कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी बिल पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच 'आपका आइडिया ' को लेकर हुई बहस

सिद्धारमैया ने कहा कि उन्हें अपने पास पहुंचे मसौदा विधेयक के बारे में याद नहीं है, लेकिन बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने इस पर हस्ताक्षर किए हैं. सिद्धारमैया ने कहा कि हालांकि कांग्रेस ने इस विधेयक को कैबिनेट में चर्चा के लिए नहीं लिया.

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सिद्धारमैया ने कहा कि कांग्रेस ने इस विधेयक को कैबिनेट में चर्चा के लिए नहीं लिया.
बेंगलुरु :

कर्नाटक (Karnataka) में धर्मांतरण विरोधी विधेयक (Anti Conversion Bill) पर विधानसभा में तीखी बहस हुई. कांग्रेस नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता सिद्धारमैया विधानसभा में कानून मंत्री जेसी मधुस्वामी द्वारा दी गई चुनौती का सामना करने के लिए तैयार नहीं थे. सिद्धारमैया और उनकी टीम भाजपा पर हमला करने के लिए तैयार थी, लेकिन उनके हमले की धार को मधुस्वामी ने कुंद कर दिया, जिन्होंने रिकॉर्ड दिखाया और कहा कि प्रस्तावित धर्मांतरण विरोधी कानून का मसौदा की शुरुआत कांग्रेस ने की थी. 

हालांकि सिद्धारमैया लगातार यह दावा करते रहे कि विधेयक का मसौदा तैयार करने में कांग्रेस की कोई भूमिका नहीं थी. हालांकि बाद में सदन के अध्‍यक्ष ने जल्द ही सिद्धारमैया और मधुस्वामी के बीच बहस के चलते सदन को स्थगित कर दिया. 

सदन के फिर से शुरू होने के बाद मधुस्वामी ने एक बार रिकॉर्ड दिखाए. मधुस्‍वामी ने कहा कि मसौदा विधि आयोग द्वारा पूरा किया गया था, जिसकी शुरुआत तत्कालीन कांग्रेस कानून मंत्री टीबी जयचंद्र का नाम है. बाद में इसे स्‍क्रूटनी के लिए भेजा गया था. जिसके बाद सिद्धारमैया ने इस पर हस्‍ताक्षर किए थे, जो उस वक्‍तमुख्‍यमंत्री थे. 

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सिद्धारमैया ने कहा कि उन्हें अपने पास पहुंचे मसौदा विधेयक के बारे में याद नहीं है, लेकिन बाद में उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने इस पर हस्ताक्षर किए हैं. सिद्धारमैया ने कहा कि हालांकि कांग्रेस ने इस विधेयक को कैबिनेट में चर्चा के लिए नहीं लिया. सदन के पटल पर लाए बिल के मसौदे की कॉपी को एनडीटीवी ने देखा, जो कि भाजपा नेता के कमजोर दावे को दर्शाती है. 

नवंबर 2009 में कन्‍नड़ लेखक चिदानंद मूर्ति, पूर्व विधायक नरहरि, विश्व हिंदू परिषद के क्षेत्रीय सचिव बीएन मूर्ति, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी एमसी जयदेव, भारतीय विद्या भवन के पूर्व निदेशक मुथूर कृष्णमूर्ति और तत्कालीन एमएलसी एसआर लीला ने तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा से मध्य प्रदेश, ओडिशा और गुजरात की तर्ज पर धर्मांतरण विरोधी कानून लाने का आग्रह किया था. 

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इसके बाद, एक मसौदा बिल तैयार किया गया जिसे कर्नाटक धर्म स्वातंत्र्य विधेयक, 2012 के रूप में जाना जाता है. बिल का मसौदा उस वक्‍त तैयार किया गया जब येदियुरप्पा मुख्यमंत्री थे. 2012 के मसौदे बिल की कुछ विशेषताएं थीं, जिसमें कानून का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को एक से दो साल की कैद की सजा दी जाएगी और पांच हजार से 10 हजार के बीच का जुर्माना या दोनों लगाया जाएगा. वहीं सबूत का भार अभियोजन पर होता. 

मई 2013 तक सरकार बदल चुकी थी. कांग्रेस के सिद्धारमैया ने मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला. उसी वर्ष मसौदा विधेयक को कर्नाटक के विधि आयोग द्वारा विधि विभाग के समक्ष रखा गया, जिसे इस बार धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण नाम दिया गया.  

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