कर्नाटक : हिजाब में स्कूल पहुंची 58 छात्राएं सस्पेंड, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने कहा- हिजाब नहीं किताब की जरूरत

शिवमोगा जिले में कॉलेज प्रशासन ने विरोध में प्रदर्शन करने और हिजाब हटाने से मना करने पर 58 छात्राओं को निलंबित कर दिया, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने कहा कि रूढ़िवादी सोच से ऊपर उठें, हिजाब से ज्यादा शिक्षा जरूरी है

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बेंगलुरु/ नई दिल्ली:

कर्नाटक के कई हिस्सों में शनिवार को छात्राएं अपने शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनकर आईं, लेकिन उन्हें अदालत के आदेश का हवाला देकर प्रवेश नहीं करने दिया गया. शिवमोगा जिले के शिरलाकोप्पा में शुक्रवार को प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज प्रशासन के विरोध में प्रदर्शन करने और हिजाब हटाने से मना करने पर 58 छात्राओं को निलंबित कर दिया गया. दूसरी तरफ दिल्ली में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (MRM) ने अल्पसंख्यक समुदाय से रूढ़िवादी सोच से ऊपर उठने और प्रगतिशील विचारों को अपनाने की अपील करते हुए शनिवार को कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने से ज्यादा प्रगति के लिए शिक्षा अधिक महत्वपूर्ण है.

एक छात्रा ने संवाददाताओं को बताया कि निलंबित की गई छात्राओं को कॉलेज नहीं आने को कहा गया है. शनिवार को भी छात्राएं कॉलेज आईं, हिजाब पहनने के समर्थन में नारे लगाए, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया. छात्राओं ने कहा, “हम यहां पहुंचे लेकिन प्राचार्य ने हमसे कहा कि हमें निलंबित कर दिया गया है और हमें कॉलेज आने की जरूरत नहीं है. पुलिस ने भी हमसे कॉलेज नहीं आने को कहा था, फिर भी हम आए. आज किसी ने हमसे बात नहीं की.”

दावणगेरे जिले के हरिहर में स्थित एसजेवीपी कॉलेज में लड़कियों को हिजाब पहनकर प्रवेश नहीं करने दिया गया. इस पर छात्राओं ने कहा कि वह हिजाब उतारकर भीतर नहीं जाएंगी, यह उनके लिए शिक्षा के जितना ही महत्वपूर्ण है और वह अपने अधिकार को नहीं छोड़ सकतीं. 

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बेलगावी जिले के विजय पैरामेडिकल कॉलेज में छात्राओं ने संवाददाताओं को बताया कि हिजाब मुद्दे के कारण संस्थान ने अनिश्चितकाल के लिए अवकाश की घोषणा कर दी है. एक छात्रा ने कहा, “हम हिजाब के बिना नहीं बैठेंगे. कॉलेज को यह समझ में आना चाहिए कि इससे हमारी शिक्षा पर क्या प्रभाव पड़ता है. प्राचार्य हमारी बात नहीं सुन रहीं.”

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बल्लारी के सरला देवी कॉलेज और कोप्पल जिले के गंगावती में सरकारी कॉलेज में भी इसी प्रकार की स्थिति देखने को मिली. रामनगर जिले के कुदुर गांव में कुछ छात्राओं को जब कक्षा के भीतर जाने की अनुमति नहीं दी गई, तो उन्होंने कॉलेज के मैदान पर विरोध प्रदर्शन किया.

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इधर दिल्ली में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (एमआरएम) ने अल्पसंख्यक समुदाय से रूढ़िवादी सोच से ऊपर उठने और प्रगतिशील विचारों को अपनाने की अपील करते हुए शनिवार को कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने से ज्यादा प्रगति के लिए शिक्षा अधिक महत्वपूर्ण है.संगठन ने कहा कि भारत में मुसलमानों में निरक्षरता की दर सबसे अधिक 43 प्रतिशत है और समुदाय में बेरोजगारी की दर भी बहुत अधिक है.

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एमआरएम के राष्ट्रीय संयोजक एवं प्रवक्ता शाहिद सईद ने कहा, ‘‘मुसलमानों को सोचना चाहिए कि उनकी साक्षरता दर सबसे कम क्यों है. भारत के मुसलमानों को एक प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. उन्हें यह समझना होगा कि उन्हें किताब की जरूरत है, न कि हिजाब की. उन्हें रूढ़िवादी सोच से ऊपर उठकर शिक्षा और प्रगति पर ध्यान देना चाहिए.''

उन्होंने कहा कि भारत में कुल मुस्लिम आबादी का केवल 2.75 प्रतिशत स्नातक या इस स्तर की शिक्षा से ऊपर है. इनमें महिलाओं का प्रतिशत मात्र 36.65 प्रतिशत है. उन्होंने कहा कि मुसलमानों में स्कूल छोड़ने की दर सबसे अधिक है और ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों के स्कूल छोड़ने की दर लड़कों की तुलना में अधिक है.

सईद ने कहा, ‘‘हमें सोचना चाहिए कि हमारे पास स्नातकों का इतना कम प्रतिशत क्यों है जबकि देश में मुसलमानों की आबादी कम से कम 20 करोड़ है.'' उन्होंने कहा कि चाहे सरकारी क्षेत्र हो या निजी क्षेत्र, रोजगार में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है.

सईद ने कहा, ‘‘और यह अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों के खिलाफ किसी पूर्वाग्रह के कारण नहीं है. जब किसी समुदाय में स्नातकों का इतना कम प्रतिशत और स्कूल छोड़ने की दर अधिक होती है, तो यह स्पष्ट है कि इसके सदस्य पीछे रह जाएंगे.''

एमआरएम संयोजक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन के दौरान ‘तीन तलाक' को समाप्त करके मुस्लिम महिलाओं को इस सदियों पुरानी प्रथा के दर्द से मुक्त कर दिया है. उन्होंने कहा, ‘‘यह मुस्लिम महिलाओं के स्वाभिमान और गरिमा का कानून है. आज उनकी स्थिति में बहुत बदलाव आया है. कानून लागू होने के बाद से बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं को राहत मिली है. लोग अपने परिवार को सम्मान के साथ जीने का अधिकार दे रहे हैं.''

उन्होंने दावा किया कि मुस्लिम लड़कियां, युवा और महिलाएं आज प्रगतिशील हैं लेकिन ‘‘कट्टरपंथी और तथाकथित धार्मिक नेता'' चाहते हैं कि वे रूढ़िवाद और कट्टरता के बंधन में रहें.

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