करीब चार दशक बाद किसी कांग्रेस अध्यक्ष के गृहराज्य में मिली पार्टी को सत्ता

सोनिया गांधी 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनीं और उस वक्त तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कमजोर स्थिति में जा चुकी थी. उनके अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस 2002, 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस कुछ खास नहीं कर सकी. अध्यक्ष के तौर पर उनके दूसरे कार्यकाल में 2022 में भी कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा.

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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने गृह नगर कलबुर्गी में वोट डाला था.
नई दिल्ली:

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के लिए इस मायने में भी अहम है कि करीब चार दशक बाद अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के किसी अध्यक्ष के गृह राज्य में पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की है. पिछले साल चुनाव के जरिये कांग्रेस अध्यक्ष बने खरगे के लिए उनके गृह राज्य कर्नाटक में यह चुनाव किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के हमलों के बाद खरगे ने चुनाव प्रचार के दौरान कई मौकों पर खुद को कर्नाटक का ‘भूमि पुत्र' बताया और जनता से समर्थन की अपील की थी. खरगे से पहले राजीव गांधी के कांग्रेस का अध्यक्ष रहते हुए पार्टी को उत्तर प्रदेश में 1985 के विधानसभा चुनाव में बड़ी जीत मिली थी. उस समय कांग्रेस को 425 सदस्यीय विधानसभा में 269 सीटें मिली थीं.

राजीव गांधी के बाद 1990 के दशक के पहले हिस्से में जब पीवी नरसिंह राव कांग्रेस के अध्यक्ष थे तो उस वक्त उनके गृहराज्य आंध्र प्रदेश में हुए 1994 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा था.

नरसिंह राव के बाद बिहार से ताल्लुक रखने वाले सीताराम केसरी ने 1996 से 1998 तक अध्यक्ष रहे, हालांकि दौरान उनके गृहराज्य में कोई विधानसभा चुनाव नहीं हुआ.

सोनिया गांधी 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनीं और उस वक्त तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस कमजोर स्थिति में जा चुकी थी. उनके अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस 2002, 2007, 2012 और 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस कुछ खास नहीं कर सकी. अध्यक्ष के तौर पर उनके दूसरे कार्यकाल में 2022 में भी कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा.

करीब पांच दशक से कांग्रेस में सक्रिय खरगे दलित समुदाय से आते हैं. माना जा रहा है कि उनकी वजह से कर्नाटक के दलित मतदाताओं को अच्छा खासा समर्थन मिला है.

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कांग्रेस कर्नाटक की इस जीत से यह उम्मीद कर रही है कि राष्ट्रीय स्तर पर उसकी किस्मत उसी तरह चमकेगी जैसे 1978 में इंदिरा गांधी के चिकमगलूर से लोकसभा उपचुनाव के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी. 1978 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी पार्टी को शानदार जीत मिली थी.

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘‘ चिकमगलूर जिले में कांग्रेस पार्टी के लिए अद्भुत नतीजे रहे हैं. यह जिला भाजपा का गढ़ बन गया था. कांग्रेस ने पांच में से पांच सीटें जीती हैं. 1978 में चिकमगलूर ने कांग्रेस के फिर से खड़े होने की बुनियाद रखी थी. इतिहास जल्द फिर से खुद को दोहराएगा.''

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माना जा रहा है कि कांग्रेस द्वारा इस चुनाव में भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाने, पांच गारंटी, मुस्लिम और कुछ वर्गों का पार्टी के पक्ष में लामबंद होने के कारण पार्टी को इतनी बड़ी जीत मिली है.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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