महिला पर भी हमला किया गया.

व्यक्ति ने आरोप लगाया कि भीड़ ने उनके मोबाइल फोन छीन लिए और उनसे नकदी भी लूट ली. उसने कहा, "उन्होंने पूछा कि अलग-अलग समुदाय के लोग एक साथ क्यों बैठे हैं. मैंने उन्हें बताया कि वह मेरी अपनी मौसी की बेटी है. उन्होंने हमारे फोन ले लिए और हमसे 7,000 रुपये नकद भी छीन लिए." महिला के माता-पिता अलग-अलग धर्म के हैं.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि चूंकि वह व्यक्ति अनुसूचित जाति समुदाय से था, इसलिए अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है. इस मामले पर राज्य के राजनीतिक नेताओं की प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं, जिन्होंने ऐसी घटनाओं को सामाजिक मुद्दा बताया है.

कर्नाटक के गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने एनडीटीवी से कहा, "मुझे बताया गया कि वे रिश्तेदार थे और वे बस बैठे थे और बातचीत कर रहे थे कि अचानक ये समूह उनके पास आया. पुलिस ने पहले ही कुछ गिरफ्तारियां की हैं. हम इन्हें (समुदाय या जाति के आधार पर नैतिक पुलिसिंग के मामलों को) मामले-दर-मामले संभालते हैं. ये चीजें हमेशा नहीं होती हैं. पुलिस कार्रवाई करती है. प्रत्येक मामला अलग है. कभी युवा शामिल होते हैं, कभी बुजुर्ग शामिल होते हैं और कभी परिवार के सदस्य शामिल होते हैं."

अंतर-धार्मिक जोड़ों के विरोध के मुद्दे को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "ये एक सामाजिक समस्या है. बसवन्ना (12वीं सदी के कवि और दार्शनिक) ने अंतर-सामुदायिक विवाह की वकालत की थी, क्योंकि वह एक जाति-रहित समाज चाहते थे. इस सामाजिक समस्या का धीरे-धीरे हल करना होगा."

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वहीं भाजपा के सीएन अश्वथ नारायण ने कहा कि जनता को कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए. उन्होंने कहा, "अगर किसी को किसी की मंशा पर कोई संदेह है, तो उन्हें संबंधित अधिकारियों को फोन करना चाहिए और अधिकारियों से पूछताछ करनी चाहिए. लोगों को कानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए. इसका खामियाजा निर्दोष लोगों को भुगतना पड़ता है."

नैतिक पुलिसिंग के नाम पर अनैतिक हमले
कई सरकारों द्वारा नैतिक पुलिसिंग के मामलों को समाप्त करने पर जोर देने के बावजूद, इस तरह के अत्याचार राज्य को परेशान कर रहे हैं. कर्नाटक के मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने पिछले साल अक्टूबर में भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं पर छिपे हुए शरारती कृत्यों में शामिल होने का आरोप लगाया था और कहा था कि वे समाज में दरारें पैदा करते हैं और सांप्रदायिक हिंसा भड़काते हैं.

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उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा नैतिक पुलिसिंग, तनाव फैलाने का समर्थन करती है और वे हमलों और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं के पीछे हैं. रेड्डी ने कहा, "बीजेपी कार्यकर्ता भेष बदलकर, अपना रूप और नाम बदलकर शरारत करते हैं, ये उनका जन्म से स्वभाव है, ये उनके खून में है."

उनके बयानों पर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और इसे सरकार की विफलता को छुपाने के उद्देश्य से राजनीतिक बताया. वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि रेड्डी का बयान पूरी तरह से भ्रामक है.

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