सियासत की ढाई चाल, जहां चली गई वहां क्लेश... महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के बाद कर्नाटक में नाटक

कर्नाटक में ढाई ढाई साल मुख्यमंत्री पद के अघोषित फार्मूले को लेकर डीके शिवकुमार और सीएम सिद्धारमैया के बीच तनातनी दिल्ली तक पहुंच गई है. दोनों में कोई भी गुट पीछे हटने को तैयार नहीं है.

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Karnataka Political Crisis
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  • मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के बीच सत्ता साझेदारी को लेकर विवाद जारी है
  • छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच मुख्यमंत्री पद साझा करने का अघोषित समझौता विफल साबित हुआ था
  • महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना के बीच मुख्यमंत्री पद के बंटवारे को लेकर मतभेद के कारण गठबंधन टूट गया था
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नई दिल्ली:

कर्नाटक कांग्रेस में सीएम की कुर्सी का संकट गहराता जा रहा है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के गुटों के बीच जुबानी जंग थमने का नाम नहीं ले रही और दिल्ली में आलाकमान चिंतन मनन में जुटा है. कहा जा रहा है कि कर्नाटक के इन दोनों शीर्ष नेताओं के बीच ढाई-ढाई साल सरकार चलाने का फार्मूला तय हुआ था और अब शिवकुमार अपनी बारी के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं. लेकिन सियासी इतिहास गवाह है कि ढाई-ढाई साल का ये फार्मूला अमल में नहीं आ पाता. राजस्थान और छत्तीसगढ़ का अनुभव कांग्रेस के लिए कड़वा ही रहा है. महाराष्ट्र में बीजेपी और उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली शिवसेना के बीच इसी मुद्दे पर राहें जुदा हो गई थीं. राजस्थान में भी सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच टकराव की भी यही वजह रही थी.  छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच भी सत्ता में साझेदारी वाला ढाई-ढाई साल के ऐसे अघोषित फार्मूले की बात उभर कर आई थी. लेकिन कुर्सी नहीं बदली मगर पांच साल बाद कांग्रेस ने सत्ता गंवा दी.

राजस्थान में पायलट बनाम गहलोत

राजस्थान में जब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे तो सचिन पायलट ने अचानक तीखे तेवर अपना लिए. कहा गया कि कांग्रेस सरकार में 2.5-2.5 साल सीएम पद का फार्मूला तय हुआ था. जुलाई 2020 में हरियाणा के मानेसर में गहलोत खेमे के विधायकों ने डेरा डाल दिया. आलाकमान के साथ पायलट और गहलोत खेमा बातचीत करता रहा. लेकिन गहलोत टस से मस नहीं हुए और पांच साल पूरे किए. उन्होंने पायलट के खिलाफ खुलकर हमला बोला. 

छत्तीसगढ़ में भी भूपेश बघेल बनाम टीएस सिंह देव

छत्तीसगढ़ में भी दो शीर्ष नेताओं भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के बीच भी मुख्यमंत्री पद को लेकर रस्साकसी चली. वहां भी ढाई-ढाई साल के अघोषित समझौते को लेकर टीएस सिंह देव ने खूब जोर लगाया, लेकिन ओबीसी वर्ग के कद्दावर नेता बघेल भारी पड़े और टीएस सिंह देव को हाथ वापस खींचने पड़े. 

महाराष्ट्र में भी बीजेपी और उद्धव ठाकरे की जंग

महाराष्ट्र में जब 2019 विधानसभा चुनाव हुआ तो भाजपा और शिवसेना का गठबंधन विपक्षी दलों कांग्रेस, एनसीपी आदि पर भारी पड़ा. बीजेपी ने 105 और शिवसेना ने 56 सीटें जीतीं, जो बहुमत के लिए पर्याप्त थीं, लेकिन शिवसेना ने कहा कि चुनाव के पहले ढाई-ढाई साल सीएम की बात तय हुई थी और बीजेपी इस पर सहमति दे. इसी मुद्दे पर दोनों दलों में टकराव हो गया. उद्धव ठाकरे ने बीजेपी से अलग कांग्रेस और एनसीपी के साथ महा विकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार बना ली और मुख्यमंत्री बन गए. हालांकि बाद में शिवसेना में दो फाड़ हो गया और एकनाथ शिंदे बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बने. 

1997 में मायावती और कल्याण सिंह के बीच गठबंधन

बीजेपी के साथ 1997 में दूसरी बार गठबंधन किया और मायावती मुख्यमंत्री बनीं. दोनों दलों के बीच समझौता हुआ कि  मायावती और कल्याण सिंह 6-6 महीने सीएम पद पर रहेंगे. मायावती ने 6 महीने सत्ता संभाली लेकिन कल्याण सिंह की बारी आते ही उन्होंने गठबंधन तोड़ दिया. 5 साल बाद वर्ष 2002 में मायावती ने फिर भाजपा से हाथ मिलाया. लेकिन बीजेपी और बसपा के बीच यह साझेदारी भी लंबी नहीं चली. 

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